चलते चलते युहीं एक टैक्सी ड्राइवर
से बात होने लगी बातो बातो में उसने अपने घर की बात निकाल दी और कहते कहते
रो पड़ा। कह रहा था की मैं बहुत छोटे आयु से ही काम करता हूँ। मेरे पिता श्री
एक अनपढ़ इंसान हैं। उन्होंने कभी स्कूल कॉलेज नहीं देखा। माँ थोड़ी पढ़ी लिखी थी और
उसे चाहत थी के मैं पढूं और उसने अपने जीते जी अपनी पूरी ज़िन्दगी हम भाइयों के
पढाई में लगा दी। हम बहुत गरीब घरके लड़के थे एक बहुत ही पिछड़े गाओं से थे। जंगल से
वृछ के पत्ते तथा टहनियाँ लाते थे जिसपे माँ खाना पकाती थी। एक साल में
केवल दो वस्त्र ही बनवाती तथा हमें भी जरुरत के हिसाब से
ही पैसे खर्च करने की नसीहत देती, मगर पैसे थे ही नहीं तो
खर्च कहाँ से करता।
मेरी माँ बहुत धार्मिक और शरीफ औरत थी। सुबह सवेरे और देर रात तक इबादत करना उनका तो मामूली सा मामूल था। और इसका श्रेय शायद मेरे माँ के मइके को जाता है क्यूंकि कोई भी व्यक्ति चीज़ें अपने बचपन में ही सीखता है और इसके इलावा मेरे नाना भी एक बहुत शरीफ तथा अपने जमाने के एक मशहूर आलिम थे। मैंने बहुत बचपन में ही क़ुरान शरीफ पढ़ना सीख लिया था और इसका श्रेय भी मेरी जन्नती माँ को ही जाता है। मैंने अपने माँ के आँखों में हमेशा अपने बच्चों के लिए आंसू देखा था। इसकी असल वजह मैं कभी न समझ सका मगर शायद मेरी माँ का दिल और माओं से ज्यादा धड़कता था या फिर उनको पता रहा हो की उनकी ज़िन्दगी ज्यादा नहीं है और इन बच्चों को युहीं छोरके इस दुनिया से रुखसत हो जाना है। लम्बी बीमारी और दिनरात के सोच व फ़िक्र ने इस तरह शारीर को खोखला कर दिया के मेरी माँ अधेड़ उम्र में ही बहुत बीमार रहने लगी। इलाज इलाज और केवल इलाज तकलीफ से कराहती माँ और जेड की रात अब भी मुझे याद है।
और इसतरह अभी बच्चे के पुरे पर भी न निकले थे की अपने बाँहों की गर्मी देकर जाड़े को दूर भागने वाली माँ का शारीर ठंढा पर गया।
मगर शायद मुझे ऐसा महसूस होता है की ये चक्र है जो केवल घूमता है उसमे भावनाएं नहीं होतीं और हमसब उससे बच नहीं सकते।
जो लोग अच्छे होते हैं अल्लाह उसे इस दुनिया से जल्दी बुला लेता है क्यूंकि वो शायद अल्लाह को भी पसंद होते होंगे।
मैं हाई स्कूल में था जब मेरी माँ का देहांत हो गया, मगर अल्लाह उन्हें तसल्ली दे देता है जिनपे मुसीबत आई होती है।
जैसे तैसे मैंने हाई स्कूल पास किया और नूरी ढूंढने लगा और तभी मुझे किसी ने ड्राइवर बन्ने की सलाह दी और इस वजह से मैं अभी आपके लिए टैक्सी ड्राइव कर रहा हूँ।
आज मेरे पास सब कुछ है जिसके लिए मेरी माँ को सारी उम्र तकलीफ करना पड़ा था मगर अब मेरी माँ नहीं जो ये देख सके की उसके लगाए हुवे वृछ में फल आने लगे है। मेरी माँ के बीमारी के आखिरी हिस्से में मैंने अल्लाह से दुआ मांगी थी एक अल्लाह मेरी उम्र का कुछ हिस्सा मेरी माँ को देदे मगर ऐसा न हुवा, शायद इलाही को कुछ और ही मंजूर था।
मैं सपना बहुत देखता हूँ इतना ज्यादा की कभी कभी हक़ीक़त में हुई बात भी लगती है शायद ये सपने वाली तो बात तो नहीं। और सपनो का कोई महत्व नहीं रह गया है बस अब सांसे जैसे अहमियत है उसकी जो की बिन सोचे समझे अपने आप ही चलती रहतीं हैं मगर सब खेल उनके चलने का ही है।
" लीजिए सर आपका अल-थुमामा आगे अब यहाँ से कहाँ जाना हैं। "
आगे जाकर मैं उसके टैक्सी से उतर गया लेकिन कई दिनों तक उसके शब्द कनो में गुंजते रहे। " ये चक्र है जो केवल घूमता है उसमे भावनाएं नहीं होतीं और हमसब उससे बच नहीं सकते " .