कश्मकश ज़िन्दगी की तू युहीं संभाल ले
वक्त के सितम पे तू पर्दा भी डाल ले।
वापस जो की थी कभी अल्फ़ाज़ों भरी किताब
वक्त आ गया है अब उसे बहार निकाल ले।
हवा जैसे रेत से खिलाती है कोई गुलाब
मुमकिन है तू भी कोई सिक्के उछाल ले।
वक्त के सितम पे तू पर्दा भी डाल ले।
वापस जो की थी कभी अल्फ़ाज़ों भरी किताब
वक्त आ गया है अब उसे बहार निकाल ले।
हवा जैसे रेत से खिलाती है कोई गुलाब
मुमकिन है तू भी कोई सिक्के उछाल ले।
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