हिंदी दिवस की आप सभों को शुभकामनाएँ। मगर अब शायद ये दिवस केवल एक दिवस ही रह गया है। क्यूंकि हिंदी बोलने तथा लिखने वाले को कमतर समझा जाता है। आज़ादी के बाद हिंदी भाषा में क्या कुछ विकास हुवा है इसका आंकलन कीजिये। किसी भी संस्कृति का मरजाना इतना ही काफी है कि लोग अपने भाषा से ही प्रेम खो बैठते है। जहाँ एक तरफ लोग देशभक्ति की गुन गान करते हैं वहीँ दूसरी तरफ हिंदी बोलने तथा लिखने में संकोच करते हैं। आज हमारी हालत ये हो गयी है की न हम इंग्लिश में बेहतर हैं और न हीं हिंदी में।
पिछले साल मेरी मुलाक़ात एक इंडियन मूल के मलेशियन नागरिक से हुई थी। उन्होंने बताय की ये मिश्रण के चक्कर में मेरे बच्चे की ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी शुरू शुरू में हमने उसे इंग्लिश स्कूल में भेजा बाद में उसे चाइनीज स्कूल में भेजा मगर हालत ये है की आज न वो चाइनीज ठीक से जानते हैं और न ही इंग्लिश। ये सिर्फ इसलिए हुआ क्यूंकि हमने बच्चो से उनकी रूचि जानने के बजाए अपनी रूचि उनपे थोप दी।
हम बाजार में दूसरे लोगों के हिंदी उच्चारण का मजाक उड़ाते फिरते हैं। मगर घरमे बच्चे को इंलिश माध्यम की किताब थमाए हुवे होते हैं। किसी भी भाषा के बिगड़ने या लुप्त होने में भाषा के जानकारों का बड़ा हाथ होता है। क्यूंकि वो ही सबसे पहले अपने आपको कम तर आंकने लगते हैं और इसके विकास जरुरत नहीं समझते। हम सब शिक्षा को सिर्फ पैसा कमाने का औज़ार समझते हैं।
आज जहाँ जयादार तर विद्यार्थी को अपना विषय चुनने का अधिकार नहीं है ऐसे में आप उन विद्यार्थी से क्या उम्मीद करना चाहते हैं। दूसरी क्लास से ही उसे बताया जाता है की तुम विज्ञान पढ़ो तुम्हे इसमें बहुत संवृद्धि मिलेगी और तुम्हे तो अभियंता बनना है, हम यहीं चूक जाते हैं और अपने बच्चे को इंसान बनने से पहले उसे अभियंता बना देते हैं। अगर हम उसे एक इंसान बनने की नसीहत देते तभी तो वो
साहित्य में इंसान की परिभाषा ढूंढता।
मैं भी बस इसी उधेर बुन में हूँ की कोई भाषा सीख जाऊं लेकिन हो नहीं पा रहा है ऐसा।
#हिंदीदिवस
पिछले साल मेरी मुलाक़ात एक इंडियन मूल के मलेशियन नागरिक से हुई थी। उन्होंने बताय की ये मिश्रण के चक्कर में मेरे बच्चे की ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी शुरू शुरू में हमने उसे इंग्लिश स्कूल में भेजा बाद में उसे चाइनीज स्कूल में भेजा मगर हालत ये है की आज न वो चाइनीज ठीक से जानते हैं और न ही इंग्लिश। ये सिर्फ इसलिए हुआ क्यूंकि हमने बच्चो से उनकी रूचि जानने के बजाए अपनी रूचि उनपे थोप दी।
हम बाजार में दूसरे लोगों के हिंदी उच्चारण का मजाक उड़ाते फिरते हैं। मगर घरमे बच्चे को इंलिश माध्यम की किताब थमाए हुवे होते हैं। किसी भी भाषा के बिगड़ने या लुप्त होने में भाषा के जानकारों का बड़ा हाथ होता है। क्यूंकि वो ही सबसे पहले अपने आपको कम तर आंकने लगते हैं और इसके विकास जरुरत नहीं समझते। हम सब शिक्षा को सिर्फ पैसा कमाने का औज़ार समझते हैं।
आज जहाँ जयादार तर विद्यार्थी को अपना विषय चुनने का अधिकार नहीं है ऐसे में आप उन विद्यार्थी से क्या उम्मीद करना चाहते हैं। दूसरी क्लास से ही उसे बताया जाता है की तुम विज्ञान पढ़ो तुम्हे इसमें बहुत संवृद्धि मिलेगी और तुम्हे तो अभियंता बनना है, हम यहीं चूक जाते हैं और अपने बच्चे को इंसान बनने से पहले उसे अभियंता बना देते हैं। अगर हम उसे एक इंसान बनने की नसीहत देते तभी तो वो
साहित्य में इंसान की परिभाषा ढूंढता।
मैं भी बस इसी उधेर बुन में हूँ की कोई भाषा सीख जाऊं लेकिन हो नहीं पा रहा है ऐसा।
#हिंदीदिवस