ज़िंदा हूँ अभी मैं शायद कोई मेरे लिए दुआ करता है
गिरके भी सम्भलने की क्या कोई इल्तेजा करता है
ये तो कुछ ज़िम्मेदारियाँ है मुझपे सरे आम होने की
नही तो इस दुनिया में भी रहने की क्या कोई दुआ करता है
बड़ा अहमक़ है ये इंसान, मगरूर और मक्कार भी
वजूद कुछ भी नही और जा बजा होने की दुआ करता है
लिखवा के शिजरा कब्र पे कभी कोई जावेद हुआ
ये इंसान है की है बस हर कुछ पाने की दुआ करता है
गिरके भी सम्भलने की क्या कोई इल्तेजा करता है
ये तो कुछ ज़िम्मेदारियाँ है मुझपे सरे आम होने की
नही तो इस दुनिया में भी रहने की क्या कोई दुआ करता है
बड़ा अहमक़ है ये इंसान, मगरूर और मक्कार भी
वजूद कुछ भी नही और जा बजा होने की दुआ करता है
लिखवा के शिजरा कब्र पे कभी कोई जावेद हुआ
ये इंसान है की है बस हर कुछ पाने की दुआ करता है
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