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Friday, 1 January 2016

Yes, 2015 is gone to storage house which can be use only for slide memories and 2016 came out from the womb of time. Wishing you all a happy and prosperous new year 2016, may all your right dream come true  with first ray of sunlight in the delighted  morning of 2016.
In beginning stage of my childhood we used to celebrate it with nice delicious food like kheer & puri cook by my loving mother who is no more with us; may ALLAH include her in those parents who will go in jannah without judgement and grant her a top place in Jannah.
Well, it was a great year of my life with few major irregularities; how time passes and we grew up by crossing year and year and start facing different types challenges year by year.How time goes and we grew up enough to understand the real meaning of new year “that bring up the sense of warning and getting loss in allotted time on the earth”.I believe in ALLAH who plan everything for us, perhaps it was God who plan the things and that get done as per the sketch.There is no life on earth without irregularities and up down, we the gang of moron animals feel great when get something and making fun of other if they didn’t. Why not we think these all plan and execute by a super power that see every creep movement and can give you the same predicament upon which you are laughing now.

Thursday, 24 December 2015

क्या देखूं ज़िन्दगी में जब आईना ही झूठा हो

क्या देखूं ज़िन्दगी में जब आईना ही झूठा हो
इंसानियत मर ही जाती है जब दिल ही टुटा हो।

कुछ वक्त  गुज़ारा था  उलझी सी तमन्ना में
ज़िन्दगी बदतर नज़र आती है जब साथ ही छूटा हो ।

यही कीमत थी मेरे परवाज़ व रफ़्तार  की ऐ  रब
जहां ज़िन्दगी ने मासूम को कई बार लूटा हो।

कैसे परखून मैं हमदर्द वो आश्ना को ऐ  सरफ़राज़
चेहरे पे चेहरा डाले सिर्फ इंसानियत का ही मुखौटा हो।
 

Saturday, 19 December 2015

छोटों को छोटा कहकर कैसे बड़ा बन जाऊंगा।

अपने हर मामले का खुद गवाह बन जाऊंगा
छोटों को छोटा कहकर कैसे बड़ा बन जाऊंगा।

मसरूफियत की हद न तोड़ो बे वजह बे काम में
अपनों से दूर होकर कैसे अच्छा बन जाऊंगा।

अदब सीखा है यहाँ कई  बेअदबों की महफ़िल में
लफ़्फ़ाज़ों की भीड़ से हटके कैसे सही बन जाऊंगा।

ज़िन्दगी मिटटी के मिटटी में मिलने का खेल है
इस मिटटी के निचे जा के वहीँ मकीं बन जाऊंगा।

बेवजह इतराता फिरूँ इस कोने से उस कोने
चार दिन की ज़िन्दगी फिर गुमनाम बन जाऊंगा।
 

Thursday, 17 December 2015

मैं शरीफ हूँ मेरे निचे वाले चोर हैं।

केजरीवाल ने राजेंद्र को अपना प्रिंसिपल सेक्रेटरी क्यूं बनाया जबकि उनपे भ्रष्ट्राचार का आरोप पहले से ही लगा हुवा था। केजरीवाल जो की चुनाओ में उम्मीदवारों की जाँच करके उन्हें टिकट देने की बात की थी वहीँ एक प्रिंसिपल सेक्रेटरी को ऐसे कैसे रख लिया जो एक नही कई अरूप में घिरा हो।  ये सवाल किसी और सरकार से हम नही कर सकते क्यूंकि और दूसरी सरकारें के लिए ये बात कोई नयी नही है मगर केजरीवाल एक शरीफ और साफ़ नेता माने जाते हैं और उनका राजनीती सफर  भी इसी आधार पे शुरू हुवा था। केजरीवाल पहले तो ईमानदार और जनता के नेता थे मगर शायद अब उनको लग गया है की गद्दी पे बने रहने के लिए सिर्फ ईमानदारी से काम नही चलेगा और वो अब वो सब करना चाहते है जो एक नेता होने के लिए न्यूनतम योगयता में शुमार होता है। खैर ये तो होना ही था। ये तो इस देश का इतिहास रहा है की लोग अपने आपको ऊपर करने के लिए साफ़ सफ्फाफ़ दिखाते हुवे राजनीती शुरू करते हैं और बाद में भ्रष्टाचार में विलुप हो जाते हैं जैसा की हमने लोहिया के आंदोलन से जन्मे नेताओं में भी देखा है।
 अब बात आती है अपने आपको शरीफ कहलवाते हुवे अपने निचे भ्रष्टाचार होने देना वैसे ये कोई नयी बात नही हैं। देश में ईमानदार कहे जाने कई नेताओं ने खुद  को  शरीफ कहलवाते हुवे अपने नाक के निचे बुराई और भ्रष्ट्राचार को बढ़ावा दिया है मगर उनके प्रवक्ता और खुद ऐसे नेताओं ने  खुद को पाक साफ़ कहा है। मगर कैसे अगर आप अपने सामने या अपने निचे बुड़ाइ और भ्रष्ट्राचार को नही रोक पते हैं या बढ़वा देते है तो आपका अपराध उनसे भी बड़ा क्यों न माना जाये।
चाहे मनमोहन सिंह हों या अरुण जेटली या श्री नरेंद्र मोदी हों ये सभी वो लोग हैं जो ईमानदार तो हैं मगर भ्रष्टाचार नही रोक पाये। सवाल ये उठता है की इनका अपराध सीधे सीधे अपराधी से बड़ा क्यों नही है। 

Tuesday, 15 December 2015

क्सिका कद कम हुवा केजरीवाल का या केंद्र सरकार का

क्सिका कद कम हुवा केजरीवाल का या केंद्र सरकार का

ऐसा लगता है केंद्र सरकार और सीबीआई सारा इन्साफ और ईमानदारी सिर्फ दिल्ली सरकार में ही तलाश रही है। भ्रस्ट लोगों पे कार्रवाई जरूर होना चाहिए इसमें कोई दो मत नही है मगर ये सिर्फ दिल्ली पे और केजरीवाल सरकार पे ही लागु नही होता है। दिल्ली सरकार पे एक के बाद एक हमला और केजरीवाल को बदनाम करने की कोशिश करना एक दम से केंद्र सरकार की हताशा दर्शाती है
इससे कांग्रेस और बीजेपी  में कोई अंतर नही रह जाता है। जैसे कांग्रेस ने किया वही बीजेपी भी कर रही है। मोदी सरकार को अपना काम करने की पूरी छूट है लोक सभा में बहुमत की भी कमी  नही है और राज्ये सभा में भी बहुमत मिल सकता है।  मगर ये मूर्खता पूर्ण कदम ही है जो वहां तक पहुँचने से रोक रही  है। जैसे ताज़ा घटना बिहार की ही है । बिहार में जनता ने उनकी दिखावटी और झूठी बातों को नजरअंदाज करके बुरी तरह से सड़क पर ला दिया।
 ये सारी कवायद केजरीवाल जैसे नेता को बेईमान मक्कार और चोर बनाने के लिए है जैसा की हिंदुस्तानी नेता के अंदर ये सब गुण पाये जाते हैं। जहां मोदी सरकार अपने आपको एक चुनी हुई सरकार कहकर विरोधोयों पे हमला करती है वहीँ दिल्ली सरकार उनसे ज्यादा प्रतिसत से चुन के  आने  वाली सरकार है मगर मोदी सरकार को दिल्ली के सरकार से इतनी निराशा और जलन क्यों है। 
 सवाव यह उठता है कि केंद्र सरकार जिस तरह से आने वाले लोकतांत्रिक इतिहास के लिए बदले की भावना में गलत तरीकों से सत्ता के दुरुपयोग के उदाहरण सामने रख रहा है, इससे और कुछ नही बस कुछ पुराने कोंग्रेसी नेताओं की याद आती है और शायद मोदी एक नया इतिहास लिखना चाहते हैं अपने क्रूर शासन का।  इसी लिए ये क्यों  न माना जाये की ये सरकार पिछले सरकारों से अलग नही है या फिर ये मान लिया जाये की सरकार चलाने की ये न्यूनतम योगयता है
 शिवराज जैसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री को शह देकर, निहाल चन्द्र को अभी तक मंत्रीमंडल में रखकर, वसुंधरा को राजस्थान में क्लीन चिट देकर मोदी ने साबित किया कि वे एक कमजोर और भ्रष्ट व्यस्था के हिमायती हैं, ?
 दिल्ली पूरे देश के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है और लोग आज भी केजरीवाल के काम पर निगाह रख रहे हैं, सराह रहे हैं और उन्हें मदद कर रहे हैं, पर मोदी को लेकर हर जगह विरोध है, सिवाय चंद मुठ्ठीभर लोग जो संघ या हिन्दू मानसिकता से ग्रसित हैं, उन्हें अंध समर्थन देते हैं। आज की घटना बहुत गंभीर और अक्षम्य है और इस तरह से इस सरकार ने जो कदम उठाया है यह निंदनीय है।

Monday, 14 December 2015

बदरा रे बदरा जा उनसे मेरा सलाम कहना

बदरा रे बदरा जा उनसे मेरा सलाम कहना
उनसे बात करना और मेरा हाल कहना

गुज़र रही है शाम जैसे कोई अजनबी मुसाफिर हूँ
उनको मेरा नाम कहना और सारा पैग़ाम कहना

बात करते हुवे चेहरे का कुछ अक्स याद रखना
फिर जो आओ कभी इधर तो मुझे भी उनका हाल कहना
 

खुदा मेरा है और है सही तरीका इबादत का मेरा

लज्जते शौक अगर हो तो एक एहसास पैदा कर
तहे  जिगर में कोई नयी बात पैदा कर

नादानी, बेरुखापन और जाहिलियत की क्या बात करूँ
समझना है तो लहू में एक अलग से जान पैदा कर

झगरते हैं मुस्लमान भी एक बड़ी अजीब सी बात पे
छोर झगका फिरको का अपने अंदर ईमान  पैदा कर

खुदा मेरा है और है सही तरीका इबादत का मेरा
कुछ करम कर और इस्पे कोई नयी बात न पैदा कर 

डूबते कौम को बचाने की बात करने से पहले
अपने आपमें  एक अलग सी  पहचान पैदा कर ।

Sunday, 13 December 2015

बात बढ़ती रही और दिल फफकता रहा।

मैं था बेताब और जेहन भी  कहीं उलझा रहा
बात बढ़ती  रही और दिल फफकता  रहा।
 
लोग कहते हैं ये किसी के चुराता हूँ मैं अशआर
क्या खबर उन्हें दिल टूट कर हर रात बिखरता रहा।

कहीं दूर जब सितारों ने की सरगोशी
मैं ख़्वाबों में अपने नग्मे बुनता रहा।

मेरे इकबाल पे कोई तकरार न कर ऐ दोस्त ऐ जिगर
जब लिखूं दिल की बात बस ये जुमला बा जुमला बनता रहा।

खून ऐ जिगर से लिखता हूँ मैं अपने दिल की बात
गर कोई शक करे तो बस खून मेरे दिल बहता रहा।

तू वहां बेवजह और बेकार ही बैठा था।

क्या हुवा जो मैं दूर  ही बैठा था
वहां अदालत में कोई मजबूर ही बैठा था।

लगी थी आग जब इस अंजुमन को
वहां निशाने पे कोई और ही बैठा था।

हिस्से का मिलेगा इसलिए चुप रहा
क्या पता था की वहां मैं बेसूद ही बैठा था

अब कोई फायदा नही सरफ़राज़ रोने से
तू वहां बेवजह और बेकार ही बैठा था।

Friday, 11 December 2015

वक्त के साये में हमेशा सुलझ जाते हैं लोग


बेवजह उलझ जाते हैं लोग
बात ही बात में बिखर जाते हैं लोग।

आपस के मुहब्बत व जंग से मुझे गुरेज नही
पर जख्म जो दिल पे लगे तो मर जाते हैं लोग।

गहराई कुछ यूँ है ज़िन्दगी की
वक्त के साये में हमेशा सुलझ जाते हैं लोग


منصف سے نہ انصاف سے نہ ہی حکمران سے

منصف سے نہ انصاف سے نہ ہی حکمران سے
در  لگتا ہے تو  بس اس دور کے میجبان سے

ظلم   سے نہ ظالم  سے  اور نہ ہی جللاد سے
در  لگتا ہے تو بس ایک جھوٹے رہنمان سے

पता चला अदालतें भी उधार लेती हैं

ज़िन्दगियों को मौतें बिगार देती हैं
वफ़ा को शोहरत उजार  देती हैं

पट्टियां आँखों पे बांधे ये अदालत की मूर्तियां
जैसे जुल्म मुंसिफ की आँखें निकाल लेती है

हमतो ढूंढते रहे अदालत  में इन्साफ
पता चला अदालतें  भी उधार लेती हैं

आँखों पे पट्टियाँ बाँध  के इन्साफ
कानों में कुछ कपड़े भी दाल लेती है

कोई बरसो सड़ता रहा इंसाफ के लिए
किसी को इन्साफ खुद ही पुकार लेती है









Wednesday, 9 December 2015

बिना थके न रुका करो।


बिना रुके ही चला करो
बिना थके न रुका करो।

कल कोई  पल न मिले  शायद
आज ही आज में जिया करो।

रहे न बाकि कोई उमंग
ऐसे तुमभी रहा करो।

मज़बूरी का नाम न  लेना
बस अपना मौका चुना करो।

Saturday, 14 November 2015

Simplicity not define by wearing the sandals and hanging shirt

How simplicity defined by wearing the sandals and hanging shirt. It may not be the simplicity but a personal choice. I respect personal choice of individuals and leader as well but not at all the places.
I would expect these people to invest in a pair of shoes instead of sandals and be able to tuck your shirt into belted trousers on required occasions.

Children’s Day

Very agonizing era for children, technology has taken off their traditional childhood stuff and gifted them the article of laziness and destruction specially the empire of internet which is scooping them day by day. I am not against the use of internet but guardian and parents shall have their spy eye on them, but the problem starts when guardian don’t managing time or not able to understand the reality (merit and demerit) of cyber world.
And intoxication is another prime is...sue along with the technology, most of the student getting these habit from schools only. I thought there should be brain refreshment & time management session for the guardians and parents.
So this children’s day we will take an oath to not blame the children but will manage ourselves first to be Vigilant and humble but not the lenient one.
Happy Children’s Day to all you.

Thursday, 12 November 2015

इस दिवाली प्रेम का एक दिया जलाएं हम

आओ एक दिया आपसी प्रेम का जलाएं हम
मिल जुल के अब ख़ुशी  के गीत गायें हम

दिलों पे जो सियासत की गुबार छायी है
निकाल  उसे कहीं दूर फेंक आएं हम

हवा भी बदबूदार है फिजा भी कुछ अजीब है
प्यार व सकूँ का कोई एक हवा चलायें हम

वो कुर्सियों के खेल में कहीं कोई लड़ा गया
आज इस दीपावली पे सबको घर बुलाएं हम

मिठाईयों में  मिठास हो एक दूसरे का साथ हो
इस दिवाली प्रेम का एक दिया जलाएं हम

यही पले यहीं बढे फिर हुवे हैं क्यों  जुदा
चलो अपना पुराना हिंदुस्तान वापस लाएं हम

Wednesday, 11 November 2015

हुजूम देखा और मुफ़लिस का जलता मकान देखा

हुजूम देखा और मुफ़लिस का जलता मकान देखा
क्या वो भी एक दिवाली थी जो उस रात मैंने वहां देखा। 

शायद के हम भी बिछर  जाएं अपने उसूल से
अब तू  याद ना दिला के मैंने वहां क्या देखा।

चराग के साथ जला दे अपने गंदे ख्यालात।

इस दिवाली पे हम क्यों ना करें कुछ ऐसी बात
चराग के साथ जला दे अपने गंदे ख्यालात।
वो दिन और था जब सिर्फ चराग जला करते थे
अब तो यहाँ इंसानियत जलती है हर रात ।
पठाखों की आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लगती है
दिल के कैदखाने से निकल आते हैं हजारो सवालात ।

देखें जमाने में कई खुद गर्ज़ ऐसे ऐ सरफ़राज़
कुर्सी की खातिर भरका देते हैं लोगो के जज्बात ।

Tuesday, 10 November 2015

अब कोई रंग अनजान नही लगता

शाम का वक्त था रेल गाड़ी बस हाजीपुर स्टेशन से चलने को तैयार थी। मैं चुप चाप बैठा एक अफ़साने  की किताब पढ़ रहा था। तभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति हड़बड़ाते हुवे रेल में चढ़ा और आकर मुझसे बैठने के लिए जगह मांगने लगा चूंकि रेल उसी स्टेशन से चलती थी इसलिए अभी इतनी गुंजाईश तो थी ही के एक आदमी को बिठा लिया  जाये। आदमी देखने में बिलकुल सीधा साधा और शांत सवभाव का लग रहा था। मैं  उन्हें जगह दे कर किताब के अफ़साने में खो गया मगर वो शख्श बार बार मेरी किताब  देख कर ये अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा है था की आखिर मैं पढ़ क्या रहा था। मुझे लगा शायद उस व्यक्ति का सफर न कट रहा हो और वो इसलिए बात करना चाह  रहा है। अतः मैंने भी उससे बात करनी शुरू की उसने अपना नाम राजू बताया और फिर इधर उधर की बात हुई मगर यह जानकर बहुत हैरानी हुई के एक आदमी जिसकी उम्र लग भाग ३२ वर्ष हो उसको १७ साल का कार्य अनुभव था। पूछने पर उसने बताया की वो करीब पंद्रह साल की उम्र से ही काम करता है। शकुशल कारीगर है और उसने नोवी  कक्षा तक पढाई की हुई है अच्छा लिखना पढ़ना जनता है। नोवी के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्यंकि तीन छोटे भाईयों का बचपन सवारने की जिम्मेदारी उसी के कंधे पे थी पिता जी  का स्वर्गवास तभी हो गया था जब राजू पांचवी कक्षा में पढता था और तब वो गाओं के पास वाले प्राइवेट स्कूल में ही पढता था पिताजी  के गुजरने के बाद घर की  आमदनी का जरिया बंद होगया तभी राजू ने गाओं से सात  किलोमीटर दूर एक  सरकारी स्कूल में दाखिला ले लिया मगर घर की बुरी हालत की वजह से नोवी तक ही पढ़ स्का बाद के छोटे भाइयों की जिम्मेदारी भी उसके ऊपर थी। माँ  गाओं के एक किसान के खेत में काम करके कब तक घर चलती और अतः राजू को पढाई छोर शहर जाना  पड़ा था और तभी से वो काम करता ही उसने बताया की  वो दिल्ली से आरहा है। वहीँ  एक छोटे से  कारखाने में काम करता है । उसने बताया की वो घर जाकर इसलिए खुश हो जाता है क्यंकि उसने जो कुछ अपने ज़िन्दगी में नही किया था वो सब कुछ वो अपने छोटे भाई को करा सकता था।  राजू सात किलोमीटर दूर स्कूल पैदल जाता था जबकि उसके भाई साइकिल का प्रयोग करते हैं। जहाँ उसे कहीं गाओं के लोगों का ताना सुनने को मिलता था मगर आज उसका भाई बड़े इज़्ज़त से पढाई करते है।
तीन साल पहले राजू की शादी हुई थी राजू बहुत खुश था। बहुत धूम धाम और  अरमानो के साथ उसने नयी दुनिया में कदम रख्खा था सभी लोग खुश थे। राजू को लगने लगा था की शायद जो उससे ज़िन्दगी के  पहले हिस्से में छूट गया था वो इसको इस हिस्से में मिल जायेगा, सुख, चैन और एक इज़्ज़त की ज़िन्दगी ।
और राजू का खुश होना भी वाजिब था हो भी क्यों न, शादी इंसान के जिंदगी का  वो हिस्सा है जिसका  सही सही वर्णन करने के लिए अभी तक कोई शब्द ही न बना हो इसको बयान कर पाने की  ताकत किसी शादी शुदा इंसान में तो नही होती और गैर शादी शुदा की इस्पे कुछ सुनी नही जाती।
राजू को अपने ज़िन्दगी में हर कमी को पूरी करने की ख्वाहिश जाग उठी थी उसने सोचा था की मैं अब एक सामजिक इंसान बन जाऊंगा जैसा की लोग हमारे समाज में कहते हैं की शादी के बाद इंसान एक सामाजिक इंसान बन जाता है जिम्मेदारियों का एहसास और वक्त की पाबन्दी इंसान में बढ़ जाती है। मगर ऐसा तब होता है जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो और ऐसा बहोत काम ही होता है की सब कुछ अच्छा चले।
राजू की शादी में थोड़ी मोड़ी न इत्तेफकी जरूर हुई थी मगर राजू एक सीधा और शांत सवभाव का होने के कारन इन सब बातों को भूल कर अपने सजोये हुवे अरमानो को एक उड़ान देना चाहता था। अतः उसने साडी बाते भूल कर अपने बीवी को गले लगाया उसे इतना प्यार देने की कोशिश की जितना वो दे सकता था उसने हर संभव ये प्रयास किया के वह अपनी पत्नी का एक वफादार पति बने।
मगर कहते हैं ना की इंसान के बस का इस दुनिया में कुछ भी नही है इसके आगे की कहानी राजू ने रोते हुवे सुनाया की उसकी शादी एक साल भी नही चली और उसकी पत्नी मयिेके जाने के बाद अब तक  नही लौटी है। वैसे तो उसने अपने पत्नी की कोई बुराई नही की मगर उसने सही वजह भी  नही बताय की आखिर हुवा क्या था जो पत्नी दोबारा वापिस नही आयी।
फिर कहने लगा की मेरे जीवन का क्या है, पिछले साल माता श्री का भी स्वर्गवास हो गया है दोनों छोटे भाई को भी नौकरी लग गयी है।  एक भाई बचा है जो बारह्वी में पढता है। अब सबकुछ ठीक है बस इतनी सी आयु में ही दुनिया के इतना रंग देखा हूँ की अब कोई रंग अनजान नही लगता।
इसके बाद मेरा स्टेशन आ गया और मैं राजू को अलविदा कह कर उतर गया। थोड़े दूर तक तो उसकी कहानी मेरे दिमाग में गूंजती रही फिर मैं उनसब  बातो को भूल गया। मगर आज १२ साल बाद अचानक से उसकी कहानी मुझे याद आई और मैंने लिखना शुरू करदिया।


1 May - Labor Day (International Workers' Day)

Labor Day, observed on May 1st, holds significant importance worldwide as a tribute to the contributions of workers towards society and the ...