एक प्रिय मित्र का दुःख भरा सन्देश।
डिग्री, सर्टिफिकेट, रुतबा, मान सम्मान सब धरा का धरा रह जाता है जब पत्नी जी का मैसेज आता है की दफ्तर से आते हुवे सब्ज़ी लेते आना और बालक का पम्पेरस भी ख़तम हो गया है लगे हाथ वो भी ले लेना। अब उन्हें कौन समझाए की अभी आधे घंटे पहले दफ्तर में मैं ऐसे भूँक रहा था जैसे की प्रधान मंत्री हूँ और पुरे दफ्तर का बोझ मेरे ही सर है। मैं ही अकेला आदमी हूँ जो काम करता हुँ।
और ये सब गुमान एक ही सेकंड में चकना चूर करदिया जाता है। बड़ी अजीब समस्या है पुरुष जाती का हर पल अपने आपको समंजन करते रहना पड़ता है।
और दूसरी तरफ कल ही एक सज्जन का सन्देश आया की उनकी शादी की तारिख तय हो गयी है। अब मुझे समझ नही आरहा है की उन्हें बधाई दूँ या चेतावनी।
डिग्री, सर्टिफिकेट, रुतबा, मान सम्मान सब धरा का धरा रह जाता है जब पत्नी जी का मैसेज आता है की दफ्तर से आते हुवे सब्ज़ी लेते आना और बालक का पम्पेरस भी ख़तम हो गया है लगे हाथ वो भी ले लेना। अब उन्हें कौन समझाए की अभी आधे घंटे पहले दफ्तर में मैं ऐसे भूँक रहा था जैसे की प्रधान मंत्री हूँ और पुरे दफ्तर का बोझ मेरे ही सर है। मैं ही अकेला आदमी हूँ जो काम करता हुँ।
और ये सब गुमान एक ही सेकंड में चकना चूर करदिया जाता है। बड़ी अजीब समस्या है पुरुष जाती का हर पल अपने आपको समंजन करते रहना पड़ता है।
और दूसरी तरफ कल ही एक सज्जन का सन्देश आया की उनकी शादी की तारिख तय हो गयी है। अब मुझे समझ नही आरहा है की उन्हें बधाई दूँ या चेतावनी।
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