इस दिवाली पे हम क्यों ना करें कुछ ऐसी बात
चराग के साथ जला दे अपने गंदे ख्यालात।
वो दिन और था जब सिर्फ चराग जला करते थे
अब तो यहाँ इंसानियत जलती है हर रात ।
पठाखों की आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लगती है
दिल के कैदखाने से निकल आते हैं हजारो सवालात ।
देखें जमाने में कई खुद गर्ज़ ऐसे ऐ सरफ़राज़
कुर्सी की खातिर भरका देते हैं लोगो के जज्बात ।
चराग के साथ जला दे अपने गंदे ख्यालात।
वो दिन और था जब सिर्फ चराग जला करते थे
अब तो यहाँ इंसानियत जलती है हर रात ।
पठाखों की आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लगती है
दिल के कैदखाने से निकल आते हैं हजारो सवालात ।
देखें जमाने में कई खुद गर्ज़ ऐसे ऐ सरफ़राज़
कुर्सी की खातिर भरका देते हैं लोगो के जज्बात ।
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