एक साहब से उनकी बीवी ने उन्हें मुशायरे में जाने से रोकते हुवे पूछा । कहाँ जा रहे हो ग़ज़ल सुनने ! क्या सुनोगे ? औरत की बड़ाई ! तुम मर्द जब ग़ज़ल कह रहे होते हो तो समझ नहीं आता है की बड़ाई कर रहे होते हो या मजाक। एक एक अंग की ऐसे बखान करते हो जैसे तुमने जमीन पे औरत को देखने के लिए ही जन्म लिया था।
वहाँ बैठे ९० फीसदी लोग शादी शुदा होते है। ग़ज़ल सबको सुन्ना अच्छा लगता है। और उन्ही में से कोई एक आकर बीवी पे चुटकुला कहता है। जिससे ऐसा महसूस होने लगता है की तुम्हारी शादी शुदा ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं एक क़ैद है। फिर वो बड़ाई किस औरत के लिए सुनते हो पराई औरत के लिए ही ना ! अपनी बीवी तो अच्छी ही नहीं लगती है, उसमे भी कभी ग़ज़ल देखो !!
साहब थोड़ा झिंझला गए कहने लगे चुप करो। किसी भी विसय पे लेक्चर देने लगती हो। चुप होती हुई बीवी फिरसे तैश में आगयी बोली ये कोई भी विसय नहीं ये मेरा ही विसय है। और क्या समझते हो वो शायर जो तुम्हे औरतो की बखान सुनाता वो जरब उल मिशाल हैं क्या ? उनमे से एक आध ही ऐसे होते हैं जो अपने असल ज़िन्दगी में भी रोमांटिक होते हैं नहीं तो बाक़ी सब ऐसे ही हैं तुम सब ग़ज़ल सुनने वालो की तरह बस तफरीह करते हैं । अरे उन्होंने नब्ज़ पकड़ रख्खी है समाज के कुछ छुपे रुस्तमों का। ........ बस भी करो अब, नहीं जा रहा मैं कहीं
वहाँ बैठे ९० फीसदी लोग शादी शुदा होते है। ग़ज़ल सबको सुन्ना अच्छा लगता है। और उन्ही में से कोई एक आकर बीवी पे चुटकुला कहता है। जिससे ऐसा महसूस होने लगता है की तुम्हारी शादी शुदा ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं एक क़ैद है। फिर वो बड़ाई किस औरत के लिए सुनते हो पराई औरत के लिए ही ना ! अपनी बीवी तो अच्छी ही नहीं लगती है, उसमे भी कभी ग़ज़ल देखो !!
साहब थोड़ा झिंझला गए कहने लगे चुप करो। किसी भी विसय पे लेक्चर देने लगती हो। चुप होती हुई बीवी फिरसे तैश में आगयी बोली ये कोई भी विसय नहीं ये मेरा ही विसय है। और क्या समझते हो वो शायर जो तुम्हे औरतो की बखान सुनाता वो जरब उल मिशाल हैं क्या ? उनमे से एक आध ही ऐसे होते हैं जो अपने असल ज़िन्दगी में भी रोमांटिक होते हैं नहीं तो बाक़ी सब ऐसे ही हैं तुम सब ग़ज़ल सुनने वालो की तरह बस तफरीह करते हैं । अरे उन्होंने नब्ज़ पकड़ रख्खी है समाज के कुछ छुपे रुस्तमों का। ........ बस भी करो अब, नहीं जा रहा मैं कहीं

No comments:
Post a Comment