क्या देखूं ज़िन्दगी में जब आईना ही झूठा हो
इंसानियत मर ही जाती है जब दिल ही टुटा हो।
कुछ वक्त गुज़ारा था उलझी सी तमन्ना में
ज़िन्दगी बदतर नज़र आती है जब साथ ही छूटा हो ।
यही कीमत थी मेरे परवाज़ व रफ़्तार की ऐ रब
जहां ज़िन्दगी ने मासूम को कई बार लूटा हो।
कैसे परखून मैं हमदर्द वो आश्ना को ऐ सरफ़राज़
चेहरे पे चेहरा डाले सिर्फ इंसानियत का ही मुखौटा हो।
इंसानियत मर ही जाती है जब दिल ही टुटा हो।
कुछ वक्त गुज़ारा था उलझी सी तमन्ना में
ज़िन्दगी बदतर नज़र आती है जब साथ ही छूटा हो ।
यही कीमत थी मेरे परवाज़ व रफ़्तार की ऐ रब
जहां ज़िन्दगी ने मासूम को कई बार लूटा हो।
कैसे परखून मैं हमदर्द वो आश्ना को ऐ सरफ़राज़
चेहरे पे चेहरा डाले सिर्फ इंसानियत का ही मुखौटा हो।
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