खा के चोट जो सब्र कर पाओ तो कोई बात बने
रुस्वा हो के भी पैमाना न छलकाओ तो कोई बात बने।।
ये मुकद्दर था मेरा जो कभी मैं तुमने मिला था
मिलके सदा साथ रह पाओ तो कोई बात बने।
गैरों में उलझ के कितने बदल जाते हैं लोग
उलझ के फिर संभल पाओ तो कोई बात बने।।
मालिक ऐ हक़ से है मेरा इश्क़ मेरे दोस्त
गर मालिक से दिल लगा पाओ तो कोई बात बने।।
शर्फू मेरे दोस्त तू चल कहीं दूर वीराने में
मोह दुनिया की भुला पाओ तो कोई बात बने।।
रुस्वा हो के भी पैमाना न छलकाओ तो कोई बात बने।।
ये मुकद्दर था मेरा जो कभी मैं तुमने मिला था
मिलके सदा साथ रह पाओ तो कोई बात बने।
गैरों में उलझ के कितने बदल जाते हैं लोग
उलझ के फिर संभल पाओ तो कोई बात बने।।
मालिक ऐ हक़ से है मेरा इश्क़ मेरे दोस्त
गर मालिक से दिल लगा पाओ तो कोई बात बने।।
शर्फू मेरे दोस्त तू चल कहीं दूर वीराने में
मोह दुनिया की भुला पाओ तो कोई बात बने।।
No comments:
Post a Comment