सोलह आने का सोलकन!
बात उन दिनों की है जब यातायात के इतने साधन नहीं होते थे। हम सब एक छोटे से गांव में रहते थे और बाजार हमारे घरसे लगभग ७ किलोमीटर दूर था। छोटे मोठे घरेलु सामान के लिए भी वहीँ जाना होता था। चूँकि मैं सबसे बड़ा मेंबर था अपने घरका इसलिए मेरी माँ मुझे सब जरुरी बातें बता कर किसी के साथ बाजार भेज देतीं थीं और इनाम में १६ आने देतीं थी । उसपे मेरा अधिकार होता था मैं चाहे जो करूँ। और तब मैं अपने गांव के सरकारी विद्यालय के दूसरी कक्षा में पढता था। ज्यादा कुछ याद नहीं मगर बस ये याद रह गया की जब जब बाजार जाना होता था मैं आधे दिनके लिए सोलह आने का सोलकन बन जाता था। फिर कुछ दिन बाद मेरी माँ ने मेरी इनाम की राशि बढ़ा कर ३२ आने देनी लगी और इस तरह से मैं आधे दिनमे दो बार सोलह आने का सोलकन बनने लगा।
आज ढूंढता हूँ उस सोलह आने को नहीं मिल रहा, कहीं खो सा गया है।
बात उन दिनों की है जब यातायात के इतने साधन नहीं होते थे। हम सब एक छोटे से गांव में रहते थे और बाजार हमारे घरसे लगभग ७ किलोमीटर दूर था। छोटे मोठे घरेलु सामान के लिए भी वहीँ जाना होता था। चूँकि मैं सबसे बड़ा मेंबर था अपने घरका इसलिए मेरी माँ मुझे सब जरुरी बातें बता कर किसी के साथ बाजार भेज देतीं थीं और इनाम में १६ आने देतीं थी । उसपे मेरा अधिकार होता था मैं चाहे जो करूँ। और तब मैं अपने गांव के सरकारी विद्यालय के दूसरी कक्षा में पढता था। ज्यादा कुछ याद नहीं मगर बस ये याद रह गया की जब जब बाजार जाना होता था मैं आधे दिनके लिए सोलह आने का सोलकन बन जाता था। फिर कुछ दिन बाद मेरी माँ ने मेरी इनाम की राशि बढ़ा कर ३२ आने देनी लगी और इस तरह से मैं आधे दिनमे दो बार सोलह आने का सोलकन बनने लगा।
आज ढूंढता हूँ उस सोलह आने को नहीं मिल रहा, कहीं खो सा गया है।
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