My Blog List

Sunday, 1 May 2016

मजदुर दिवस !


बेचारे मजदूर, जो की असल में मजदूर हैं उनको पता ही नहीं  होता  की ये हैं क्या और हाकिम मजदुर दिवस के नाम पे छुट्टी  का मजा काटते हैं। वो लोग मुझे मजदूर कतई नहीं लगते जो हाकिम के पद पे विराजमान हैं। मजदुर तो केवल वो व्यक्ति है जो मजबूर है किसी की गुलामी करने को और अपने शोषण के लिए आवाज़ इसलिए नहीं उठा सकता क्यूंकि उसे अपने अधिकारों से ज्यादा चिंता दो वक्त के रोटी की होती है। अगर अधिकार के लिए लड़ा तो रोटी नहीं मिलेगी।
इस दिवस को मानाने से ज्यादा जरुरत इसकी जागरूकता फ़ैलाने की है।
हमारे समाज में मजदुर गरीबी से ज्यादा एक जाती का  बोध कराता है। जहाँ लोग अपने अधीन लोगों को गुलाम बनाते हैं उसके पीछे उनकी मानसिकता का बहुत बड़ा हाथ होता है। हम सब मानसिक रूप से बीमार हैं जिसमे केवल वही दीखता है जो हम देखना चाहते हैं वो नहीं दीखता जो हकीकत मैं है। अगर कभी आपको अस्लीयत जानने की इच्छा हो तो एक बार मजदूरों से उनका हाल पूछ लीजिए। ठेकेदारों ने मानवता की क्या हालत बना रख्खी इसका अंदाजा वहीँ से हो जायेगा। मजदुर के नाम पे लड़ने वाले कर्मचारी सिर्फ अपना हिस्सा पाने तक अपने आपको सिमित कर रख्खा है।
कुछ समय पहले की बात है मैं एक कंस्ट्रक्शन साइट पे जूनियर इंजीनियर के पद पे कार्यरत था एक सरकारी कर्मचारी का दौरा हुवा , मेरे अधीन आने वाले एक पेटी कांट्रेक्टर के मजदुर से उन्होंने वार्ता लाप किया और उसके बाद मुझे बहुत फटकार लगाई क्यूंकि उसकी आये सरकारी नियमों के अनुसार कम थी। उन्होंने वहां मौजूद मेर बॉस या फिर उस पेटी कांट्रेक्टर के मालिक को कुछ भी नहीं कहा।  मैंने उसके लिए बहुत ग्लानि भी महसूस किया क्यूंकि मुझे मेरे अधीन आने वाले मजदूरों से उनकी परेशानी और दूसरे हकूक के बारे में जानकारी रखनी चाहिए थी। ऐसा सिस्टम देखकर मैं बहुत ही खुश हुवा, जहाँ एक छोटे से मजदुर के अधिकारों की रक्षा के लिए बड़ा से बड़ा अधिकारी खुद भूतल पे उतर कर लड़ाई लड़ता हो। सरकारी कर्मचारी  यानि डिप्टी चीफ इंजीनियर के जाने बाद मैंने पेटी कांट्रेक्टर के मालिक और बॉस से बात की मगर मुझे कोई अच्छा रिस्पांस नहीं मिला सब टालते रहे।  मैं उस वक्त बिलकुल नया था कोई एक साल से भी कमका तजुर्बा रहा होगा बस क्या था एक दिन मुझे बहुत गुस्सा आगया और मैंने ये सारी घटना को अनसुना करने की जानकारी प्रोजेक्ट मैनेजर को देदी मगर ये क्या प्रोजेक्ट मैनेजर भी शांति से सुनने के बाद बोलै की आप ये सब चक्करों में न पड़ो ये आपका काम नहीं है की किसको कितना पैसा मिलता है और किसका हनन हो रहा है। आप केवल प्रोग्रेस और प्रोडक्टिविटी  के पीछे भागो और महीने के आखिर में अगर आपकी तनख्वाह न मिले तो मुझसे बात करो।
मेरे भी खून में कोई पानी नहीं मिला हुवा था। एक अजीब जोश और कुछ कर गुजरने की चाहत अंदर ही अंदर उबाल  देने लगा।  मैंने कई नए तरकीब सोची के इस मामले को उजागर कैसे करूँ और एक गरीब का हक़ दिलवाऊँ। इसी अधेड़ बुन में एक दिन मैं उस सरकारी कर्मचारी से मिला जो साइट पे आया हुवा था। मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेस से रिटायर्ड इंजीनियर एक बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक लगता था।  उससे काफी देर तक बात हुई, उसने मुझे बिच बिच में कई बार  शब्बाशी दी मगर रिस्पांस उसका भी अच्छा नहीं था। उसने मुझे कुछ अलग ढंग से समझाया उसके समझने का अर्थ शायद मुझे डराना था उसका कहना था की अगर मैं जयादा बात करूँगा तो मेरे कंपनी वाले मुझे निकाल देंगे और कोई  कुछ नहीं कर पाएगा।
इस तरह मैं वहां से भी हताश हो कर वापस आगया। मगर मुझे अब इस बात की चिंता खाये जा रही थी की अगर किसी को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है तो इसको उजागर क्यों किया था। और इसी बात के पीछे मैं दिन रात लगा रहा कई लोगों से बात की और कई तरह की बातें मालूम हुई। और जो हकीकत मुझे पता चला वो सुनकर मैं बहुत ही दंग रह गया।
असल में जब कोई भी सरकारी कर्मचारी को उसका हिस्सा नहीं मिलता है तो वो इसतरह के मामलात को उजागर करता है और जब उसका मकसद पूरा हो जाता है तो इसे दबा देता है।
गरीबों की रक्षा तो सिर्फ खुद ही करता है। इंसान तो केवल अपना मकसद पूरा करते हैं।  अंततः मजदुर दिवस की मजदूरों को बधाई और हकीमो को इस दिवस के छुट्टी पर बहुत बहुत बधाई।
और कहते है न की जिसका कोई नहीं उसका खुद है यारो  .....तो मजदूरों का केवल खुदा ही है। 

Monday, 25 April 2016

शर्फू -1

एक इंसान किसी से अच्छे से पेश आये मानवता का ख्याल रख्खे और आपका दुःख दर्द बांटे तब इतना तो बनता है की आप उसकी इज़्ज़त करें ठीक है हर कोई एक दूसरे पर किये गए उपकार का बदला नहीं चुका सकता। भिन्न भिन्न परिस्थितियों में बाते बदल जातीं हैं। जिसकी कोई समानता और सीमा नहीं है।
मगर आप महसूस करते हैं की किसी ने आपके साथ अच्छा किया हो और अगर आप उसके लिए कुछ न कर सको तो कमसे कम उसकी इज़्ज़त तो जरूर करो। हो सके तो कभी उसकी एक आधा भूल भी माफ कर सकते हैं।
ये कहानी है एक शरीफ इंसान शर्फू की जैसा की नाम  से ही प्रतीत हो रहा है की वो शरीफ होगा और ठीक वैसा ही है।नाटा कद आँखें धंसी हुई, खड़ी नाक, रंग सांवला और तीखी आवाज़। ऊपर से जितना कठोर है अनदर से उतना ही नरम, किसी छोटी सी  बात पे भी आहत हो जाता है और बड़ी बड़ी बात को भूल भी जाता है। कुछ खास पढ़ा लिखा नहीं है मगर आजीविका के लिए चंद  सिक्के कमा लेता है। ऊपर से  बहुत हंसमुख दीखता है मगर अंदर से बहुत ही गमगीन है। दिल की बात किसी को नहीं बताता, कहता की मैं ऐसे साथी की तलाश में हूँ जो मेरे दिलकी बात बिन बताये समझे। उसके ज़िन्दगी की सबसे बड़ी दुविधा ये है की उसको आज तक कोई समझने वाला नहीं बना। उसका कहना है लोग उसे समझते नहीं है वो अच्छा इंसान है सबके लिए अच्छा सोचता है मगर पता नहीं क्यों एक पल में ही लोग उसे ददकार देते हैं। वो लोगों की भलाई करता है उनका ख्याल रखता है। मगर लोग उसकी एक बुराई या एक कमजोरी से नफरत करते हैं।  वो ये के  वो बहुत जल्दी किसी बात पे गुस्से में आजाता है हालांकि उसका कहना है की वो सिर्फ कुछ सेकंड के लिए ही होता है उसके बाद उसका नजरिया बदल जाता है और फिर हक़ की बात ही सोचता है।  मगर उसका कहना है की उसकी साडी अच्छाई इस एक सेकंड के गुस्से से लोग भुला देते हैं और शर्फू से लोग नफरत करते हैं। हालांकि शर्फू का ये भी कहना है की वो इस कमजोरी के लिए परवरदिगार से दुआ करता है मगर ये दिन बा दिन बढ़ता ही जा रहा और इसके फलस्वरूप उसके अपने उससे दूर हो रहें हैं। और वो नकारात्मकता की एक अंधेर कोठरी में गिरता जा रहा है। पता नहीं कभी वहां से निकलेगा या वहीँ घुट के मर जायेगा।

Sunday, 24 April 2016

अनुशाशन और तानाशाही

एक अनुशाशन पसंद इंसान कब तानाशाह  बन जाता है उसे पता नहीं चलता उसे लगता ये जरुरी ये तो करना ही चाहिए मगर ऐसा करते करते वो तानाशाही के तरीके पर चलने लगता है। कब वो अनुशाशन की सिमा को लांग कर तानशाही के नकारात्मक आकर्षण बल में समावेश हो जाता उसे पता नहीं चलता। दर असल तानाशाही और अनुशाशन की सीमा आपस में इस तरह सम्मिलित हैं की शुआती दौर में  इसका सही सही फ़र्क़ कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है।   तानाशाही केवल सामने वाले को ही नुक्सान नहीं पहुंचाती बल्कि स्वयं उस व्यक्ति को भी एक नकारात्मक ऊर्जा की तरफ खींच लेती है।  एक इंसान का एक ही समय में कई व्यक्ति से अनबन  होना भी एक प्रकार के तानाशाही के रूप रेखा की पहचान है। 

Saturday, 23 April 2016

सपना - सपने में मर्डर

Geoinformatics पढ़ते पढ़ते अचानक से मुझे याद आने लगता है कैसे मैंने आज से यही कोई आठ साल कबल एक बड़े ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट पे सर्वे का काम किया करता था। खेतों के किनारों सुबह जब  मशीन ले कर निकलता था तो पराठे साथ लेकर जाता था लगता था की फिरसे बच्चा हो गया हूँ और गाओं की खेत में घूम रहा हूँ। धीरे धीरे सुर्वे का काम खत्म होने के बाद खुदाई शुरू हुई और फिर काम का बोझ बढ़ता गया और हर दूसरे दिन बदलते प्रोजेक्ट मैनेजर का अनोखा अनुभव भी एक अलग सा दबाओ बनाने लगा था । यही सब सोचते सोचते न जाने कब आँख बंद हो गयी फिर देखता हूँ की पिछले आठ सला पहले जिस प्रोजेक्ट पे मैं काम कर रहा था वहां एक मर्डर हो गया है।  कोई नहीं हैं सिर्फ मैं ही हूँ वहां एक तंग कमरे के बाहर की बालकनी जिसकी दिवार पिले कलर से पोती हुई है वहां एक  तख़्त पे एक शख्श की लाश पड़ी हुई है और मैं वही किनारे में खड़ा सोच रहा हूँ के इसके क़त्ल का इल्जाम तो मेरे सर ही आएगा। यहाँ तो कोई नहीं फिर इसे मारा किसने होगा। कोई कैसे विशवास करेगा की मैंने नहीं मारा फिर सपने में ही सोचता हूँ की ये कोई सपना होगा जैसा की हमेशा होता है। फिर उतने में मेरी बहन आजाती और घसीट के मुझे वहां से चलने को कहती है। मैं उसे लाख समझाता हूँ की ये मैंने नहीं किया मगर वो कुछ जवाब दिए वहां से बहार निकालती है।  और तभी मेरी आँख खुल जाती है।
................कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हूँ। 

आँख बंद हो जाती है।

आज फिर उदास हूँ। नकारात्मकता से भरा हुवा। दर बदर में घुटता दम मानो ऐसे सांसे ले रहा हूँ जैसे दुनिया में ऑक्सीज़न खत्म हो गया हो। आँखों के सामने सिर्फ सन्नाटा ही हो। जैसे आप किसी सुनसान रैंगिस्तान में आगये हो। पैरो के निचे दहकते रेत जैसे आग की भट्ठी में पर गया हो। और चलते जाओ, चलते जाओ फिर भी कुछ न दिखा हो जैसे ये पृथ्वी नहीं कोई और गृह पर आगया हूँ।
फिर शाम होने लगती है और सूरज का उरूज खत्म होने लगता है देखते ही देखते अँधेरा उजाले को खा जाता है। आसमान में टिमटिमाते तारे जैसे सन्देश देने की कोशिश कर रहें हो की अब तुम सुरक्षित हो। तभी आँख खुल जाती है और सही में उदास हो जाता हूँ की ये क्या जब सब कुछ सही होने लगा था तो आँख क्यों खुल गयी।
ज़िन्दगी भी कुछ ऐसी ही है इंसानो की जब थोड़ा सकूँ लगने लगे तो आँख बंद हो जाती है।

Thursday, 21 April 2016

आपका बॉस

कभी कभी आपका बॉस अपने अधिकार छेत्र से भी आगे की बातें करने लगता है। मैं ये करने वाला हूँ मैं वो करने वाला हूँ अभी ये डिसिशन लेना वो फाइनल करना है। डिपार्टमेंट में छटनी करनी है इत्यादि।
 मगर शायद उसे ये पता नहीं की सामने वाले के पास भी कुछ दिमाग है। और वो भी कुछ जानता  है तभी तो आप जैसे महापुरुष के साथ काम कर रहा है। चलिए आप ये मान लीजिए की सामने वाला गधा है मगर  इस बात का तो ख्याल रखिये की अगर वो गधा है तो फिर आप गधे के बॉस है। सत्तर के दशक के बॉस को अभी अपने अंदर से वो भरम निकाल देना चाहिए जो उनके साथ कभी हुवा रहा होगा। ये दुनिया उस युग में नहीं है। तजुर्बे में भी गुणवत्ता का ख्याल रख्खा जाना जरुरी है। आप हर चीज़ को अनुभव नहीं कह सकते। आयु के नाम पे अनुभव नहीं आता है। हर अनुभव को पाने के लिए उससे गुज़रना भी जरुरी नहीं है की आप किसी को अपनी आयु बता के धराशाई करदेंगे।
बहुत सारे लोग इस खुश फहमी में रहते हैं की मैं निचे वाले को बेवकूफ बनाके अपना काम निकाल रहा हु ऐसे ही चलता रहेगा मगर यही कई बार उनके उजरने का कारण हो जाता है।  जिसको ज्यादार तर लोग नहीं समझ पाते हैं। आज बहुत कम लोग हैं जो टैलेंट को समझ पाते है ज्यादा तर लोग तो खुदको ही सबसे ऊपर सोचते है। दोष हममे भी है कुछ लोग सिर्फ हिमालय जैसा शारीर लेकर घूमते हैं। दिमाग को शायद जिम खाने में बेच कर आगये हैं। या फिर गली के नुक्कड़ पे बैठ कर नौकरी पा लेते हैं। 

Monday, 18 April 2016

सब कुछ एक पल में ही तबाह हो गया हो

कितना मुश्किल होता होगा ज़िन्दगी में वापिस आना। जब आपका सब कुछ एक पल में ही तबाह हो गया हो। मैं बात कर रहा हूँ बिहार के उस इंसान की जिसने हलके से जलजले के झटके में अपना सबकुछ गवां दिया।मगर सबलोग वापिस नहीं आपाते है।
वो वक्त याद है मुझे जब हम फरीदाबाद के सेक्टर ८९ में एक साथ एक ग्रुप हाउसिंग वाले क्लाइंट फेरस इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए काम कर रहे थे उस वक्त मैंने अपनी पढाई भी खत्म नहीं की थी बिलकुल अंजान था कॉलेज के एक लेक्चरर की जान पहचान की वजह से पार्ट टाइम जॉब शुरू की थी और वहीँ मिला था मैं मनोज झा से। बिहार के छोटे से गाओं में  रहने वाले इस इंसान की कहानी कुछ ऐसी है की इनके बापू जी एक सरकारी दफ्तर में चपरासी हुवा करते थे मगर उनको शराब की बहुत बुरी लत लगी हुई थी पूरी  तनख्वाह मदिरा में ही फूंक आते थे। उसके कारन घर में बहुत दिक्कत होता था।  माता श्री एक सीढ़ी साधी औरत थीं अपनी ज़िन्दगी तो तकलीफ से काटने में कोई परहेज़ नहीं हुई उनको मगर जब बबुआ का जन्म हुवा तो उन्हें लगा शायद अब मेरे पति कुछ बदल जायेंगे।  लेकिन ये नशा इतना जालिमाना वॉर करता है इंसान पे की उसका एहसास सदियों तक नहीं जाता।
बबुआ यानि मनोज के पैदाइश के बावजूद जब पिता श्री अरविन्द झा नहीं बदले तो माता श्री ने आवाज़ बुलंद करना शुरू करदिया फिर क्या था आये दिन रोज़ रात को मोहल्ला वाले घर के बहार जमा हो जाया करते और एक लाचार औरत को रोटे पीटते देखते यह सबकुछ चलता और तंग आकर माता श्री, श्रीमती उर्मिला जी ने घर छोडने का मन बना लिया। कहते हैं न जब खामोश व्यक्ति अपने पे आता है तो ज्यादा खतरनाक बन जाता है। यहाँ सबसे ज्यादा गौर करने की बाद ये है की एक मर्द के द्वारा सताई गयी औरत  एक मर्द जाती के लिए ही अपनी सहन शक्ति त्याग कर एक नया जमाना बनाने निकल पड़ती है।
हम सब जानते है और ये कर्वी सच्चाई है की हमारे समाज में बेटी के शादी के बाद उसको मायके वाले बस एक मेहमान की हैसियत देते है। ऐसा समझ लिया जाता है  की इसकी शादी करदी अब हो गया। और इसलिए अनुमान अनुसार उसे अपने मायके में कोई जगह नहीं मिली। फिर दर दर भटकने के बाद उसे अपने बचपन की एक सहेली ने  उसको एक काम दिलवाया जो की एक आवासीय स्कूल में खाना बनाने का था। इससे श्रीमती उर्मिला जी बहुत खुश थी। पैसा तो कम ही था मगर पेट भर खाना और बच्चे के दो शब्द सीखने के आसार नज़र आने लगे थे। मनोज जब बड़ा होने लगा तो उसको उसकी माँ  का हॉस्टल में इस तरह काम करना अच्छा नहीं लगता था। इसी लिए मनोज ने कुछ काम करने की सोची जबकि वो यही कोई १४ साल का रहा होगा मगर कद काठी अच्छा था जिससे वो १८ ,१९ साल का लगता था। इसी दौरान मनोज की मुलाकात एक राज मिस्त्री से हुई जिसने उसे अपने साथ शहर चलने को कहा और वहां ले जा कर उसे कुछ काम सिखाया। मनोज एक होनिहार लड़का था और थोड़ा पढ़ा लिखा भी था इसलिए काम को समझने लगा था और फिर उसके मालिक ने उसे सुपरवाइजर बना दिया था जो की थोड़ा मोड़ा नक्शा देखना भी जनता था। अमूमन एक अच्छा राज मिस्त्री नक्शा को अच्छे से पढ़ लेता है और उसको ये उसके गुरु मिस्त्री ने ही सिखाया था।
इन नौ सालो में तबसे अब तक वो हमेशा मेरे संपर्क में रहा उसकी शादी हुई और फिर बच्चे हुवे माँ से बीवी का झगड़ा जो की एक आम बात है।
मगर पता नहीं क्यों कभी कभी एक साधारण आदमी की कहानी और वो आदमी आपको खास लगने लगता है। बातों बातों में मनोज कहता था की सरफ़राज़ जी दिन कितना बदल गया है। जमाना कहाँ से कहाँ से कहाँ निकल गया है मगर दुःख दर्द की सीमाएं अभी तक नहीं बदली अगर कुछ बदला है तो अमीरों का गरीबों अत्याचार करने का तरीका। वो कहता था की हमेशा ज़िन्दगी की तरफ नहीं भागना चाहिए कभी कभी रुक कर ज़िन्दगी को चकमा देकर देखिये वो खुद तलाशने लगती है।
और वो शायद रुक कर कुछ नया करना चाह रहा था की ज़िन्दगी उससे बहुत दूर चली गयी। पिछले दिनों उसके दोस्त ने बताया की उसकी मौत हो गयी।
बिहार में पिछले दिनों जब जलजला अपने करतब दिखा रहा था तब वो अपने वार्षिक अवकाश पे था, एक जलजले के झटके ने उसके पुरे परिवार को अपने चपेट में ले लिया। हालां की मनोज उस रात घरपर नहीं था मगर जब खबर मिली तो उसे लगा की ज़िंदा रहकर मुर्दा माँ और बीवी बच्चे को मिलना ठीक नहीं है बेहतर है की मैं उससे वैसे ही मिलूं जैसा की वो हैं।

Sunday, 17 April 2016

अपनों की खातिर अपनों से दूर हूँ पता नहीं ये मोहब्बत है या मज़बूरी।

गुज्रस्ते माह मेरी मुलाकात एक अधेड़ उम्र के शख्स से हुई। जो की यही दोहा में काम करते हैं पूछने पर उन्होंने बताया की वो यहाँ पिछले १५ सालो से है। बातों का सिलसिला शुरू हुवा तो कहने लगे की इन १५ सालों में कुछ नहीं बदला है। पंद्रह साल पहले मैं अपना आटा चक्की बेच कर प्रदेश आया था। चार साल बाद घर लौटा तो गाओं समाज में बहुत कुछ बदल चूका था मगर अगर कुछ बदलना बाकी था तो वो अपना नसीब।  उन चार सालों में सिवाए पेट भर खाना और कपड़ा के इलवा कुछ खास नहीं कर पाया मैं। कष्ट भरी प्रदेश की ज़िन्दगी जहाँ मांगने से मौत भी नहीं आती। मालिकों का रॉब बात गली तो जैसे अपने तनख्वाह का हिस्सा ही है। प्रदेश की ज़िन्दगी कैसी होती उसे क्या पता जो कभी आया ही न हो। लोग तो बस यही कहते हों की बहार कमाता है। अरे निकम्मा था इसलिए तो इतना दूर आया है नहीं तो वहीँ कुछ करलेता।
और जब पीछे मुर कर देखता हूँ तो आज भी ये सब झंझट छोडकर आटा चक्की चलाना चाहता हूँ। मगर नहीं अब ये शायद मुमकिन नहीं है क्यूंकि मेरे असर से जीने वाले लोगों की मांगे इतनी बड़ी हो गयी हैं की अब तो किडनी बेच कर ही पूरी हो सकती है।
जब मैं यहाँ आया था तब मेरी दो बहने कुंवारी थी मैं भी शादी शुदा नहीं था। पांच साल काम करके बहनो का निबाह कर दिया फिर घर बनाकर अपनी शादी की शादी के कुछ दिनों बाद माँ चल बसी शायद वो मेरी शादी के इंतजार में ही ज़िंदा थी। बापू जी का तो मैंने मूह भी देखा, इतने जल्दी वो अलविदा कह गए।
अब मेरे शादी को सात साल हो चुके है दो बच्चे हैं और दोनों स्कूल में पढ़ाई करते हैं। समय ये कहता है की मुझे अभी १५ से २० साल और काम करना चाहिए मगर नहीं अब शारीर जवाब दे रहा है आये दिन बीमार रहता हूँ। रात दिन ड्यूटी और ओवर टाइम कर करके मनो न मरम्मत होने वाले साइकिल जैसी हालत हो गयी है।
अपनों की खातिर अपनों से दूर हूँ पता नहीं ये मोहब्बत है या मज़बूरी। ............................................  आगे जो हुवा उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना मेरे बस का नहीं है। 

Thursday, 14 April 2016

डा. भीम राव अंबेडकर

भारत को संविधान देने वाले महान नेता डा. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। डा. भीमराव अंबेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे।
अंबेडकर की मां की मृत्यु उनके बचपन में ही हो गयी थी।  बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की। कठिन हालातों का सामना करते हुवे केवल तीन भाई और दो बहन ही जीवित रह पाए थे।  बलराम, आनंदराव और भीमराव तथा  दो बहन मंजुला और तुलासा।
अपने भाइयों और बहनों मे केवल अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुये। अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम "अंबावडे" पर आधारित था।
१५ अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने अंबेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया।
14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अंबेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। अंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया। 1948 से अंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे. जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे। 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर जी की मृत्यु हो गई।

Wednesday, 13 April 2016

13 अप्रैल 1919

13 अप्रैल, 13 अप्रैल 1919, दिल दहला देने वाली घटना । सर्व प्रथम ये घटना का वर्णन मैंने दूसरे क्लास में सुना था जब मैं क्विज की तयारी कर रहा था। उसमे वर्णन तो नहीं था केवल प्रश्न था की जालिया वाला बाग कब हुवा था मगर मेरे पूछने पर मास्टर साहब ने विस्तार से बताया । कुछ इस तरह से अपने अंदाज में उन्होंने कहा की ये घटना मेरे दिल में घर करगयी अगले आज़ादी के मौके पे मैं बहुत सघन सा रहा और बहुत भावनात्मक हो कर मनाया। ऐसा महसूस हो रहा था के आखिर कैसा प्रकोप  रहा होगा अंग्रेज़ो का जिसको खत्म करने के लिए हमारे पूर्वाजो ने जान को हाथ में लेकर शंघर्ष किया। शंघर्ष करना बड़ी बात नहीं है मगर हालात बहुत मायने  रखता है। कोई व्यक्ति अपना जान हाथ में लेकर शंघर्ष करे इसका मतलब बहुत बड़ा होता है।
उन सभी शहीदों को सलाम, मालिक उनकी आत्मा को शांति दे।

और आपके लिए एक प्रश्न।
आज के समय का जनरल डायर कौन है ?

Friday, 8 April 2016

भीख मांगता बच्चा।

रेल गाड़ी में भीख मांगता बच्चा। आपसे क्या मांगता है ? आपकी किस्मत, दौलत  या आपके हिस्से का खाना ? कुछ भी तो नहीं, मगर हम अपने आप पे गुरुर  करने वाले लोग उसे ऐसे धड्कार देते है जैसे आप उसके बारे में सब कुछ जानते है। आपको अपना पैसा देने से पहले जाँच परताल करने का पूरा हक़ है मगर आप किसी की मदद नहीं कर रहें हैं तो उसे जलील करने का कोई हक़ नहीं है।
एक बार एक सज्जन को देखा की वो एक भीख मांगते बच्चे को बहुत बुरा भला कह रहे थे। उस बच्चे की आयु लगभग छे वर्ष रही होगी। अनुमान लगाइए एक छे वर्ष का बच्चा दुनिया के बारे में क्या जनता है ? कुछ भी तो नहीं सिवाए भूक और प्यास के, और च्चे वर्ष के बच्चे में आपने मिंटो में दुनिया की एक ऐसी तस्वीर दिखा दी शायद कोई भी देखना नहीं चाहता होगा। क्या कसूर है उस बच्चे का जो वो एक गरीब घरमे जन्मा और क्या प्राथमिकता थी आपकी जो आप एक कहते पिटे खानदान से हैं ?
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता के आज कल कुछ गैंग है जो इस भेक मांगने के कार्ये को बड़ी ही चतुराई से अंजाम दे रहे है।
मगर फिरभी हम बिना किसी से कारन पूछे या बात किये उसे इस तरह जलील नहीं कर सकते। वह एक नासमझ छोटा बच्चा है जो गलती कर रहा है जैसे की आपका बच्चा करता है। 

Long Title and Big Degree

Long Title and Big Degree
Every day we have new experiences, like finding a quote on FB, discovering a new street in our neighbourhood, making friends with someone we didn't like before. New experiences are even more fun when we share them with other people. I always used to share it with my seniors, colleague and elders.
Encouragement from the people around enables us to explore the things as much as possible. As we grow up, we begin to find out what we are capable of doing. You may be good at cooking, or singing or playing football. We learn so much just living from day to day but school is also an important place of our life. At school, teachers help us to read and write. With their guidance, we begin to see things in different ways but rest of the things for imaginations and explorations is in our part.

However, we shouldn’t leave everything on courses and syllabus and not concentrate on getting a degree only. The great, late MR.APJ Kalam sb. has described in his book “2o million Indian”; a boy came to him with a mathematics solution and delighted to discuss that he has solved big things, Kalam sb asked “did you met with university professor? They would have told you, it has been solved”, boy reply makes me cry and put a dark line in my mind, “ Sir, University teacher rejected my paper after asking my qualification”. The boy was undergraduate. Yes, It is true we are valuing only those who have a big degree and long title.

Thursday, 7 April 2016

Saifu

A boy called Saifu reached to Delhi after completing his pre-university degree from a college in East Champaran, Bihar. There, in Bihar, he didn’t attain a class whether in school or in the pre-university course. He was managing his study by coaching class who normally coaches 30 or 40 boys in a group and finishing their courses in few months only. This is very common in our country; parents, student, and master all endorsing these act, they think master are not teaching well at school. So, there is a need for private tuition or coaching to the children’s; and student finds it as grant of excuse from school master pressure as in school, master used to teach by his own way but in coaching classes master teaching by the way student want because somewhere it is the matter of business and job. Private coaching institutions are normally run by looser in every part of the India, they are those who were not able to do anything in the life and so he became the teacher. But this kind of things by skipping classes’ makes a sense of inferiority complex in the student and it craft his life harder. Beyond the courses and syllabus of education, there is something which needs to be learned by the student in the school. It can’t be learned at home or in fabricated coaching classes. Saifu in Delhi for admission in a graduate course, coaching master advise him many things which he didn’t achieve in their career and in the way of discussion he heard about Delhi University. He has very good impression of DU and he used to dream about that. Somehow he manages to stay with the cousin in Delhi for a time being to complete the admission process. He starts running around the corner of Delhi to judge it by his own way, he never been in Delhi before. So, it was nice to see the road and metro of Delhi along with the monument by Mughals and parliament by British.
Like all another guy he also met with the ghost of opposite gender attraction, he never been in a city for the so long time where fashion is to put the lower, lower than your west. It seems that the maximum you will lower your lower and it will bring up your modernity and sign of your standard is hidden inside, which need to expose for better marketing. But the guy who doesn't know how to put trouser over the shirt used to roam in leather chappal along the city has no chance to get in.
By passing of reckless time, a time comes for the result and failure over failure. He stops moving and eating. Confused what to do and where to go as had got good marks, he was the district topper in 12th exam, his marks was about 82 % and all wished him to be a collector or ambassador, in villages there are only a few post are nominated by the people and two of them are district collector and ambassador . Gaining 82% from Bihar intermediate council is not an easy job. So, all along with him were confident to get something incredible in Delhi but the city makes him cry after the cut-off list.
He attempt suicide but fail in that too. His cousin brings him to the psychiatrist, who makes him normal after some time. In the meantime, he makes his mind do graduation from correspondence and will work in some firm in Delhi. As after seeing the Delhi’s brightness and delighted lifestyle he never thought to go back to Bihar and another part of the story behind the correspondence study and job was to support himself in Delhi. His father was the farmer, don’t misunderstand with the farmer in Maharastra who is moving in Audi and BMW; in Bihar people having nothing to do then he is the farmer, whether he is having 1-acre land or less. It is very common profession after teacher. The person has passed Matriculation have their profession as the teacher and if not then he is a farmer.

Wednesday, 6 April 2016

Public life part-1

Dubai, the city of joy and the place where east meet west, the place where the western urban developer had applied his all experience to clear their backlog which they suffer during their infrastructure development. As a civil engineer, I am seeing Dubai in a different way in the sense of infrastructure development; all the legging which human observed in modern and ancient civilization development had kept in mind while designing and developing the Dubai.
My views are not to endorse the developer but it is concentrated on the story of two brother’s life, who was residing in Dubai during the recession of 2008.I met these guys at Dubai airport in 2014 when I was on the way to Doha from India via transit flights to Dubai, the story was such a painful which sank my heart much time during the conversation and now whenever it comes to my mind.
“I am from very poor family, my father was a private job holder in a shop in Kolkata and he was illiterate but learns many things of daily use while working in there. He worked 56 years with a single firm; we can’t even call it the firm as it was a shop only, where 2 or 3 salesmen working as helping hand to an owner. He started to work for his life existence from the age of 11 only. At the age of 22, he marries with my mother who was only 16-years old. I am the third child of my family and my birth was after 15 years. Fifteen years after the marriage was not nice for my mother, many up down and unpleasant things happen something collectively and something personally to her but she hardly tells anything to me about her hard time. She was very entrusted and dedicated towards the religious and non-religious education, her views were to teach in KALIMA before you feed them first after the birth.
My mother dies with an untreatable disease at the age of 43 when I was in class 10th. . After six months of incapacitation, on 23rd December 2001, my mother was gone into the unconscious mode not able to talk, not able to eat and even unable to breathe comfortably. A telephone call made to my father to come back to home and another relative. My elder brother was very close to my mother as he was the first and eldest son; he was all the time with my mother during her last moment of the life. And at around 8 pm in the night a stream of blood from the mouth taken away my mother’s soul. It was horrible to stay alive after the death of mother in so young age but the God who knows everything and present everywhere to ease the human had given me the things which bring some feeling like my mother gone somewhere and will come back in some time, while I knew she is dead and won’t come back but it was God who put something like this in my mind.
I acquire the diploma in civil engineering from Polytechnic college in 2005 after getting 10th in 2002.I have the very big dream and stamina to go ahead for education but due to bad condition and helpless position of my family I decided to go for short term earning and I found three-year diploma is a little bit good than any other things. Somehow I passed diploma and started working in a construction firm. I learn a lot from first official  boss Mr. Sandeep Singh (L&T).I am calling it as first official because I was in construction job before completing my diploma also and used to travel 120 km daily by bus to earn 6000 a month.
Mr.Sandeep Singh was a very nice man I ever met in the construction profession; I used ‘ever’ word because in those days I was blank, no experience and nothing but still someone supporting me in such a magical way  and teaching me like a son then it really matter. It called God’s help to helpless.
I left the job in 2006 flew away for Dubai, started working with Dubai metro on huge package; it really change my life, very soon I was able to manage my family in my own ways. Younger brothers get good standard and education in their own choice school.
But things goes wrong when the recession hit the world and the Dubai who is the centre of the world shaken like an epicenter of the earthquake, I lost my job due cost cutting. I stay there 3 months on my own expenses and tried to search a job; searched in every corner and beyond the capacity but nothing comes to the execution and finally I pack my bag for India. What not happen with me in the gap of the 6-month jobless period, I became the center of the joke everyone tried to take the sip on me. One day I receive a call from last company HR department to re-join the organization and somehow I flew away to the Dubai; there are many ups and down in my life Sarfraz which I can’t remember but thanks to ALLAH who gave me the strength to fight with those and all the time I am the winner by grace of him only.”
I said to him: Then why you are so upset if you are happy with the God and with your conditions.
No, I am not upset but giving him thanks and spreading his kindness to all other who is hopeless.
You know …………………….Continued for part 2.


Friday, 1 April 2016

कोई इंसान बुरा नहीं होता

तलाश है ऐसे इंसान की जो समुद्र की तरह हो। बारहा गहराई और अपार  जल संचालित होने बावजूद भी नदियों की तरफ निरन्तर बढ़ने का प्रयास कर रहा हो। अपने अंदर जिसे लेता हो अमर करदेता हो। मगर शायद ऐसे इंसान उनको ही मिलते होंगे जिनके अंदर ऐसी खूबियां पाई जाती होंगी। एक इंसान को इंसान होने के लिए क्या क्या क्या खुबिया होनी चाहिए ?
वैसे तो बहुत से लोगों से मिला हूँ की कुछ सीख जाऊं मगर इतना नासमझ और कमजोर दिमाग इंसान हूँ की कुछ समझ में नहीं आता है। क्यूंकि मैं जहां कुछ सीखने जात हूँ वहां ज्यादातर आदतें मुझे लोगों की पसंद नहीं आती। और फिर उस दर से भी वापस आजाता हूँ। मगर इतना तो जरूर सीख जाता हूँ की जो आदत दूसरे की मुझे अच्छी नहीं लगी वो अगर मुझमे हो तो दूसरों को भी अच्छी नहीं लगेगी और इसीलिए वो चीज़ें को नहीं करना चाहता।  मगर कई बार हालातों का ऐसा जकड पर जाता है की कुछ काम न चाहते हुवे भी करना परता है। और तब समझ आने लगता है कोई इंसान बुरा नहीं होता ये वक्त होता जो उसे अच्छा और बुरा बनाता है। और वक्त खुदा के हाथ में होता है और वो वक्त वक्त पे बन्दे को आजमाता है। सारांश ये है की कोई इंसान बुरा नहीं होता ये तो विभिंताएं हैं जो सबको एकदूसरे से अलग करके कुछ अलग करने को प्रेरित करतीं हैं।

Thursday, 31 March 2016

ज़िन्दगी के सवाल

आपके दिमाग में कई बार बहुत अलग लग सवाल आते हैं कई बार तो ये दुनियावी होते हैं और कई बार ये दिनी सवाल भी होते है। और सवाल ऐसे की अगर आप किसी से जिक्र करदो तो आपको शायद ईमान से खारिज करदेने तक की बात कह दी जाये।
मगर इन सवालों का जवाब अगर आपको मिल जाता है तो आप और ज्यादा मजबूत होकर आते हो। और इन सवालों का जवाब मिलता भी है। जरुरी नहीं के आप किसी से सवाल का जिक्र करें। वो अल्लाह है जो आपके दिलो का हाल जनता है और वो आपके दिलो के सवालों का जवाब यूँही बातों बातों में दिलवा देता है। वही शख्स अगर कोई बात कहे तो शायद आपको अच्छा न लगे मगर अल्लाह चाहे तो एक अदना से अदना इंसान के बातों में ऐसी तासीर भर देता है की उसकी बातें आपको सबक ामोज लगने लगती है।
कई बार दिल की उलझने हमें डुबो देती हैं एक गहरे सोच में और कहीं दूर तारीकी की तरफ धकेल देती है। और उलझन हो भी क्यों न उलझन होना भी जरुरी है क्यूंकि दुनिया में इतनी ज्यादा विविधता है की कोई इसे पूरी तरह समझ नहीं सकता। वहीँ अल्लाह है जो सवाल पैदा करता है और उसका जवाब दिलवा कर अपनी तरफ बुलाता है। और फिर लम्हा लम्हा एहसास होने लगता है की हल पल वो यहीं मौजूद है और हमारी बातें सुन रहा है। और फिर हम हर कदम कदम पे उसकी नेमतें पाते हो। एक अलग दुनिया का एहसास सा होने लगता है फिर आस पास के की दुनियावी बातें आपको ज्यादा मुतवज्जा नहीं करतीं हैं।

Friday, 25 March 2016

खुदगर्ज़ हूँ मैं, ये क्या चाहता हूँ

ग़ुलाम ऐ अदब हूँ करम चाहता हूँ
खुद में, मैं तेरी रजा चाहता हूँ।

तेरा ज़िक्र मैं रात दिन चाहता हूँ
तेरे इश्क़ में डूबना चाहता हूँ।

हर शएे में,  तेरी गुफ्तगू चाहता हूँ
तुझसे से  मैं तेरा इश्क़ चाहता हूँ।

खुद मे  मैं तेरी बंदगी चाहता हूँ
तुझसे मैं तेरी रजु चाहता हूँ।

खुदगर्ज़ हूँ मैं, ये क्या चाहता हूँ
अपने इश्क़ का कुछ नफा चाहता हूँ।









Tuesday, 22 March 2016

ख़्वाब एक उलझन या वरदान

कहा जाता है कि सपने और मन का गहरा रिश्ता होता है। साथ ही कई लोग सपनों को अपने भविष्य के साथ जोड़कर भी देखते हैं। माना जाता है कि किसी भी नए परिवर्तन से पहले आपको सपने में ही आभास हो जाता है। सपने में क्या देखते हैं और उसका क्या मतलब होता है इसकी सही सही जानकारी तो सिर्फ पालनहार के पास ही है। मगर हम ख़्वाह मख़्वाह परेशान होते है।
सपनों को गंभीरता से ले कर आप खुद को परेशान ही कर सकते है बस।  मगरइसमें परेशान होने की कोई बात नही है। सपना चाहे डरावना हो या रंगीन इसका कोई खास अर्थ निकलने की कोई जरुरत नही है। इसको आसानी से ही लेने में फायदा है वरना आप इसमें उलझ के अपना टाइम ख़राब करेंगे और उसका परिणाम कुछ नही होगा।
मैं बचपन से बहुत सपना देखता हूँ। किशोर अवस्था में आते आते ये कुछ ज्यादा हो गया और तब मैं दिनमे भी सपने देखने लगा। दिनमे सपने देखने का मतलब ये बिलकुल नही की मैं दिनमे सो जाता रहा हूँगा। ये सपना एक हलकी सी झपकी में ही अाजाते थे और अब भी आते है। ये कुछ इस कदर है की जैसे आप किसी ख्यालों में खो जाते हैं मगर ख्यालों में डूबने का मतलब होता होता है की आप उस वक्त जगे होते हैं। मगर मेरा दिनमे सपने देखने का मतलब होता की जैसे मेरी आँख सिर्फ  कुछ सेकंडो के लिए बंद होती है और मैं कुछ देख लेता हूँ या फिर बहुत कुछ भी देख लेता हूँ। और फिर घंटो परेशान रहता हूँ। ये परेशानी कभी कभी कई कई दिन तक चलता है। और अंततः उसका कोई न कोई परिणाम आ ही जाता है और तब तक कई दूसरा सपना आगया होता है। परिणाम का मतलब ये कतई नही की उसका परिणाम वही हो जो सपना देखा था इसका मतलब ये है की मैं अपने सपने को किसी घटना से जोर लेता हूँ और फिर दिल को संतुष्टि दे देता हूँ की इसका मतलब यही रहा होगा।
ये जयादा और बहुत ज्यादा होता था और इसलिए ये मेरे ज़िन्दगी का एक मामूल सा होगया था इसलिए मैंने इसको नज़रअंदाज करना शुरू करदिया और परिणाम निकलना भी बंद करदिया था। मगर आज कल मेरी मुलाक़ात एक सज्जन व्यक्ति से हुई जिन्होंने मुझे फिरसे अपने ख़्वाब के बारे में गंभीर करदिया है और मैं फिरसे छोटे छोटे ख़्वाबों पे बहुत ज्यादा सोच विचार करने लगता हूँ।
अगर आप लोगों के पास भी अपने सपने से कोई अजीब बात हो तो शेयर कर सकते हैं जिससे शायद मेरी कुछ उलझन दूर हो जाये। 

Thursday, 17 March 2016

इंसानो की अनचाही दुनिया -1

इंसानो की अनचाही दुनिया -1
ख़्वाब या सपना एक ऐसी चीज़ है जो आपको कहीं और किसी दूसरी दुनिया की तस्वीर दिखाती है। लोग कहतें हैं इसका हकीकत से कोई लेना देना नही है। मगर शायद ये कहना भी पूरी तरह सही नही होगा। क्यूंकि कई बार आपका सपना इतंना हु बहु सच हो जाता है की आप कंफ्यूज हो जाते हैं। मुर्दे से मिलना और उससे बात करना फिर कभी कभी अपने आप  में ही ख्याल आन की ये इंसान तो मर चूका है और फिर दूसरे तरफ मुरके अपने अंदर डर का महसूस करना। कभी परेतो वाला सपना कभी सपने में धन मिलना या कभी सपने में सांप को देखना ये सब आम सपना है जो किसी को भी दिख सकता मगर कुछ इससे आगे बढ़के भी सपना देखते है और उनके देखने की कोई सीमा नही है।
जब छोटा था तब माँ कहती थी के दिनमे देखा गया सपना व्यर्थ ही होता है  इसे बयान नही करना चाहिए बयान करने से मुसाफिर रास्ता भटक जाता है। फिर बाद में बड़े होने पे समझाया गया की ये सब बातें चुप कराने के लिए कहे जातें थे। फिर भी हम बचपन से आज तक दिन में देखे गए सपनो को वयर्थ ही मानते हैं।
सपने बचपन से ही देखता हूँ और इतना ज्यादा की मुझे याद नही रहता है आज मैंने क्या क्या सपना देखा है। जब कुछ होश संभाला तो इसके बारे में जानने की थोड़ी उत्सुकता बढ़ी के आखिर ऐसा क्यों होता है मगर फिर कुछ लोगों से सुना के सबको ही सपना आता है।  मास्टर साहब ने बताया की ये दिमाग में संचित हुई चीज़ें होतीं हैं जो सोने के बाद घूमने लगती हैं। मगर जब किशोरी अवस्था में पहुंचा तो लगा के ये कुछ चीज़ है जो इंसान चाहे या नचाहे खुद ही हो जाती है।कई लोगों ने इसके वैज्ञानिक कारन बताए  जो कुछ हद तक तो सही भी था मगर पूरी तौर पे नही। चाहे अनचाहे मनसे मैं हमेशा से ही इनके कारन और ताबीर जानने की कोशिश करता रहा रहा। कई ख्वाब नामा पढ़ा मगर कुछ समझ में नही आया क्यूंकि ख्वाब इतने उलझे हुवे होते थे की उसका कोई लिंक नही जुड़ पाता था और एक आक जुड़ भी गया तो पुरे ख़्वाब का अर्थ  समझ पाना संभव नही होता थ। मगर फिरभी कई साडी चीज़ें देखि जो बिलकुल वैसे ही हो गयी जो मैंने किताब ख़्वाब नामा में पढ़ा था।
अफ़सोस और दर्दनाक तब हुवा जब मैंने ख्वाब में देखा की लड्डन चाचा (बदला हुवा नाम ) के घर में किसी की शादी हो रही  है । सुबह उठके लगा की आज किसी की मौत होगी उनके घर जैसा के मैंने किताब में पढ़ा था और सही में शाम होते होते ख़बर मिली के एक मौत वाकई हो गई उनके घर मे।  और ऐसा एक बार नही कई बार हुवा कई बार कई लोगों के बारे में मैंने जो सपना देखा वो ताबीर के मुताबिक सच हो गया और कई बार नही भी हुवा । और इस तरह आज तक न समझ पाया की आखिर कोनसे शादी से मौत होती है  और कौनसा सपना झूठा था और क्यों मैंने  ही ये सपना देखा किसी और ने क्यों नही देखा फिर एक ही तरह के सपने के ताबीर अलग अलग कैसे हो सकते।
मिडिल स्कूल के पढाई के जमाने में आवासीय विद्यालय में पढता था और वहां भी अलग अलग तरह के बच्चे थे कुछ का कहना था की सपना जो आप देखते हो उसका उल्टा होता है। आवासीय विद्यालय में बच्चे ज्यादा तर यही सपना देखते हैं की उनके अभिवावक उनसे मिलने आये हैं और कई बार अभिवावक सही में उसी दिन आ भी जाते थे। ये बस केवल एक संयोग था सपने की हक़ीक़त इसका मुझे कोई अंदाजा नही है।  मगर इस सपने में कई इख्तिलाफ था बच्चों में की अगर आप अपने अभिभावक को आते देखोगे तो दूसरे के अभिभावक आएंगे और कई बार ऐसा भी होता था । मगर ये बात तो सिर्फ मंघृन्त है क्यूंकि छोटे छोटे बच्चे माता पिता से दूर रहकर और देख भी क्या सकते है। अभिभावक को ही देखेंगे न।

कई बार सपने देखते हुवे भी यह एहसास होने लगता है हम सपना देख रहें हैं। कई बार आँख खुल जाती है और एहसास हो जाता की आप सपना देख रहे थे मगर फिर जब आप की आँख लगती है तो आपका सपना वहीँ से शुरू हो जाता है। जैसे आपको किसी ने इंटरवल में जगाया था और सुला के कहा पिक्चर अभी बाकि है दोस्त।
मैंने अपने ज़िन्दगी के हर बदलाओ को अपने सपने में देखा है भले वो मुझे बाद में समझ आया हो मगर मैंने हर वो तब्दीलियों को महसूस किया है जो मेरे साथ होने वाला होता है। और आप भी करते होंगे मगर शायद उसपर विचार नही करते होंगे।
क्रमशः। .............................

Tuesday, 15 March 2016

और बस यही सवाल के ऐसी क्यों है ये दुनिया।

बहुत डरा हुवा इंसान क्या कर सकता है। किसी को केवल अपने डर का एहसास ही दे सकता है। डर जरुरी नही दुनयावी ज़िन्दगी का हो रूहानी भी हो सकता है। कोई किसी को ख्वाब में भी डरा सकता है।  या कोई सपने में ऐसे सपना देखता हो जिससे वो दिनभर अपने आपको डरा-डरा सहमा-सहमा सा महसूस करे। जरुरी नही के ये उसके चेहरे पे दिखे मगर ऐसा हो सकता है। किसी का  धोखे से आँख बंद हो जाये और कोई उसे उसी पल  कुछ कह जाये या कुछ दिखा जाये और अचानक से जब आँख खुले तो सामने कुछ भी न हो मगर डर का एक साया जो सेकंडो में डरा गया हो वो ख्यालों में घूमता रहे। लोग कहते हैं जो दिनमे सोचो वही सपने में आता है मगर भला ऐसा कौन आदमी है जो अपने बारे में ही बुरा सोचता होगा। ये हालत ऐसी होती है की आपको ठीक से कुछ याद नही रहता बस एक डर का एहसास होता है।
किसी को क्या पता इंसान कब कहाँ और क्यूँ किस हाल में होता होगा बस सबको अपनी धुन है। जिसके लिए फ़िक्र करो शायद वो कभी आपका जिक्र भी न करता हो। और करेगा भी क्यों ?जिक्र तो मालिक का होता है मगर मैं उस जिक्र की बात नही कर रहा हूँ।

Monday, 14 March 2016

औलाद एक फूल

हर कोई ख़्वाब देखता है कोई सितारा मिले
जो भी मिले उसे ज़िन्दगी में प्यारा मिले।

तमन्ना ऐ इश्क़ थी औलाद की आमद से
दिन रात चाहत में डूबा रहा के एक उज्यारा मिले।

नाज़ों से पाल के मालियों सा सजोया  हैं
फूल देखके कहता हूँ कोई फल नयारा मिले।

चाहतों से भरा एक उम्मीद का दरख्त
तमन्ना होती हैं की अब हमको हमारा मिले।

देखता नही है अब औलाद एक बीमार की तरफ
परवरिश में लूट गया जो बाप के एक सहारा मिले।

रब से मांगू तो क्या मांगू मैं सरफ़राज़
कोई बख्शीश का हमें भी एक इशारा मिले

शिक्षा वयवस्था एक व्यंग।


आज से नही ये तब से देख रहा हूँ जबसे पढ़ने के लिए स्कूल जाता था। मेरी प्राथमिक शिक्षा गाँव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में हुई है। तबसे लोगों को रोना रोते और मास्टर साहब को स्कूल में सोते हुवे देखता आ रहा हूँ। सरकारी स्कूल में पढाई अगर नही होती है तो इसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। मास्टर साहब  को ये पता होता है की कोई पूछने वाला नही है क्यूंकि यहाँ सम्पन व्यक्ति  के बच्चे पढ़ने नही आते है और जो लोग कभी कभार कुछ पूछ लेते हैं वो सिर्फ अपना रौब जमाने के लिए ही ऐसा करते है शिक्षा की गुणवक्ता से उनका कोई सम्बन्ध नही होता है।
सरकारी स्कूल में बारह्वी क्लास पास व्यक्ति नही पढ़ाता है मगर वही बारह्वी पास व्यक्ति प्राइवेट स्कूल में होता है तो खूब पढ़ाता है। और हम सब खूब शौक से बच्चे भेजते हैं और खुश होते हैं की बच्चे को प्राइवेट स्कूल की शिक्षा दे रहे हैं। और जो कोई बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं उनका आत्मविश्वास इतना गिरा दिया गया है की उनको लगता है की हम गरीब हैं इसलिए इस स्कूल में आये हैं।
जब बात शिक्षा मित्र की हो तो कुछ लोगों को बहुत रोना रोते   देखता हूँ की शिक्षा मित्र पढ़ाते नही हैं क्यूंकि उनको खुद नही आता है  ऐसा कुछ लोगों के साथ हो सकता है मगर सब के साथ नही है। सवाल उठता है उन सब सम्पन शिक्षकों  पर जो इनका उपयोग नही कर पाते हैं। प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के लिए क़ायदे से क्या योगयता होनी चाहिए ? कमसे कम इतना तो पढ़ा ही सकते हैं की उनके जैसे वो कहीं रजिस्टर पे दस्तखत करके कुछ कमा सके। या रेलवे प्लाट फॉर्म पे लिखे हिंदी में स्टेशन का नाम पढ़ सके।
कुछ लोग ऐसे  हैं जिनको दिक्कत होती है तो उनको स्कूल के दूसरे कार्ये में लगा देना चाहिए और सम्पन शिक्षक को पढ़ाने पे ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
कल मेरी बात एक नए नियुक्त शिक्षक से हुई वो अपना वेतन बताने लगे और कहा की अभी अगले महीने केस करना है की समान काम के लिए सामान वेतन दिया जाये। मुझे या किसी को भी कोई आपत्ति नही हो सकती की आप सरकार से क्या मांग रहे हो मगर कभी ऐसी योजना बच्चो के हित में भी बना लिया करें।
बहुत बड़ा संघठित संघ है शिक्षकों का इतना संगठित और प्रभावशाली के अपने पे आजाये तो सरकार हिला दे मगर कभी इन्होने ऐसा कोई काम नही किया जिससे शिक्षा में कोई सुधार हो ये केवल सरकार पर केस और शिक्षकों से हरताल कराते हैं। अंत में जीत इनकी हो जाती है मगर हार जाता है एक दबा कुचला समाज का खास तबका। जिसको कोई पूछने वाला नही है उनके बच्चे दिनमे एक वक्त का खाना इसीलिए खा पाते हैं क्यूंकि विद्यालय में खिचड़ी मिलती है।
क्यों न करे शिक्षक जनगणना या  पशुगणना ? ये एक माध्यम हैं जिससे शिक्षक अपने छेत्र के लोगों से रु बरु हो कर शिक्षा से अलग हटकर दूसरे तरीके से शिक्षा की तफर उनको मोहित कर सकते हैं। मगर शिक्षकों को ये पसंद नही हैक्यूंकि  इन कामों में  जवाबदेही होता है अगर गलत किये तो पकडे जाने का डर होता है। रिस्क है इस काम में और दुनिया में अगर  कोई सबके कम रिस्क लेने वाली जाती है तो वो हैं सरकारी कर्मचारी की जाती ये रिस्क लेना ही नही चाहते ये सिर्फ रूल बुक पढ़ते वो भी जो इनको अच्छा लगता है। ये काम को  न से शुरू करते हैं और शुरू होने से पहले ही खत्म कर देते हैं।
अगर किसी को शिकायत है अपने सरकारी नौकरी से तो एक शाम किसी प्राइवेट नौकरी वाले के पास आकर देखें क्या होता है उनका। एक सुबह कभी प्राइवेट कंपनी के दफ्तर आएं और तब पता चल जायेगा की सौ रुपये की नौकरी के लिए एक सेल्स मैंन दिनभर धुप में घूमता है और शाम को अपने हाकिम के गलियों से पेट भरके घर चला जाता है और तब भी खुश है की आज एक और दिन का तनख्वाह जुट गया उसके खाते में। इससे भी मन न भरे तो कभी एयरपोर्ट आजाईये और देखिये की कैसे बकरियों  की तरह हवाई जहाज में  भर के लोगों को दस हज़ार की नौकरी के लिए एक लाख रूपया चार्ज करके अपने बच्चों से दूर भेजा जाता है।
शिक्षा कभी भी शिक्षकों के लिए लोभ और राजनीत से अलग नही रहा है मगर इसी में दुनिया आगे बढ़ती गयी है और इसके विस्तार में शिक्षकों का बड़ा हाथ रहा है।
अगर शिक्षा लोभ और राजनीत से अलग होता तो द्रोणाचार्ये एक लव्य से अंघूठा नही मांगते और ध्रुपद से पांडव का युद्ध  कराके अपनी दक्षिणा न मांगते।
इसलिए समाज के सबसे जिम्मेदार कर्मचारी वर्ग को विहीन और कमजोर नही होना चाहिए।
दृढ संकल्प और सच्ची निष्ठां का एक उदहारण तो एक बार देना ही चाहिए के कुछ है जो बाकी है अब भी इनमे। 

Sunday, 13 March 2016

व्यंग

इतनी विविधता और एक बड़े दायरे के साथ किसी नतीजे तक इतनी जल्दी पहुंच पाना बहुत मुश्किल होता है। फिरभी लोगों को आये-दिन मिंटो में दूसरे के खिलाफ फैसला सुनाते हुवे देखता हूँ। पता नही इनकी सोच और जुबान हमेशा ऐसे ही चलती है या ठहराओ भी आता है। 
किसी के बेबसी का फायदा न उठाऊ उसे अपनी बात रखने का मौका दो और उसका सहारा बनो। सहारा नही बनसकते तो कम से कम चुप रहो।

दिल व दिमाग

किसी के दिल का दर्द आदमी तब तक जान सकता है जब तक उसे अपने दिल के ज़िंदा होने का एहसास हो। जब दिल मुर्दा हो जाये तो इंसान क्रूर बन जाता है। उसको भावनाओ की कोई परवाह नही होती। और इंसान को इंसान रहने के लिए उसके दिलका ज़िंदा होना  जरुरी है। क्यूंकि बिना भावनाओ के इंसान का आस्तित्व एक मशीन जैसी है। भावना दिल से आती है  दिमाग तो एक रोबोट जैसा है जिसमे आपने जो डाला है वो उसको संचालित करता है। मगर आज कल लोग दिल से ज्यादा जोर दिमाग  पे लगाते हैं और नतीजा आपके सामने है। इंसानी ज़िन्दगी मशीन और भावनाहीन बनती जा रही है।
उदहारण के केलिए जैसे .... बच्चों को दिमाग लगाने की बात कहते हैं और इस करम में दिलके सुनने की  मनाही होती है और वो बड़ा होकर दिमाग ही लगता फिरता है और तब हम कहते हैं "पता नही कैसे बिगड़ गया इसके अंदर कोई सेंस नही है"। मगर ये सब तो हमने खुद किया है।

Wednesday, 9 March 2016

वो मुलाक़ात रहमत नही ज़हमत है।

कितना अजीब है न सालो बाद आप किसी के मिलो और बादमे पता चले वो मुलाक़ात रहमत नही ज़हमत है। बहुत अफ़सोस है अपने आप पे के मैं इतने समझदार क्यों नही हूँ। ये दुनिया कहाँ से कहाँ निकल गयी मगर हम आब भी वहीँ बैठे हैं। तालीम और सलाहियत में कोई कमी नही मगर वो सलाहियत का दुरूपयोग और अपने आपको सबसे ऊपर समझना इंसान की बड़ी भूल है। अल्लाह पाक ही जो किसी को के लिए खड़ा करता है और किसी को किसी के  खिलाफ। जब एक पत्ता उसकी मर्जी के बिना नही हिलता तो कोई मुझे कैसे नुक्सान पहुंचा सकता है। 

Tuesday, 8 March 2016

Women Day

All most all, we all messaging and quoting for women's day but how many of us has raised our voice on women exploitation? No, I think not a single person here is really intended to save women dignity.
And why? How exploited can believe on the exploiter to save her from exploitation.
It should be women, herself to raise up and vibrate the atmosphere with the roar to save herself.There is a need of one Ambedkar in women too.
I am not in favour of hot blood movement by women to get her dignity but they may success more easily by mind game movement as they are the man who is treating himself as superior over women won't be controllable in hitting manner they need to push down slowly.

Monday, 7 March 2016

अनेक रूपी नशा

अनेक रूपी नशा
नशा ! ये शब्द सुनते ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। और फ़ौरन ही दिमाग में एक ख्याल आता है मदिरा का, कोकीन का, सिगरेट का, और न जाने क्या क्या जो भी आपने अपने जीवन में सुना या देखा हो वो सब मष्तिष् में घूमने लगते हैं।
लेकिन  नशा का संसार यहीं सिमित नही है जो केवल शारीरिक एवं मानसिक एहसास का अनुभव कराता हो। नशा तो ये भी है की कोई मोबाइल खरीदने के लिए अपनी किडनी बेच देता है नशा तो ये भी है की कोई दौलत मंद बनने के लिए अपनों को छोरदेता है नशा तो ये भी है की कोई अहंकार में इंसानियत को भूल जाता है। और न जाने क्या क्या। ....
मगर हमारे समाज नशा के एक छोटे से रूप को अस्वीकार करके बाकि के सारे नशा को स्वीकारा हुवा है। और ये स्वीकार्ये नशा -नशा की सबसे बड़ी त्राश्दी में से है।
इस दुनिया में कुछ भी स्वीकार्ये या अस्वीकार्ये नही है मगर हाँ उसके लिए सिर्फ अपने दिल को मानाने की ज़रूरत है। एक मदिरा पिने वाला व्यक्ति ये कहता है की मैं अपने जीवन में सारा मेहनत तो घरवालों के लिए करता हूँ केवल मदिरा ही तो अपने लिए है और ये छोटी सी चीज़ के लिए मैं ज्यादा नही सोचता।
किशोरों में बढ़ता टेकनोलोजी का नशा। खास तोरसे आजकल के किशोर में कुछ अलग तरह का नशा दिख रहा है जो शायद समाज में फैले आम नशा से कहीं ज्यजा खतरनाक है। एक किशोर का मुझे पिछले दो दिनसे फ़ोन आरहा था के उसको पैसे की सख्त जरुरत मैं उसे ३००० रुपए दे दू पूछने पे लम्बी कहानी सुनाई और २ दो महीने के बाद लौटाने का वादा करने लगा। मुझे लगा शायद वो किसी मुसीबत में हो और वाकई उसे मदद की जरुरत हो। मगर पता करने पर मालूम ये हुवा की उसे मोबाइल खरीदने के लिए पैसा चाहिए। उसने २४ घंटे से भी कम समय में २० से भी ज्यादा बार फ़ोन किया।
क्या ये  नशा नही है।
और भी उदहारण हैं जिससे ये साबित हो जायेगा की इस समाज का हर व्यक्ति नशा में रहता केवल उसका रूप अलग अलग है।
सोचिये हमारे और आपके अंदर वो कौनसी चीज़ है जो नशा की तरह है। 

Thursday, 3 March 2016

Last stretch speech of Mr.PM on 03/03/2016 in Indian parliament (Accountability of officials)

Last stretch speech of Mr.PM on 03/03/2016 in Indian parliament (Accountability of officials)
Mr.PM speech in parliament ends with the drastic idea, I like the things which he discuss, the accountability of officers.Really there is a lack of accountability in officials and that's why they are not performing, simply they supporting the political parties of their own will and became senseless in those time when they are in power. As we have seen the lawyers reaction in recent days in Kurkar Duma court, Delhi.Why Delhi Police chief not reacted in a well-defined manner? That's the lack of accountability of official toward citizens neutrality Or we may see the use of CBI, use of police and other government machinery.
This is not limited to any government or region but became a viral in our country now adays. 
But they are the only politician who encourages this thing to bow down and blow down the opposition or the person who not like him.
Before criticising anyone we have to go on the root cause of this problem.
A politician is known for power and power comes by using government machinery and misuse of government agency lower down the officials accountability; if this nice idea of Mr.PM will be implemented then the politician will lose his main benefit of being a politician.
Mr.PM have good ideas like some other PM but he or any PM can't do the things of their own choice; to live in power they have thought for the chair first and the chair is not the concern for him only but for all other agency and linked business man along with the religious organisation as they are the one who bring him here, there is much other cause which will disrupt the PM idea.



Saturday, 27 February 2016

शरीफ़ाना ख़यालात

कुछ लोगों से मिलना बहुत अच्छा लगता है और कई बार कुछ लोगों से बिछरना बहुत बुरा लगता है आप बिलकुल इमोशनल होने लगते हैं। वजह जो भी हो मगर बहुत उलझन है इस लाइफ में ऐसा क्यों नही होता की अगर आप एक शरीफ इंसान बनना चाहते हो तो सबकुछ शरीफ़ाना क्यों नही होता। क्या ख़यालात शरीफ़ाना होना इंसान का शरीफ होने में मदाद नही कर सकता क्या? 

विचलित मन

कभी कभी मन बहुत विचलित हो जाता है। पता नही क्यों?
मार इतना एहसास हुवा की जब आप अपने बस में न हो तब आपका दिमाग बिलकुल डेड हो जाता है। टेंशन बहुत ख़राब चीज़ है ये इंसान को वक्त से पहले बूढ़ा और जरुरत से ज्यादा मजबूर करदेता है। कभी कभी आप टेंशन में होते हैं जिसकी कोई जरुरत नही होती ठीक से सोचो तो वो टेंशन बेकार होता है। क्यूंकि बेकार चीज़ों में वक्त जाया करना अपना नुक्सान होता है।
इंसान को ज़िन्दगी में एक सही सरपरस्त या उस्ताद जरूर मिलना चाहिए जिससे वो मश्विरा ले सके और अपने दिल की सब बातें बता सकें। मगर यहाँ कोई सरपरस्त नही और न ही कोई उस्ताद है बस एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई है। 

Friday, 26 February 2016

आदाब ऐ ज़िन्दगी में भी अदा होते हैं कई सुन्नत
फिरभी लोग मजारों पे जाके दिखे मांगते मननत

दुवाओं में बात सिर्फ इतनी सी है  मेरे आक़ा
के मैंने रजा मांगी तेरी  और उसने जन्नत

                                                         शर्फू
वैसे इंसानी जज्बात और खयालात के कई किस्से नुमायां जिनसे नए उम्र के नौजवानो और किशोरों को अवगत कराना हमारी ज़िम्मेदारी होती है। क्यंकि ऐसा ही समझ कर कोई हमसे बड़ा भी हमें इन चीज़ों से कभी अवगत करा चूका होता है अगर उस वाक्यात और किस्सों में कुछ जुरता है तो वो होता है हमारा अपना अनुभव।
मेरी उम्र कोई १० साल रही होगी जब से चीज़ों को परखना शुरू किया था घरके हालात ऐसे न थे के बचपन ऐश ओ आराम में गुजारूं मगर हाँ फिरभी बहुत अच्छा था मेरा बचपन।  बचपन में आदमी क्या मिस करता है ये उस वक्त पता नही चलता क्यूंकि  उस वक्त इन चीज़ों की फ़िक्र नही होती जो आपके पास होता है वही आपको सबसे बड़ा बलवान और धनि बनाता है। दूसरी चीज़ों के मिस होने का पता तो आपको तब चलता है जब आप जी होश हो जाते हो क्यंकि उस वक्त आप ये समझ पते हैं की अच्छा ये चीज़ भी है बचपन ऐसा भी हो सकता था। यही कारन है की ज्यादा तर लोग अपने बचपन को सही तरीके से एन्जॉय न कर पाने की शिकायत करते है।
मेरे साथ मेरे जिंदगी में कई मिरेकल हुवे है कई ऐसी चीज़ें हुईं है जिसकी मुझे उम्मीद न थी। शायद सबके साथ होता होगा। अनजानों का सहारा और मुसीबत में मदद उसमें से कुछ एक है।
सबसे गहन छाप जो मेरे दिमाग पे किसी चीज़ ने छोरा है वो ये है की  समाज और रिस्तेदार जो मेरा मजाक उड़ाते हैं उससे मुझे ऊर्जा मिलती थी न जाने कोनसे सूत्र लागु होते थे मगर मुझे ऊर्जा मिलती थी। ऊर्जा कुछ कर गुजरने की, ऊर्जा शांत रहने की, ऊर्जा बातों को भूल जाने की, ऊर्जा संस्कारी बनने की, ऊर्जा पलट कर जवाब न देने की, ऊर्जा हालत से लड़ने की, ऊर्जा भूखे रहने की, ऊर्जा  पढ़ते रहने की, ऊर्जा आंसुओं को पि जाने की ऊर्जा वक्त का इन्तेजार करने की और ऊर्जा आपने आपको समझने की इत्यादि। ...
जब कोई मेरा मजाक उडाता और वहीँ बैठे किसी दूसरे का होसला अफ़ज़ाई करता एक ही चीज़ों पे तो ये बहुत खलता था मगर मैं इसको सकारात्मकता से लेता था और अब भी लेता हूँ क्यंकि ये बात मुझे ये सोचने पे मजबूर करती थी के किस वजह से कोई हमरा मजाक उडाता है क्यों कोई हमारी एक भूल को मेरे खिलाफ हथियार बना के इस्तेमाल करता है क्यों कोई मेरे सामने मेरे पूवजों के वैसी बाते करता है जससे वो मुझे अपने से कमतर दिखा सके।
और इनसब का कारन था की वो हमरे अतीत से नफरत नही  करते थे बल्कि वर्तमान से जलने लगे थे और वो हमें एहसास ऐ कमतरी में झोंकना चाहते थे। मगर किसी का गिरना या  ऊपर उठना ऊपर वाले के हाँथ में है।  सो जिन्हे ऊपर उठाना होता वो मालिक उसको इतनी सब्र तो जरूर देता ही की वो समाज के साइलेंट किलर के वार को बे असर करदे।
अगर आपका कोई मजाक उड़ाए तो आप क्रोध व्यक्त न करें और न ही कोई जवाब दे आप  अपने काम में लगेरहें यही उसके लिए सबसे बड़ी परेशानी की वजह होगी की आप पे उसके बातों का कोई असर नही हो रहा है। ऐसे लोगों का मकसद ही होता है आपको क्रोधित कर आपको मूल मुद्दे से दूर करदेना। इसकी मिसाल बस ऐसे ही है की अगर आपको कोई निचा दिखाए तो आप उस ऊंचाई पे चढ़ जाइए जहाँ से लोग अपने आपको छोटा महसूस करने लगें। और सबसे बड़ी बात आप किसी से उससे अपने ऊपर किये गए अत्याचार का बदला न लें।  माफ़ करदें फिरदेखिए की वो आपका दोस्त बंजायेगा और लोगों में आपकी खूबी कहता फिरेगा। और तरह से आपका एक दुश्मन काम हो जायेगा।
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्यंकि मेरे ख्याल में नए दोस्त बनाने से कहीं बेहतर ये होता है की आप अपने दुश्मन काम करलें।
कये दोस्त बनके हमेशा इंसान फायदे में नही हो सकता मगर दुशमन करके इंसान हमेशा फायदे में ही रहता है। 
आज जुमा का दिन है। एक खास दिन मुसलमानो के लिए और एक खास दिन मुस्लिम देशो में काम करने वालो के लिए क्यंकि इन देशो में जुमा को ही हफ्ते की छुट्टी होती क्यंकि मुसलमानो में ये इबादत के लिए एक खास दिन हैं।
मेरी ज़िन्दगी में जुमा की बहुत अहमियत है जब मैं बोर्डिंग स्कूल में पढता था ( सल्फिया स्कूल, दरभंगा ) तब वहां भी इसी दिन छुट्टी होती थी सुबह से ही मनो अफरा तफरी का माहोल हो जाता था जैसे आज ईद हो करीब २०० सौ से ज्यादा बच्चे हॉस्टल में रहते थे और इस वजह से बहुत भीड़ भाड़ और चहल पहल हुवा करता था। मनो कोई रेलवे स्टेशन हो हर कोई अपने एक खास मकसद और मजिले ऐ मक़सूद तक पहुँचने के लिए यहाँ आया हो।  सुबह से ही बच्चे क्रिकेट खेलते हुवे दिख जाते थे हु हल्ला शोर शराबा तालियों की गरगराहट जैसे सुबह के पहले पहर में चिरयों ने चमन में एक साथ कोई साज छेड़ा हुवा हो।
फिर ११ बजते २ सभी तैयार होकर मस्जिद की तरफ चलदेते थे जहाँ मस्जिद का एक खास हिस्सा हम बच्चों के लिए फिक्स था वहां  कोई दूसरा नही आता था।
बड़ा खुशनुमा लम्हा था वो मेरे ज़िन्दगी का जहाँ सिर्फ दो काम था पढ़ना या खेलना। मुझे क्रिकेट से दिलचस्पी नही थी सो  या तो मैं कोर्स की किताबें पढता था या कुछ ड्राइंग बनता या कहानियों की  किताबों  में मशगूल रहता था।
तब सब काम अपनी मर्ज़ी से करता था और अब काम ज़िन्दगी के इशारे पे करता हूँ। ग़ुलाम हूँ ज़िन्दगी का। ज़िन्दगी के ऐश ओ आराइश और ज़िम्मेदारियों ने इतना घेरलिया है की उसकी भरपाई के लिए सिर्फ पैसा पैसा बस यहीं देखता हूँ और कुछ नज़र नही आता। सिर्फ झूठी और खोखली शान के लिए जीता हूँ। और इसमें कोई शक नही की इस ज़िन्दगी  के आपा धापी में इतना उलझ गया हूँ की आख़िरत की ज़िन्दगी के तैयारी में कोताही हो जाती है।    

Thursday, 25 February 2016

रिज़्क़ न सही ऐ खुदा मगर नियत हलाल दे

या रब अपनी कुदरत का कुछ जोहर उछाल दे
इस खाकसार की ज़िन्दगी में कुछ रंग डाल दे

कुछ आरज़ू थी फकत के उनसे रु बरु होते
जो मेरे दिलमे हैं वो उनके भी दिल में डाल दे

तू बन्दों से बड़ा मुहब्बत करता है ऐ खुदा
कुछ आशिकी के गुण मुझमे भी डाल दे

छोटी सी मुरादों का तलबगार रहा  है शर्फू
रिज़्क़ न सही ऐ खुदा मगर नियत हलाल दे


Thursday, 28 January 2016

वक्त ने अपना हुनर दिखा के हुनर मंद कर दिया

वक्त ने अपना हुनर दिखा के हुनर मंद कर दिया 
उनके सितम ने  मुझको अकल्मन्द कर दिया।

बेबस हो गया हूँ या रब इस बेगैरत दुनिया से
अपने हालात ने मुझे अब फिकर मंद  कर दिया।

देखता रहा अपने वाबस्ता लोगों की तरफ
जिन्होंने एक झटके से ही मुझे नज़र बंद कर दिया।  

मेरे तरपने से उन्हें इतनी उल्फत क्यों हैं
सांसो को बेच कर जिनको मैंने सेहत मंद कर दिया।

बेच के अपना ज़मीर कभी उनको आगे बढ़ाया था
और फिर  ज़िन्दगी अपनी एक पैबंद कर दिया।

Tuesday, 5 January 2016


Need brings the person thirsty and searching one. Yes, it is their need; the need which is always beyond the satisfaction and below the measurable depth of universe; that is the reason behind the curse of human life. Human is a kind of animal who even don’t have right to call himself as an animal as this call may insult the animal. Animal is animal up to their requirement of food only but human is going to unbound limit of their requirement; then why not we call us as moron animal.

We always searching a reason to fight with the same kind of species since beginning of civilization, from stone stage to the age drone. Tussled were always by limited person only but that engaged the whole civilization. King or democratic head is only the face of confrontation but the real culprit behind the war and mutiny is unknown forces which keep on rotating around the throne. Otherwise how a good one became depraved, malicious, unscrupulous, diplomatic, lenient, and many more……   after accessing the power of throne. I think it is throne which keep on rotating the world by unknown nuisance forces, there is some kind of shade over that.

I think there is a need of some other type of administration where much of public involvement required and many other need to be added to balance the public hunger and unknown forces of throne. I know talking like this kind of thing is giving a scientific argument in religious era of our civilization. But there is need to change in system as this so democratic is no more democratic.
 

Sunday, 3 January 2016

नही दुश्मनी कभी गैरों से लिया हमने

कोई क्या करे जब पूरा आसमान ही निचे आजाये
मंज़िल कोई पहुंचे कैसे जब हर सिम्त से तूफान आजाये।

नही दुश्मनी कभी गैरों से लिया हमने
फासला दिलो में हो तो दुश्मनी खुद आजाये।

राज की बात बताते हुवे डर लगता है मुझे
मगर दुखे दिलसे ये खुद ही बाहर आजाये।

मायूसी  ज़िन्दगी  में   सुना है एक कुफ्र है
कुछ नज़र नही आत तो मायूसी खुद ही आजाये।

कौन नही चाहता अपने आप  में खुश रहना
शर्त ये  है  की सर पे  कोई बोझ ना  आजाये।

खुदा की दी हुई मुश्केलिन हैं ये ऐ सरफ़राज़
वही  कम  करेगा  जब  सही वक्त  आजाये।

 

Friday, 1 January 2016

Yes, 2015 is gone to storage house which can be use only for slide memories and 2016 came out from the womb of time. Wishing you all a happy and prosperous new year 2016, may all your right dream come true  with first ray of sunlight in the delighted  morning of 2016.
In beginning stage of my childhood we used to celebrate it with nice delicious food like kheer & puri cook by my loving mother who is no more with us; may ALLAH include her in those parents who will go in jannah without judgement and grant her a top place in Jannah.
Well, it was a great year of my life with few major irregularities; how time passes and we grew up by crossing year and year and start facing different types challenges year by year.How time goes and we grew up enough to understand the real meaning of new year “that bring up the sense of warning and getting loss in allotted time on the earth”.I believe in ALLAH who plan everything for us, perhaps it was God who plan the things and that get done as per the sketch.There is no life on earth without irregularities and up down, we the gang of moron animals feel great when get something and making fun of other if they didn’t. Why not we think these all plan and execute by a super power that see every creep movement and can give you the same predicament upon which you are laughing now.

Thursday, 24 December 2015

क्या देखूं ज़िन्दगी में जब आईना ही झूठा हो

क्या देखूं ज़िन्दगी में जब आईना ही झूठा हो
इंसानियत मर ही जाती है जब दिल ही टुटा हो।

कुछ वक्त  गुज़ारा था  उलझी सी तमन्ना में
ज़िन्दगी बदतर नज़र आती है जब साथ ही छूटा हो ।

यही कीमत थी मेरे परवाज़ व रफ़्तार  की ऐ  रब
जहां ज़िन्दगी ने मासूम को कई बार लूटा हो।

कैसे परखून मैं हमदर्द वो आश्ना को ऐ  सरफ़राज़
चेहरे पे चेहरा डाले सिर्फ इंसानियत का ही मुखौटा हो।
 

Saturday, 19 December 2015

छोटों को छोटा कहकर कैसे बड़ा बन जाऊंगा।

अपने हर मामले का खुद गवाह बन जाऊंगा
छोटों को छोटा कहकर कैसे बड़ा बन जाऊंगा।

मसरूफियत की हद न तोड़ो बे वजह बे काम में
अपनों से दूर होकर कैसे अच्छा बन जाऊंगा।

अदब सीखा है यहाँ कई  बेअदबों की महफ़िल में
लफ़्फ़ाज़ों की भीड़ से हटके कैसे सही बन जाऊंगा।

ज़िन्दगी मिटटी के मिटटी में मिलने का खेल है
इस मिटटी के निचे जा के वहीँ मकीं बन जाऊंगा।

बेवजह इतराता फिरूँ इस कोने से उस कोने
चार दिन की ज़िन्दगी फिर गुमनाम बन जाऊंगा।
 

Thursday, 17 December 2015

मैं शरीफ हूँ मेरे निचे वाले चोर हैं।

केजरीवाल ने राजेंद्र को अपना प्रिंसिपल सेक्रेटरी क्यूं बनाया जबकि उनपे भ्रष्ट्राचार का आरोप पहले से ही लगा हुवा था। केजरीवाल जो की चुनाओ में उम्मीदवारों की जाँच करके उन्हें टिकट देने की बात की थी वहीँ एक प्रिंसिपल सेक्रेटरी को ऐसे कैसे रख लिया जो एक नही कई अरूप में घिरा हो।  ये सवाल किसी और सरकार से हम नही कर सकते क्यूंकि और दूसरी सरकारें के लिए ये बात कोई नयी नही है मगर केजरीवाल एक शरीफ और साफ़ नेता माने जाते हैं और उनका राजनीती सफर  भी इसी आधार पे शुरू हुवा था। केजरीवाल पहले तो ईमानदार और जनता के नेता थे मगर शायद अब उनको लग गया है की गद्दी पे बने रहने के लिए सिर्फ ईमानदारी से काम नही चलेगा और वो अब वो सब करना चाहते है जो एक नेता होने के लिए न्यूनतम योगयता में शुमार होता है। खैर ये तो होना ही था। ये तो इस देश का इतिहास रहा है की लोग अपने आपको ऊपर करने के लिए साफ़ सफ्फाफ़ दिखाते हुवे राजनीती शुरू करते हैं और बाद में भ्रष्टाचार में विलुप हो जाते हैं जैसा की हमने लोहिया के आंदोलन से जन्मे नेताओं में भी देखा है।
 अब बात आती है अपने आपको शरीफ कहलवाते हुवे अपने निचे भ्रष्टाचार होने देना वैसे ये कोई नयी बात नही हैं। देश में ईमानदार कहे जाने कई नेताओं ने खुद  को  शरीफ कहलवाते हुवे अपने नाक के निचे बुराई और भ्रष्ट्राचार को बढ़ावा दिया है मगर उनके प्रवक्ता और खुद ऐसे नेताओं ने  खुद को पाक साफ़ कहा है। मगर कैसे अगर आप अपने सामने या अपने निचे बुड़ाइ और भ्रष्ट्राचार को नही रोक पते हैं या बढ़वा देते है तो आपका अपराध उनसे भी बड़ा क्यों न माना जाये।
चाहे मनमोहन सिंह हों या अरुण जेटली या श्री नरेंद्र मोदी हों ये सभी वो लोग हैं जो ईमानदार तो हैं मगर भ्रष्टाचार नही रोक पाये। सवाल ये उठता है की इनका अपराध सीधे सीधे अपराधी से बड़ा क्यों नही है। 

Tuesday, 15 December 2015

क्सिका कद कम हुवा केजरीवाल का या केंद्र सरकार का

क्सिका कद कम हुवा केजरीवाल का या केंद्र सरकार का

ऐसा लगता है केंद्र सरकार और सीबीआई सारा इन्साफ और ईमानदारी सिर्फ दिल्ली सरकार में ही तलाश रही है। भ्रस्ट लोगों पे कार्रवाई जरूर होना चाहिए इसमें कोई दो मत नही है मगर ये सिर्फ दिल्ली पे और केजरीवाल सरकार पे ही लागु नही होता है। दिल्ली सरकार पे एक के बाद एक हमला और केजरीवाल को बदनाम करने की कोशिश करना एक दम से केंद्र सरकार की हताशा दर्शाती है
इससे कांग्रेस और बीजेपी  में कोई अंतर नही रह जाता है। जैसे कांग्रेस ने किया वही बीजेपी भी कर रही है। मोदी सरकार को अपना काम करने की पूरी छूट है लोक सभा में बहुमत की भी कमी  नही है और राज्ये सभा में भी बहुमत मिल सकता है।  मगर ये मूर्खता पूर्ण कदम ही है जो वहां तक पहुँचने से रोक रही  है। जैसे ताज़ा घटना बिहार की ही है । बिहार में जनता ने उनकी दिखावटी और झूठी बातों को नजरअंदाज करके बुरी तरह से सड़क पर ला दिया।
 ये सारी कवायद केजरीवाल जैसे नेता को बेईमान मक्कार और चोर बनाने के लिए है जैसा की हिंदुस्तानी नेता के अंदर ये सब गुण पाये जाते हैं। जहां मोदी सरकार अपने आपको एक चुनी हुई सरकार कहकर विरोधोयों पे हमला करती है वहीँ दिल्ली सरकार उनसे ज्यादा प्रतिसत से चुन के  आने  वाली सरकार है मगर मोदी सरकार को दिल्ली के सरकार से इतनी निराशा और जलन क्यों है। 
 सवाव यह उठता है कि केंद्र सरकार जिस तरह से आने वाले लोकतांत्रिक इतिहास के लिए बदले की भावना में गलत तरीकों से सत्ता के दुरुपयोग के उदाहरण सामने रख रहा है, इससे और कुछ नही बस कुछ पुराने कोंग्रेसी नेताओं की याद आती है और शायद मोदी एक नया इतिहास लिखना चाहते हैं अपने क्रूर शासन का।  इसी लिए ये क्यों  न माना जाये की ये सरकार पिछले सरकारों से अलग नही है या फिर ये मान लिया जाये की सरकार चलाने की ये न्यूनतम योगयता है
 शिवराज जैसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री को शह देकर, निहाल चन्द्र को अभी तक मंत्रीमंडल में रखकर, वसुंधरा को राजस्थान में क्लीन चिट देकर मोदी ने साबित किया कि वे एक कमजोर और भ्रष्ट व्यस्था के हिमायती हैं, ?
 दिल्ली पूरे देश के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है और लोग आज भी केजरीवाल के काम पर निगाह रख रहे हैं, सराह रहे हैं और उन्हें मदद कर रहे हैं, पर मोदी को लेकर हर जगह विरोध है, सिवाय चंद मुठ्ठीभर लोग जो संघ या हिन्दू मानसिकता से ग्रसित हैं, उन्हें अंध समर्थन देते हैं। आज की घटना बहुत गंभीर और अक्षम्य है और इस तरह से इस सरकार ने जो कदम उठाया है यह निंदनीय है।

Monday, 14 December 2015

बदरा रे बदरा जा उनसे मेरा सलाम कहना

बदरा रे बदरा जा उनसे मेरा सलाम कहना
उनसे बात करना और मेरा हाल कहना

गुज़र रही है शाम जैसे कोई अजनबी मुसाफिर हूँ
उनको मेरा नाम कहना और सारा पैग़ाम कहना

बात करते हुवे चेहरे का कुछ अक्स याद रखना
फिर जो आओ कभी इधर तो मुझे भी उनका हाल कहना
 

खुदा मेरा है और है सही तरीका इबादत का मेरा

लज्जते शौक अगर हो तो एक एहसास पैदा कर
तहे  जिगर में कोई नयी बात पैदा कर

नादानी, बेरुखापन और जाहिलियत की क्या बात करूँ
समझना है तो लहू में एक अलग से जान पैदा कर

झगरते हैं मुस्लमान भी एक बड़ी अजीब सी बात पे
छोर झगका फिरको का अपने अंदर ईमान  पैदा कर

खुदा मेरा है और है सही तरीका इबादत का मेरा
कुछ करम कर और इस्पे कोई नयी बात न पैदा कर 

डूबते कौम को बचाने की बात करने से पहले
अपने आपमें  एक अलग सी  पहचान पैदा कर ।

Sunday, 13 December 2015

बात बढ़ती रही और दिल फफकता रहा।

मैं था बेताब और जेहन भी  कहीं उलझा रहा
बात बढ़ती  रही और दिल फफकता  रहा।
 
लोग कहते हैं ये किसी के चुराता हूँ मैं अशआर
क्या खबर उन्हें दिल टूट कर हर रात बिखरता रहा।

कहीं दूर जब सितारों ने की सरगोशी
मैं ख़्वाबों में अपने नग्मे बुनता रहा।

मेरे इकबाल पे कोई तकरार न कर ऐ दोस्त ऐ जिगर
जब लिखूं दिल की बात बस ये जुमला बा जुमला बनता रहा।

खून ऐ जिगर से लिखता हूँ मैं अपने दिल की बात
गर कोई शक करे तो बस खून मेरे दिल बहता रहा।

तू वहां बेवजह और बेकार ही बैठा था।

क्या हुवा जो मैं दूर  ही बैठा था
वहां अदालत में कोई मजबूर ही बैठा था।

लगी थी आग जब इस अंजुमन को
वहां निशाने पे कोई और ही बैठा था।

हिस्से का मिलेगा इसलिए चुप रहा
क्या पता था की वहां मैं बेसूद ही बैठा था

अब कोई फायदा नही सरफ़राज़ रोने से
तू वहां बेवजह और बेकार ही बैठा था।

Friday, 11 December 2015

वक्त के साये में हमेशा सुलझ जाते हैं लोग


बेवजह उलझ जाते हैं लोग
बात ही बात में बिखर जाते हैं लोग।

आपस के मुहब्बत व जंग से मुझे गुरेज नही
पर जख्म जो दिल पे लगे तो मर जाते हैं लोग।

गहराई कुछ यूँ है ज़िन्दगी की
वक्त के साये में हमेशा सुलझ जाते हैं लोग


منصف سے نہ انصاف سے نہ ہی حکمران سے

منصف سے نہ انصاف سے نہ ہی حکمران سے
در  لگتا ہے تو  بس اس دور کے میجبان سے

ظلم   سے نہ ظالم  سے  اور نہ ہی جللاد سے
در  لگتا ہے تو بس ایک جھوٹے رہنمان سے

पता चला अदालतें भी उधार लेती हैं

ज़िन्दगियों को मौतें बिगार देती हैं
वफ़ा को शोहरत उजार  देती हैं

पट्टियां आँखों पे बांधे ये अदालत की मूर्तियां
जैसे जुल्म मुंसिफ की आँखें निकाल लेती है

हमतो ढूंढते रहे अदालत  में इन्साफ
पता चला अदालतें  भी उधार लेती हैं

आँखों पे पट्टियाँ बाँध  के इन्साफ
कानों में कुछ कपड़े भी दाल लेती है

कोई बरसो सड़ता रहा इंसाफ के लिए
किसी को इन्साफ खुद ही पुकार लेती है









Wednesday, 9 December 2015

बिना थके न रुका करो।


बिना रुके ही चला करो
बिना थके न रुका करो।

कल कोई  पल न मिले  शायद
आज ही आज में जिया करो।

रहे न बाकि कोई उमंग
ऐसे तुमभी रहा करो।

मज़बूरी का नाम न  लेना
बस अपना मौका चुना करो।

Saturday, 14 November 2015

Simplicity not define by wearing the sandals and hanging shirt

How simplicity defined by wearing the sandals and hanging shirt. It may not be the simplicity but a personal choice. I respect personal choice of individuals and leader as well but not at all the places.
I would expect these people to invest in a pair of shoes instead of sandals and be able to tuck your shirt into belted trousers on required occasions.

Children’s Day

Very agonizing era for children, technology has taken off their traditional childhood stuff and gifted them the article of laziness and destruction specially the empire of internet which is scooping them day by day. I am not against the use of internet but guardian and parents shall have their spy eye on them, but the problem starts when guardian don’t managing time or not able to understand the reality (merit and demerit) of cyber world.
And intoxication is another prime is...sue along with the technology, most of the student getting these habit from schools only. I thought there should be brain refreshment & time management session for the guardians and parents.
So this children’s day we will take an oath to not blame the children but will manage ourselves first to be Vigilant and humble but not the lenient one.
Happy Children’s Day to all you.

Thursday, 12 November 2015

इस दिवाली प्रेम का एक दिया जलाएं हम

आओ एक दिया आपसी प्रेम का जलाएं हम
मिल जुल के अब ख़ुशी  के गीत गायें हम

दिलों पे जो सियासत की गुबार छायी है
निकाल  उसे कहीं दूर फेंक आएं हम

हवा भी बदबूदार है फिजा भी कुछ अजीब है
प्यार व सकूँ का कोई एक हवा चलायें हम

वो कुर्सियों के खेल में कहीं कोई लड़ा गया
आज इस दीपावली पे सबको घर बुलाएं हम

मिठाईयों में  मिठास हो एक दूसरे का साथ हो
इस दिवाली प्रेम का एक दिया जलाएं हम

यही पले यहीं बढे फिर हुवे हैं क्यों  जुदा
चलो अपना पुराना हिंदुस्तान वापस लाएं हम

Wednesday, 11 November 2015

हुजूम देखा और मुफ़लिस का जलता मकान देखा

हुजूम देखा और मुफ़लिस का जलता मकान देखा
क्या वो भी एक दिवाली थी जो उस रात मैंने वहां देखा। 

शायद के हम भी बिछर  जाएं अपने उसूल से
अब तू  याद ना दिला के मैंने वहां क्या देखा।

चराग के साथ जला दे अपने गंदे ख्यालात।

इस दिवाली पे हम क्यों ना करें कुछ ऐसी बात
चराग के साथ जला दे अपने गंदे ख्यालात।
वो दिन और था जब सिर्फ चराग जला करते थे
अब तो यहाँ इंसानियत जलती है हर रात ।
पठाखों की आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लगती है
दिल के कैदखाने से निकल आते हैं हजारो सवालात ।

देखें जमाने में कई खुद गर्ज़ ऐसे ऐ सरफ़राज़
कुर्सी की खातिर भरका देते हैं लोगो के जज्बात ।

Tuesday, 10 November 2015

अब कोई रंग अनजान नही लगता

शाम का वक्त था रेल गाड़ी बस हाजीपुर स्टेशन से चलने को तैयार थी। मैं चुप चाप बैठा एक अफ़साने  की किताब पढ़ रहा था। तभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति हड़बड़ाते हुवे रेल में चढ़ा और आकर मुझसे बैठने के लिए जगह मांगने लगा चूंकि रेल उसी स्टेशन से चलती थी इसलिए अभी इतनी गुंजाईश तो थी ही के एक आदमी को बिठा लिया  जाये। आदमी देखने में बिलकुल सीधा साधा और शांत सवभाव का लग रहा था। मैं  उन्हें जगह दे कर किताब के अफ़साने में खो गया मगर वो शख्श बार बार मेरी किताब  देख कर ये अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा है था की आखिर मैं पढ़ क्या रहा था। मुझे लगा शायद उस व्यक्ति का सफर न कट रहा हो और वो इसलिए बात करना चाह  रहा है। अतः मैंने भी उससे बात करनी शुरू की उसने अपना नाम राजू बताया और फिर इधर उधर की बात हुई मगर यह जानकर बहुत हैरानी हुई के एक आदमी जिसकी उम्र लग भाग ३२ वर्ष हो उसको १७ साल का कार्य अनुभव था। पूछने पर उसने बताया की वो करीब पंद्रह साल की उम्र से ही काम करता है। शकुशल कारीगर है और उसने नोवी  कक्षा तक पढाई की हुई है अच्छा लिखना पढ़ना जनता है। नोवी के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्यंकि तीन छोटे भाईयों का बचपन सवारने की जिम्मेदारी उसी के कंधे पे थी पिता जी  का स्वर्गवास तभी हो गया था जब राजू पांचवी कक्षा में पढता था और तब वो गाओं के पास वाले प्राइवेट स्कूल में ही पढता था पिताजी  के गुजरने के बाद घर की  आमदनी का जरिया बंद होगया तभी राजू ने गाओं से सात  किलोमीटर दूर एक  सरकारी स्कूल में दाखिला ले लिया मगर घर की बुरी हालत की वजह से नोवी तक ही पढ़ स्का बाद के छोटे भाइयों की जिम्मेदारी भी उसके ऊपर थी। माँ  गाओं के एक किसान के खेत में काम करके कब तक घर चलती और अतः राजू को पढाई छोर शहर जाना  पड़ा था और तभी से वो काम करता ही उसने बताया की  वो दिल्ली से आरहा है। वहीँ  एक छोटे से  कारखाने में काम करता है । उसने बताया की वो घर जाकर इसलिए खुश हो जाता है क्यंकि उसने जो कुछ अपने ज़िन्दगी में नही किया था वो सब कुछ वो अपने छोटे भाई को करा सकता था।  राजू सात किलोमीटर दूर स्कूल पैदल जाता था जबकि उसके भाई साइकिल का प्रयोग करते हैं। जहाँ उसे कहीं गाओं के लोगों का ताना सुनने को मिलता था मगर आज उसका भाई बड़े इज़्ज़त से पढाई करते है।
तीन साल पहले राजू की शादी हुई थी राजू बहुत खुश था। बहुत धूम धाम और  अरमानो के साथ उसने नयी दुनिया में कदम रख्खा था सभी लोग खुश थे। राजू को लगने लगा था की शायद जो उससे ज़िन्दगी के  पहले हिस्से में छूट गया था वो इसको इस हिस्से में मिल जायेगा, सुख, चैन और एक इज़्ज़त की ज़िन्दगी ।
और राजू का खुश होना भी वाजिब था हो भी क्यों न, शादी इंसान के जिंदगी का  वो हिस्सा है जिसका  सही सही वर्णन करने के लिए अभी तक कोई शब्द ही न बना हो इसको बयान कर पाने की  ताकत किसी शादी शुदा इंसान में तो नही होती और गैर शादी शुदा की इस्पे कुछ सुनी नही जाती।
राजू को अपने ज़िन्दगी में हर कमी को पूरी करने की ख्वाहिश जाग उठी थी उसने सोचा था की मैं अब एक सामजिक इंसान बन जाऊंगा जैसा की लोग हमारे समाज में कहते हैं की शादी के बाद इंसान एक सामाजिक इंसान बन जाता है जिम्मेदारियों का एहसास और वक्त की पाबन्दी इंसान में बढ़ जाती है। मगर ऐसा तब होता है जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो और ऐसा बहोत काम ही होता है की सब कुछ अच्छा चले।
राजू की शादी में थोड़ी मोड़ी न इत्तेफकी जरूर हुई थी मगर राजू एक सीधा और शांत सवभाव का होने के कारन इन सब बातों को भूल कर अपने सजोये हुवे अरमानो को एक उड़ान देना चाहता था। अतः उसने साडी बाते भूल कर अपने बीवी को गले लगाया उसे इतना प्यार देने की कोशिश की जितना वो दे सकता था उसने हर संभव ये प्रयास किया के वह अपनी पत्नी का एक वफादार पति बने।
मगर कहते हैं ना की इंसान के बस का इस दुनिया में कुछ भी नही है इसके आगे की कहानी राजू ने रोते हुवे सुनाया की उसकी शादी एक साल भी नही चली और उसकी पत्नी मयिेके जाने के बाद अब तक  नही लौटी है। वैसे तो उसने अपने पत्नी की कोई बुराई नही की मगर उसने सही वजह भी  नही बताय की आखिर हुवा क्या था जो पत्नी दोबारा वापिस नही आयी।
फिर कहने लगा की मेरे जीवन का क्या है, पिछले साल माता श्री का भी स्वर्गवास हो गया है दोनों छोटे भाई को भी नौकरी लग गयी है।  एक भाई बचा है जो बारह्वी में पढता है। अब सबकुछ ठीक है बस इतनी सी आयु में ही दुनिया के इतना रंग देखा हूँ की अब कोई रंग अनजान नही लगता।
इसके बाद मेरा स्टेशन आ गया और मैं राजू को अलविदा कह कर उतर गया। थोड़े दूर तक तो उसकी कहानी मेरे दिमाग में गूंजती रही फिर मैं उनसब  बातो को भूल गया। मगर आज १२ साल बाद अचानक से उसकी कहानी मुझे याद आई और मैंने लिखना शुरू करदिया।


Monday, 9 November 2015

मस्तिष्क

आज तक मुझे ये समझ में नही आया की दो इंसानो के मस्तिष्क में  इतनी विभिन्ता कैसे होती है। जबकि सारे मस्तिष का उत्पादन एक ही जगह होता है। क्या गज़ब की गुणवक्ता है उपरवाले की उत्पादन में  जो विशाल उत्पादन करता है और सब एक दूसरे बिलकुल  अलग।
क्या कभी आपने कल्पना की है बिना दिमाग वाले समाज की नही की होगी क्यंकि  हम इंसानो को लगता है की हमारे पास दिमाग है इसी लिए तो हम इंसान है मगर ऐसा क्या दिमाग नही रहने से किसी चीज़ की गुणवक्ता कम हो जाती है क्या नही न। बस ये फज़ूल का हमारा बैठाया हुवा भरम है की बिना दिमाग के इंसान इंसान नही रह जायेगा।
उदहारण के तौर पे आप पेड़ पोधे को देखें  क्या पेड़ पोधे अपनी ज़िन्दगी नही जीते?  बल्कि हम इंसानो से अच्छी ज़िन्दगी जीते हैं , उनमे कहाँ कभी युद्ध देखा है बड़ा अजीब सा अनुसासन होता है उनमें अगर हिले तो सब एक साथ और रुके तो सब एक साथ जब उनमे से कोई कमजोर होजाये या बहरी ताकतों से लाचार हो कर गिरने लगे तो वो एक दूसरे को  गिरने से बचाते भी हैं मगर हम इंसान ?इसके बारे कुछ कहना उचित नही है ये तो आप रोज़ ही देखते हैं। सो मेरा मानना है की इंसान बगैर मस्तिष के ज्यादा अच्छा समाज का गठन कर सकता था जैसा की वो मस्तिष के साथ नही कर पाता है।  

वक्त के सितम पे तू पर्दा भी डाल ले।

कश्मकश ज़िन्दगी की तू युहीं संभाल ले
वक्त  के  सितम  पे  तू  पर्दा भी डाल ले।

वापस जो की थी कभी अल्फ़ाज़ों भरी किताब
वक्त  आ  गया  है अब  उसे बहार निकाल ले।

हवा जैसे रेत से खिलाती है कोई गुलाब
मुमकिन है तू भी कोई सिक्के उछाल ले।

इंसान बस एक भर्मित प्राणी है

इंसान बस एक भर्मित प्राणी है। हम भरम में रहते हैं भरम में जीते है और दूसरे को भी भर्मित करते रहते है। जीवन कुछ नही बस भरम है। इसका प्रमाण निचे दिए उदहारण से समझने का प्रयास कीजिये।
तारा या सितारा जो चाहो कह लो , मिसाल के तोर पे अगर तारा को ले तो इसी से आप अपने दिमागी फतूर का अंदाज़ा लगा सकते हैं। तारा आसमान में एक नियमित रूप से दिखने वाली चीज़ है मगर आप गौर करे तो इसको देखने  वाले करोड़ो  लोग इसे अपने नज़रिये से देखते है जैसे खगोलशास्त्री  इसे अलग देखता है ज्योत्षी वैज्ञानिक इसे अलग व अपने नज़रिये से देखते हैं वहीँ एक आशिक़ इसे अपने नज़रिये से देखता है और इसके अपने अपने अर्थ निकलता है मगर आप थोड़ा ध्यान केंद्रित करो तो पता लगेगा की उस तारा में ऐसा कुछ है ही नही जो लोग उसमें देखना चाहतें हैं और उसका अर्थ निकलते है।
हैं न हम भरम में?

Sunday, 8 November 2015

दूल्हे नितीश कुमार



बिहार चुनाओ परिणाम आज का खास मुद्दा है जिसपे हर जगह बात की जा रही है और हो भी क्यों ना।
महा गठबंधन जीत गया इसकी चर्चा करना चाहूंगा न की भारतीय जनता पार्टी की हार का। नितीश कुमार ने दूसरी पत्नी से ब्याह रचा लिया है इसकी मिठाई की मिठास का एहसास करने से पहले हमें आगे की चुनौती का आंकलन करना जरुरी है। दूल्हा नितीश कुमार अपनी दूसरी पत्नी के साथ कितने ताल मेल के साथ रह पाएंगे ये कहना बहोत मुश्किल हो रहा है और तब ज्यादा मुश्किल लग रहा है जब  दूल्हा पहले से थोड़ा कमजोर हो गया हो। बहर हाल एक फ़ूहड़ बीवी से शादी कर नितीश कुमार कैसे व्यवस्थित करेंगे अपने आपको ये देखने योग्ये होगा।
नितीश कुमार एक शांत स्वाभाव व्यक्तित्व के मालिक है और उनके सहयोगी उनके उलटे रहे हैं मगर तब भी जैसे तैसे उन्होंने १० साल निकाला है और सिर्फ मैनेज ही नही बल्कि उच्ये गुणवक्ता की विकास ही की है। उनके सामने कुछ अहम मुद्दे हैं जिनमे कुछ को तो सिर्फ बरक़रार रखने की जरुरत है और कुछ चीज़ों में तो बहोत ज्यादा बदलाओ की जरुरत है। कानून व्यवस्था, शिक्षा , इंफ्रास्ट्रक्चर , औद्योगीकरण, इत्यादि है।
जिसमे कानून व्यवस्था को सिर्फ बरक़रार रखने की जरुरत है। जो कौशल नितीश कुमार जी  ने कानून व्यवस्था बनाने में दिखायी है इसका प्रमाण इसी बात से लग जाता है की बिहार का चुनाओ शांति पूर्ण हो गया और उनके राज्ये में चुनाओ के दौरान  या उससे पहले कोई दंगा नही हुवा जो की आज कल आम बात है और अगर यकीन न हो रहा हो तो उत्तरप्रदेश को देख लें असलियत में ये चुनाव उत्तरप्रदेश के शाशक के लिए एक सीख है ये मैं न्यूज़ चैनल देख कर नही कह रहा मगर जमीनी हकीकत है की जिला और थाना लेवल तक को एक एक कर चुस्त दुरुस्त रख्खा गया है।  पिछले दस साल चाहे वो दुर्गा पूजा हो या मुहर्रम सबमें प्रसासन बहुत चुस्त दरुस्त रहा है । दूसरा सबसे अहम मुद्दा है शिक्षा जिसमें कहीं न कहीं नितीश कुमसर फ़ैल होते दिखें हैं। शिक्षा का इतना बुरा हाल है की ज्सिकी कल्पना भी नही की जा सकती हा आज कल खबरों में उनका साइकिल  वितरण बहुत छाया रहा मगर प्राइमरी स्कूल का हाल बहुत बुरा है जो की बुनयादी शिक्षा की नीव होती है जहाँ टीचर को ही कुछ नही आता तो वो  बच्चे को क्या पढ़ाएंगे और जिनको आता है वो कुछ पढ़ना नही चाहते ये ऐसी समस्सया है जिससे अगर नितीश कुमार को निपटना है तो पहले साल ही उसपे काम शुरू करना होगा मगर गठबंधन के सरकार में ये मुश्किल लगता है। कम व बेश ये सब किया कराया उनका और उनके सहयोगी का ही है इसीलिए ये इकरार कर पाना उतना आसान नही होगा उनके लिए के ये सारा सिस्टम ही रद्दी है।

Wednesday, 28 October 2015

ज़िन्दगी कहीं चैन से गुजरी है जो गुजरेगी

ज़िन्दगी कहीं चैन से गुजरी है जो गुजरेगी
ये तो मौत है जो एक दिन वफ़ा लेके उतरेगी।


हसीन सपनो सा मुकद्दर था कभी जमाने में
किसी का वक्त निकला है सिर्फ दो रोटी कमाने में।

स्याही मेरे कलम के कुछ यु बिखर गए
दफ्तर व घर में जैसे मेरे ज़िन्दगी उजर गए।


हुक्मरानी देखि तो अपने हाकिम में ही देखि
बेगुमानी देखि तो एक आलिम में ही देखि।


शरीफ इंसान कहाँ दीखते हैं यहाँ तो सब बेवक़ूफ़ है
दो पैरों के जानवर देखे जो एक अलग ही मख्लूक़  है।

Tuesday, 27 October 2015

A boy called Aasim -1

A boy called Aasim -1

A boy Aasim, who crossed his twenty second and still looks as just entered in teen club, equipped with engineering degree, load of friend and normal social life, charming innocent and lovely face with a mole on right eyebrow; people said who had mole on eyebrow fall in love in early age but this guy make that wrong and never found a chance to date a single girl in 22nd year of his age.
As having social life also; he was little popular in his relative for hour less and dedicated help to any one including unknowing person,  he love to help other and it make him little happy and busy; other side boy of his age were tiring with their relationship.
Apart from some event this guy never feels repentance for their bumpy life circumstance of 21st century. But some time he found himself alone and shameful on his disposition and spent several hours on mirror nonetheless any how standing on mirror not going to help either.
Passing, high school was not so smooth for him but he was good in his middle and primaries excellent perfectly excellent!!
Whole day reading after 6 O’clock in the morning and playing game in evening with boarding school friends, then keeps busy in extra curriculum stuff in the late night including wickedness of childhood, one thing which I notice was the dedication of obligation and supremacy to impress the other in a second, really it was tremendous things, which make him special to steal the glimpse of every girl but what he thought; girl will do every things and never scuffle on that issue. He don’t knew the simple science low “ every action need equal and opposite reaction” then only that action will be an action otherwise there will be the application of another  low which says “a work done on 90 degree is a work in physical but science doesn’t recognized it, it’s zero. The same is required when you inflowing in the search of your dream girl. The time, really make an effect when you bouncing back the affection of your opposite gender.
After few month of struggle he got job in software engineering company ‘Technocrat pvt ltd.’ and now his life is going to be change for  forever ,  in software there is much scope of enjoyment with respect to other sector of engineering, a sector of glamour and young Indian hubs, really a place where you can enjoy a lot if you are ready; that is the only place which reversing the Indian sex ratio;  most of girls will be found flirting more than one boy; but what about this shy guy who never reply a girls firmly a tough task to crack the life nuts.

Room of comfort


This is not going to help me either but still I am not strong enough to control the inner determination. Society is what? Nothing but a bunch of idiot, who have art to play with public emotion and sentiments  in fact it’s the process which gives him peak pleasure about their life. Since Stone Age to supersonic, stronger grows as much as they want and normal general class, which sometimes called as cattle class is busy in finding some room of comfort.

Saturday, 24 October 2015

जीवन का सच -2 

जीवन  की समस्सया क्या है ? इस का क्या उपचार है ?इससे निवारण का क्या उपाए है ?
दर असल जीवन में कोई समस्सया है ही नही तो इसका उपाए और निवारण की क्या जरुरत है। जिसे हम समस्सया कहते है वो दर असल एक प्ले स्टेशन का शो है जहाँ सबकुछ पहले से तये है बस हम ख़्वाह मख़्वाह उत्तेजित रहते हैं अपने अभिनय को लेकर हमारे अभिनय से कुछ नही बदलता सिवाए हमारे भरम के। 
दर असल हम इंसान एक छोटी सी समस्या पर भी इतना विचलित हो जाते हैं की मानो  हमरी ज़िन्दगी इसी समस्सया पर शुरू हुई है और यही खत्म हो जाएगी, उस समस्सया में इतना खो जाते हैं की जैसे  इस संसार का सबसे दुखी आदमी मैं ही हूँ , यह संसार का सबसे बड़ा दुःख है ,  संसार में मैं अकेला हूँ और वो कहावत बहुत  याद आने लगती है विपत्ति में सब साथ छोर जाते है इत्यादि। .....  मगर असलियत में ऐसा नही है ये सब सिर्फ हमारा भरम होता है न कोई  पहले आपके साथ होता और न ही उस वक्त साथ छोरता है।  
जिसतरह से सबका दिमाग अलग अलग प्रकार का होता है और उसके सोचने की शक्ति एवं तरीका अलग -अलग होता है वैसे ही अपने -अपने कठिनाई को देखने का तरीका भी अलग होता है एवं कुछ लोग उसे हलके में लेते हैं कुछ लोग प्रभावशाली तरीके से लेते है और कम व बेश सबकी कठिनाई दूर हो ही जाती है। किसी की समस्सया दूर होती है तो वो अपने आक़ा का शुक्र अदा करता है कोई उसे अपने चतुराई का फल मानकर खुश हो जाता है। मगर इनसब के बीच बिक जाता है इंसान और गिर जाता है जमीर। 
मैं ऐसा मानता हूँ की इंसान कठिनाई के समय में अगर हाथ पैर न भी मारे और सामान्ये दिनचर्या जिए तो भी उसकी ९९% समस्सया का निदान आसानी से हो जयेगा मगर इंसान घबराहट और निराशा में अपनी समस्सया और बिगाड़ लेता है। और इस सबके पीछे इंसान का दिमाग जिम्मेदार होता है  और खास तोर पे वो हिस्सा जिसमे इंसान अपनी मालूमात को संचय करता है।  मेरे हिसाब से इंसान के पास अगर संचय करने वाला हिस्सा न होतो इंसान को कोई कठिनाई ही नही होगी कठिनाई सिर्फ संचय करने आती है चाहे वो किसी भी तरह का हो। 
इसी लिए मेरी कल्पना है " इंसानो की  एक दुनिया जहाँ उसे कुछ याद नही रहता "

Friday, 23 October 2015

जीवन का सच -1

इंसानी ज़िन्दगी का अनुभव इतना करवा होता है शायद मुझे इसका अंदाजा नही था। किसी के दिमाग को पढ़ पाना या किसी को अपने जैसा बना लेना ये सिर्फ भरम है। सच तो ये है की इस दुनिया में किसी का दिमाग किसी से मेल नही खाता और सब एक दूसरे से  भिन्न है। अगर कोई किसी से अपने दिमाग का मेल खाने का ढोंग करता है तो वो सिर्फ एक दिखावा मात्र है और  किसी जरुरत के तहत ही है।
इस दुनिया में हर कोई अपने जरुरत के तहत अपना चाल चलता है बिलकुल शतरंज की तरह जब तक जरूरत बनी रहती है आदमी सब गन अच्छे लगते हैं जरुरत जैसे ही खत्म होता है उसी आदमी सारे  गुन अवगुण में बदल जाते हैं।
जरुरत लेने वाला इंसान तो अपनी जरुरत पूरी कर निकल जाता है मगर दूसरे इंसान की हालत क्या होती है शायद उसे कभी पता नही चलता होगा जब तक के ये उसपर न बीते। दूसरे इंसान का तो जीवन मानो बर्बाद ही हो जाता है वो कहीं का नही होता धोका खाने के बाद हर किसी को वो शक की नज़र से देखता है और नतीजा ये होता है की उसकी खुद की लाइफ तो बर्बाद होती ही है साथ  ही सामाजिक प्रतारणा भी झेलना परता है।
इसका सीधा सीधा मामला ये है की आप कितने दिल से किसी से जुड़े रहतें हैं। धोखा खाने वाले व्यक्ति से आप जितने दिल से जुड़े होंगे इसका प्रभाव उतना ज्यादा होता है। और अगर वो व्यक्ति आपके रिश्तेदारी में होतो इसका प्रभाव बहुत  ज्यादा हो सकता है, ज्यादा इतना जयदा की आप सोच नही सकते और अनजाने में कोई गलत कदम भी उठ जाते है। या नही तो उस घटना के बारे में सोच सोच कर  बाकी के बचे हुवे रिलेशन बोर होकर खुद ही दूर हो जाते हैं।
और फिर आपको कुछ भी अच्छा नही लगता संसार एक वीरान जंगल  सा लगता है जहाँ आप बिन काम के भटक रहें हो और साथ में डरते भी रहते हो की कोई जंगली जानवर न मिल जाये। मगर सही कहूँ तो मुझे तलाश है एक दरिंदे की। 

Friday, 16 October 2015

जन्मदिन की शुभकामनाएं देने वाले फसबूकिया दोस्तों का शुक्रिया।
रात के बारह बजे से लेकर शाम तक मोबाइल नोटिफिकेशन भेजता रहा और ये बताता रहा की आज कोई आपको याद दिल रहा है की आपके जीवन का एक साल और कम हो गया। मैं ऐसा बोलकर ये कतई नही साबित करना चाहता की मैं नकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति  हूँ मगर अपना अंजाम याद करना मुझे जीवन जीने का एक नया आनंद देता है।
जहाँ मैंने ज़िन्दगी के २० साल पढ़ाई में निकाल दिए वहीँ अब सारी उम्र कमाई में लगनी है। और अनन्तः जीवन त्याग कर मृत्यु को प्राप्त हो जाऊंगा मगर ये सब जानते हुवे भी जीवन में अपार धन और असीम शक्ति प्राप्त करने की इछ्छा  तो हम सबकी होती ही है।
देश विदेश आकाश पाताल एक करने वाले हम  मानस मायावी दुनिया के एक नन्हे चिराग जैसे हैं जो चाहे जितना भी कोशिश करे मगर अंधकार दूर करने की जो सीमा उपरवाले ने तय की है उससे ज्यादह कुछ नही कर सकता।
अनन्तः यही कहूँगा की सब चलने दीजिये जैसे चल रहा है मगर कभी हार मत मानिये यही जीवन सच्चाई है।

Friday, 2 October 2015

नोटों पर है जिसका फोटो वो हैं मेरे गांधी जी

समस्त संसार जिसमें है समाया वो हैं मेरे गांधी जी
नोटों पर है जिसका फोटो वो हैं मेरे गांधी जी

काले गोरे का भेद मिटाया और दिया एक नया इतिहास
किया जिसने नमक आंदलन वो हैं मेरे गांधी जी

अंग्रेज़ो को लोहा मनवाया और छीना अपना भारत
सादगी की नयी रीत चलायी वो हैं मेरे गांधी जी

उपद्रव छोर अहिंसा से दिलवाई आज़ादी
जिसने सम्पूर्ण अधिकार दिलवाया वो हैं मेरे गांधी जी

शत्रु  को जिसने धूल चटायी और लिया अपना सम्मान
विदेशों में भी जिसके परचम लहराए वो हैं मेरे गांधी जी

विश्व को एक एहसास दिलाया इंसानियत को आम कराया
प्रतिशोध  का जिसने है पाठ मिटाया वो  हैं मेरे गांधी जी

किया समझोता कभी ना खुद से और सबको दिया सम्मान
हर जर्रे में जिसकी गूंज है जुन्जी वो हैं मेरे गांधी जी

Sarfu


1 May - Labor Day (International Workers' Day)

Labor Day, observed on May 1st, holds significant importance worldwide as a tribute to the contributions of workers towards society and the ...