चला आया प्रदेश कुछ कर गुजरने को
इस भीड़ भरी
दुनिया में रह गुजरने को।
किसे पता है यहाँ क्या होता है
सर पे सवार हाकिम हरवक्त गरजने को।
मेरे महबूब ऐ ज़िन्दगी तो ये चंद
सिक्के है
बेवफा हैं जो हैं
तैयार हर वक्त बिछरने को।
महबूब की चाहत ने मुझे इस कदर
घेरा है
भूल जाता हूँ
मैं
रज्जाक से सिहरने को।
अमल से ग़ाफ़िल तू क्यों है सरफ़राज़
शैतान है तैयार हरवक्त निगलने को।
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