इसको एक उदहारण से समझिये !
ऐसे ही एक मामले का ज़िक्र त्रिभुवन चाचा करते हैं। वो कहते हैं की उनको बड़ा शौक़ था हर कोई को खुश रखने का और सबसे दोस्ती बनाये रखने का वो जब भी किसी से मिलते कहते सब आपकी दुआ है। सब आपके आशीवार्द से है। बस क्या था उनके एक चाचा जो की बाबा के जैसे थे उन्हें लगा शायद सही में त्रिभुवन को उनकी ही दुआ लगी है।फिर उनके चाचा ने उनसे अपना हिस्सा मांगना शुरू करदिया की तू तो इतना कमा रहा है मेरी दुआ से इस कमाई का कुछ हिस्सा मुझे भी दे। बड़ी लड़ाई हुई पंच परमेश्वर आये सबके सामने मामला लाया गया। मामला सुनने के बाद पंच के चार में से तीन ने कहा के इसके कमाई में मेरा भी हिस्सा है। ये मुझे भी कहता रहा है की ये सब आपके आशीर्वाद से है। मुझे नहीं पता था के ये मेरे आशीर्वाद से इतना कमा रहा है।
फिर सबने मिलके फैसला किया के त्रिभुवन के कमाई का दो हिस्सा होगा एक हिस्सा त्रिभुवन को और एक हिस्सा आशीर्वाद देने वाले को मिलेगा।
अब बताओ त्रिभुवन चाचा को उनके उदारता की क्या सजा मिली।
इतिहास गवाह है उदार रहने वाले हमेशा काटे गए हैं। चाहे वो एकलव्य हो या कोई और ज्यादा झुक के अगर उदारता दिखाई तो अगला बेशरम होकर अपनी नाकामी को छुपाने के लिए या आपकी कामयाबी को अपनी बताने के लिए आपका अंगूठा मांग लेता हैं।