यहाँ मैं नही किसी का तो कोई तरफदार कैसा
सब सेहत्याब हैं यहाँ कोई बीमार कैसा।
तेरी हुक्मो पे मैं करता हूँ यहाँ तोबा
तुही सुनता है मेरी तो मैं गुनहगार कैसा।
बुराई से हूँ लबरेज़ मौसमो की भीड़ में
इतना करने पे फिर मैं माफ़ी का तलबगार कैसा।
उलझ गए हम इंसान कुछ सिक्को के फेर में
चंद दिन की ही जिंदगी है और यहाँ ये बाजार कैसा।
तेरी रहमत का नजूल जो हमपे बिखर जाये
मालामाल हो जाएं हम उसमें कोई हिस्सेदार कैसा।
अगर मैं मुसाफिर हूँ तो मुझे लालच क्यों है
गर सबकुछ तेरे हाथ है सरफ़राज़ तो तू लाचार कैसा।
सब सेहत्याब हैं यहाँ कोई बीमार कैसा।
तेरी हुक्मो पे मैं करता हूँ यहाँ तोबा
तुही सुनता है मेरी तो मैं गुनहगार कैसा।
बुराई से हूँ लबरेज़ मौसमो की भीड़ में
इतना करने पे फिर मैं माफ़ी का तलबगार कैसा।
उलझ गए हम इंसान कुछ सिक्को के फेर में
चंद दिन की ही जिंदगी है और यहाँ ये बाजार कैसा।
तेरी रहमत का नजूल जो हमपे बिखर जाये
मालामाल हो जाएं हम उसमें कोई हिस्सेदार कैसा।
अगर मैं मुसाफिर हूँ तो मुझे लालच क्यों है
गर सबकुछ तेरे हाथ है सरफ़राज़ तो तू लाचार कैसा।
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