पढ़ा दो वक्त की नमाज और हम जन्नती हो गए
एक दिन पसीना क्या निकला हम मेहनती हो गए।
देखे बड़े बेपरवा नज़ारे इस जहाँ में
कोई न बच स्का सब जहन्नमी हो गए ।
रोक पाया न मैं अपने इंसानी वजूद को या रब
देखा जो बाजार खुली खिरकी और नट खटी हो गए ।
क्या कोई इन अफ़सुर्दा ख़्यालात में ज़िंदा है
हम किस काडर यहाँ उलझ के जहन्नमी हो गए।
किया तुमने अगर किताबों पे अमल ऐ सरफ़राज़
कुछ लोग यहाँ मरने से पहले ही जन्नती हो गए।
एक दिन पसीना क्या निकला हम मेहनती हो गए।
देखे बड़े बेपरवा नज़ारे इस जहाँ में
कोई न बच स्का सब जहन्नमी हो गए ।
रोक पाया न मैं अपने इंसानी वजूद को या रब
देखा जो बाजार खुली खिरकी और नट खटी हो गए ।
क्या कोई इन अफ़सुर्दा ख़्यालात में ज़िंदा है
हम किस काडर यहाँ उलझ के जहन्नमी हो गए।
किया तुमने अगर किताबों पे अमल ऐ सरफ़राज़
कुछ लोग यहाँ मरने से पहले ही जन्नती हो गए।
No comments:
Post a Comment