तैयारियां बहुत जोड़ों पे थीं। मैं भी बहुत खुश था बार बार घडी देख रहा था। शाम हुई फिर रात हुई और फिर सुबह। जल्दी जल्दी तैयार हो कर गाड़ी से एयरपोर्ट की तरफ जा रहा था, मैं। ये सब कुछ इतना जल्दी हुवा था की कुछ समझ नहीं आरहा था। अगले दिन दोपहर को मैं अमेरिका के नासा स्पेस सेंटर पे था जहाँ से मुझे मेडिकल टेस्ट के बाद अंतरिक्ष में जाना था।
अमिन अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहा था की वो दिन भी आ गया जब मैं अंतरिक्ष की उड़ान भरने को तैयार हूँ । असल में ये कहानी तब शुरू हुई थी जब नासा को एक आदमी की तलाश थी, ऐसे गृह पे भेजने की जहाँ वैज्ञानिक या कोई भी मनुष्ये को भेजने की अनुमति नहीं है अर्थात अभी तक वहां केवल जानवरों की ही भेजा गया है। तब नासा ऐसे इंसान को ढूंढ रहा था जो अंतरिक्ष की थोड़ी बहुत समझ रखते हों और अंतरिक्ष की सैर उनका शौक हो। ताकी वो इंसान अपने शौक़ के लिए वो सब करने को तैयार हो जाये जो नासा चाहता था। उन्होंने मुझे ऑनलाइन ढूंढा था, मेरे कुछ ब्लॉग जो की मैंने नासा के लिए और स्पेस के लिए लिखे थे वो उन्हें पसंद आये थे और उनको शायद लगा था की ये बन्दा मेरे काम का है। मुझसे उनलोगों ने इ-मेल से संपर्क किया था। और उसके बाद वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग तथा कई मुलाक़ात और उसके बाद नॉन डिस्क्लोज़र डॉक्यूमेंट हस्ताक्षर कराये गए। ये करार कराया गया था की मैं ये बात अपने घरवाले को भी नहीं बताऊंगा। उन्होंने मेर विसा भी किसी और काम के लिए दिलवाया था ताके किसी को कोई शक न हो। बहुत टेक्निकल ट्रेनिंग और कई दूसरी प्रक्रिया के गुजरने के बाद मुझे इसके लिए तैयार किया गया था।
स्पेस शिप के उरते ही एक सकून सा मिला और उत्साह ख़तम होकर अनुभव शुरू होगया था। 40300 मील प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ता यान शायद जमीन से लोगों को कुछ अजीब दीखता रहा होगा मगर यकीन मानिये अंदर में ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी कमरे में बैठा हूँ। यान उड़ता ही गया और उड़ते उड़ते न जाने कहाँ पहुँच गया यहाँ तक के स्पेस सेंटर से मेरा संपर्क टूट गया और और चेतावनी संकेत अंकित हो गए। मैं बहुत परेशान हो गया। यात्रा में बिताये समय के अनुसार शायद मैं पृथ्वी से बहुत दूर पहुँच चुका था जहाँ के बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। कुछ समझ नहीं आरहा था की अचानक यान में जोर जोर से आवाज़ें होने लगीं थी। इससे पहले की मैं कुछ समझ पाता, यान दो टुकड़ों में बंट चूका था, इंजन बंद होने और
गुरुत्वाकर्षण न होने के कारण मैं टूटे हुवे यान के टुकड़े के साथ हवा में झूल रहा था। थोड़ी मेहनत करके मैं बहार की तरफ आया और हवा में पाओं हाथ चलाते हुवे इधर उधर जाने लगा। मेरे स्पेस सूट की वजह से ये सब मुमकिन हो पा रहा था। तभी मुझे निचे की ओर बहुत दूर कुछ पृथ्वी जैसी चीज़ दिखी। मैं बिन सोचे समझे उस ओर जाने लगा, कुछ घंटो बाद मुझे ऐसा एहसास हुवा की मैं किसी अनजान शक्ति की तरफ खींचा जा रहा हूँ तब मैंने अपना हाथ पाओं चलाना छोरदिया था। देखते ही देखते मुझे अंदर से कुछ शक्ति भी महसूस होने लगी ऐसा लगने लगा जैसे मैंने कोई एनर्जी ड्रिंक ले लिया हो।
धीरे धीरे मैं एक सतह पे उतरा जो की बहुत खूबसूरत दिख रहा था। मगर ये क्या ? वहां चीज़ों के रंग बिलकुल अलग थे ! यहाँ पृथ्वी की तरह लाल सफेद या हरा नहीं बल्कि कुछ अलग रंग था। वैसे रंग मैंने कभी नहीं देखे थे। और तब मुझे समझते देर न लगी के मैं किसी और गृह पे आगया हूँ। जहाँ ऊर्जा का श्रोत सूर्ये नहीं है और इस गृह के सूर्ये की रौशनी कुछ अलग है। चूँकि अपने धरती पे हम सूर्ये की रौशनी के संयोजन की वजह से ये सब रंग देख पाते हैं और अगर संयोजन अलग हो तो शायद रंग अलग दिखेगा, इसलिए धरती के रंग वहां नहीं थे उनके सूर्ये के रौशनी का संयोजन शायद अलग था।
मैं चलता ही जा रहा था और कोई थकान भी नहीं हो रही थी, ये शायद वहां के वातावरण की वजह से हो पा रहा था। तभी मुझे वहां एक मनुष्य जैसा प्राणी दिखा, जिनके शरीर पे कोई कपड़ा नहीं था। मैं उन्हें देख डर गया था। और एक पथ्तर के पीछे छुप गया, उन्हें गौर से देखने लगा मगर कुछ खास हरकत नहीं हो रही थी। शायद उन लोगों में चेतना की कमी थी या शायद चेतना थी ही नहीं। मैं काफी देर तक उन्हें देखता रहा मगर कुछ पता न चला, शायद उन लोगों को खाने पिने की जरुरत भी महसूस नहीं होती रही होगी क्यूंकि मैं खुद भी वहां भूख प्यास महसूस नहीं कर पा रहा था। मगर सब कुछ शांत शांत था। मुझे लगा मुझे सूट उतार देना चाहिए और मैं इसके लिए बहार का प्रेशर चेक किया जो की सामन्य था पृथ्वी से थोड़ा ज्यादा। फिर मैंने अपना सूट उतार दिया। सूट उतरने के बाद शरीर में बदलाव सा महसूस होने लगा और खुले हुवे तव्चा में एक चमक सी आगयी, तब मुझे समझते देर न लगी की यहाँ के लोग नगण्य क्यों थे। उन्हें किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं था। न कहने की फ़िक्र न सोने की फ़िक्र और शायद ना ही मरने चिंता। वहां सब लोग जवान से दीखते थे। सबका जिस्म एक जैसा ही था। कोई स्त्री या पुरुष जैसा अंतर नहीं दिख रहा था। शायद उनके यहाँ प्रजनन का कोई मामला नहीं बनता होगा और एक बार ज़िन्दगी दे कर उन्हें अमर करदिया गया होगा। क्यूंकि सूर्ये से सम्पर्क में आकर मेरे तव्चा में भी बदलाव आये थे और भूख प्यास भी ख़तम हो गयी थी तथा ताक़त बे बेहिसाब सा महसूस हो रहा था।
अभी मैं पथ्थर के पीछे छुप के ये सब सोच ही रहा था की मुझे लगा की किसीne मेरे सर पे डंडा मारा हो। और तब मेरी आँख खुल गयी थी और एहसास हुवा की मैं बिस्तर पे लेटा हूँ और रात के क़रीब डेढ़ बज रहे हैं।
अमिन अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहा था की वो दिन भी आ गया जब मैं अंतरिक्ष की उड़ान भरने को तैयार हूँ । असल में ये कहानी तब शुरू हुई थी जब नासा को एक आदमी की तलाश थी, ऐसे गृह पे भेजने की जहाँ वैज्ञानिक या कोई भी मनुष्ये को भेजने की अनुमति नहीं है अर्थात अभी तक वहां केवल जानवरों की ही भेजा गया है। तब नासा ऐसे इंसान को ढूंढ रहा था जो अंतरिक्ष की थोड़ी बहुत समझ रखते हों और अंतरिक्ष की सैर उनका शौक हो। ताकी वो इंसान अपने शौक़ के लिए वो सब करने को तैयार हो जाये जो नासा चाहता था। उन्होंने मुझे ऑनलाइन ढूंढा था, मेरे कुछ ब्लॉग जो की मैंने नासा के लिए और स्पेस के लिए लिखे थे वो उन्हें पसंद आये थे और उनको शायद लगा था की ये बन्दा मेरे काम का है। मुझसे उनलोगों ने इ-मेल से संपर्क किया था। और उसके बाद वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग तथा कई मुलाक़ात और उसके बाद नॉन डिस्क्लोज़र डॉक्यूमेंट हस्ताक्षर कराये गए। ये करार कराया गया था की मैं ये बात अपने घरवाले को भी नहीं बताऊंगा। उन्होंने मेर विसा भी किसी और काम के लिए दिलवाया था ताके किसी को कोई शक न हो। बहुत टेक्निकल ट्रेनिंग और कई दूसरी प्रक्रिया के गुजरने के बाद मुझे इसके लिए तैयार किया गया था।
स्पेस शिप के उरते ही एक सकून सा मिला और उत्साह ख़तम होकर अनुभव शुरू होगया था। 40300 मील प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ता यान शायद जमीन से लोगों को कुछ अजीब दीखता रहा होगा मगर यकीन मानिये अंदर में ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी कमरे में बैठा हूँ। यान उड़ता ही गया और उड़ते उड़ते न जाने कहाँ पहुँच गया यहाँ तक के स्पेस सेंटर से मेरा संपर्क टूट गया और और चेतावनी संकेत अंकित हो गए। मैं बहुत परेशान हो गया। यात्रा में बिताये समय के अनुसार शायद मैं पृथ्वी से बहुत दूर पहुँच चुका था जहाँ के बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। कुछ समझ नहीं आरहा था की अचानक यान में जोर जोर से आवाज़ें होने लगीं थी। इससे पहले की मैं कुछ समझ पाता, यान दो टुकड़ों में बंट चूका था, इंजन बंद होने और
गुरुत्वाकर्षण न होने के कारण मैं टूटे हुवे यान के टुकड़े के साथ हवा में झूल रहा था। थोड़ी मेहनत करके मैं बहार की तरफ आया और हवा में पाओं हाथ चलाते हुवे इधर उधर जाने लगा। मेरे स्पेस सूट की वजह से ये सब मुमकिन हो पा रहा था। तभी मुझे निचे की ओर बहुत दूर कुछ पृथ्वी जैसी चीज़ दिखी। मैं बिन सोचे समझे उस ओर जाने लगा, कुछ घंटो बाद मुझे ऐसा एहसास हुवा की मैं किसी अनजान शक्ति की तरफ खींचा जा रहा हूँ तब मैंने अपना हाथ पाओं चलाना छोरदिया था। देखते ही देखते मुझे अंदर से कुछ शक्ति भी महसूस होने लगी ऐसा लगने लगा जैसे मैंने कोई एनर्जी ड्रिंक ले लिया हो।
धीरे धीरे मैं एक सतह पे उतरा जो की बहुत खूबसूरत दिख रहा था। मगर ये क्या ? वहां चीज़ों के रंग बिलकुल अलग थे ! यहाँ पृथ्वी की तरह लाल सफेद या हरा नहीं बल्कि कुछ अलग रंग था। वैसे रंग मैंने कभी नहीं देखे थे। और तब मुझे समझते देर न लगी के मैं किसी और गृह पे आगया हूँ। जहाँ ऊर्जा का श्रोत सूर्ये नहीं है और इस गृह के सूर्ये की रौशनी कुछ अलग है। चूँकि अपने धरती पे हम सूर्ये की रौशनी के संयोजन की वजह से ये सब रंग देख पाते हैं और अगर संयोजन अलग हो तो शायद रंग अलग दिखेगा, इसलिए धरती के रंग वहां नहीं थे उनके सूर्ये के रौशनी का संयोजन शायद अलग था।
मैं चलता ही जा रहा था और कोई थकान भी नहीं हो रही थी, ये शायद वहां के वातावरण की वजह से हो पा रहा था। तभी मुझे वहां एक मनुष्य जैसा प्राणी दिखा, जिनके शरीर पे कोई कपड़ा नहीं था। मैं उन्हें देख डर गया था। और एक पथ्तर के पीछे छुप गया, उन्हें गौर से देखने लगा मगर कुछ खास हरकत नहीं हो रही थी। शायद उन लोगों में चेतना की कमी थी या शायद चेतना थी ही नहीं। मैं काफी देर तक उन्हें देखता रहा मगर कुछ पता न चला, शायद उन लोगों को खाने पिने की जरुरत भी महसूस नहीं होती रही होगी क्यूंकि मैं खुद भी वहां भूख प्यास महसूस नहीं कर पा रहा था। मगर सब कुछ शांत शांत था। मुझे लगा मुझे सूट उतार देना चाहिए और मैं इसके लिए बहार का प्रेशर चेक किया जो की सामन्य था पृथ्वी से थोड़ा ज्यादा। फिर मैंने अपना सूट उतार दिया। सूट उतरने के बाद शरीर में बदलाव सा महसूस होने लगा और खुले हुवे तव्चा में एक चमक सी आगयी, तब मुझे समझते देर न लगी की यहाँ के लोग नगण्य क्यों थे। उन्हें किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं था। न कहने की फ़िक्र न सोने की फ़िक्र और शायद ना ही मरने चिंता। वहां सब लोग जवान से दीखते थे। सबका जिस्म एक जैसा ही था। कोई स्त्री या पुरुष जैसा अंतर नहीं दिख रहा था। शायद उनके यहाँ प्रजनन का कोई मामला नहीं बनता होगा और एक बार ज़िन्दगी दे कर उन्हें अमर करदिया गया होगा। क्यूंकि सूर्ये से सम्पर्क में आकर मेरे तव्चा में भी बदलाव आये थे और भूख प्यास भी ख़तम हो गयी थी तथा ताक़त बे बेहिसाब सा महसूस हो रहा था।
अभी मैं पथ्थर के पीछे छुप के ये सब सोच ही रहा था की मुझे लगा की किसीne मेरे सर पे डंडा मारा हो। और तब मेरी आँख खुल गयी थी और एहसास हुवा की मैं बिस्तर पे लेटा हूँ और रात के क़रीब डेढ़ बज रहे हैं।