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Thursday, 31 August 2017

दरिद्रता के दोषी

आज कल असलम चाचा ऑफिस नहीं आते हैं।  वो बर्तानिया गए हुवे  हैं २ हफ्ते की छुट्टी पे, अपने बेटी  और नवासे से मिलने के लिए । उनकी याद आयी तो मैंने उनको कॉल किया, हालाँकि टाइम डिफ्रेंस होने की वजह से बर्तानिया में अभी ठीक से सुबह भी नहीं हुई थी मगर इत्तेफ़ाक़ से असलम चाचा सुबह की नमाज पढ़ने को जगे हुवे थे इसलिए उनसे बात हो गयी। इधर उधर की बात के बाद उन्होंने दाना मांझी के बारे में मुझसे पूछा , कहा याद हैं दाना मांझी या भूल गए ? मैंने कहा ये वही शख्स तो नहीं है जो अपनी  पत्नी की लाश को कंधे पे लेकर १२ किलोमीटर तक पैदल चला था। उन्होंने कहा आपने बिलकुल सही पहचाना है।
क्या कुछ खबर है उनकी ? मैंने कहा नहीं, कहने लगे दाना मांझी के बारे में ताज़ा खबर ये है की अब उनके हालात बिलकुल बदल गए हैं। अकाउंट में 35~37 लाख बैलेंस, तीसरी शादी, पहले घर की तीनो बेटियों की अच्छे से परवरिश  वगैरह वगैरह .... मगर देखिये हमारे समाज की मुर्दागिरि कोई किसी अनजान की मदद नहीं करना चाहता, जब आप मशहूर हो जायेंगे, आपके पीछे कैमरा दौरने लगेगा  तब सब आपकी मदद खूब करने लगेंगे क्यूंकि आपको दुनिया देख रही होती है।
मगर यकीन मानिये इस तरह के केस में जो लोग दिखावे की मदद के लिए आगे आते हैं वहीँ लोग असलियत में इनके दरिद्रता के दोषी हैं।

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