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Wednesday, 27 July 2022

इंसान को इस्लाम की शख्ती दूसरे के लिए अच्छी लगती है मगर अपने लिए नहीं।

कल शाम असलम चचा के घर गया। बहुत उदास थे, उन्होंने बताया के एक गरीब के बच्चे ने मदरसे में पढ़ना शुरू किया तो उनके मालिक यानि ज़मींदार बोले पढ़ा क्यों रहे हो। इससे क्या होगा गांव में नई बस चल रही है उसमे इसको हम कंडक्टर रखवा देंगे। उस ग़रीब ने कहा के मेरा वस चले तो ऐसा करदूँ मालिक लेकिन बच्चे माँ की सुनते हैं। आप उसे ही समझाइये। जमींदार साहब कुछ न बोले, फिर कुछ दिन बाद वो लड़का मदरसे से पढ़ कर आया तो ज़मींदार साहब ने उनकी बड़ी इज़्ज़त की अपने खटिये पे बैठाया और गाओं के कई लोगों के बारे में उनके काम और करतूत के हिसाब से बच्चे से इस्मालिक लेहाज़ से मसला पूछा और और उनलोगों को दूसरे लोगों के सामने निचा दिखवाया। ये खबर बच्चे की माँ तक पहुंची फिर माँ ने बच्चे को ऐसा करने से मना किया और ज़मींदार साहब की करतूत भी बता दी। बताया की ज़मींदार कोई दूध का धुला नहीं है। बच्चा दो तीन दिन बाद जब उधर से गुजरा तो जमींदार साहब ने टोका, "भई तू किधर है उस दिन के बाद दिखाई न दिया"। बच्चे को पास बुलाया और बैठाया और फिरसे कहने लगा दूसरे की बातें , मगर बच्चा इस बार होशियार था। उसने जमींदार साहब को टोक दिया के आपके भी तो कारनामे हैं। बस फिर क्या था ज़मींदार साहब के लठैत ने बच्चे को जमीन पर धकेल दिया और लाठी से खूब पीटा। सारांश : इंसान को इस्लाम की शख्ती दूसरे के लिए अच्छी लगती है मगर अपने लिए नहीं।

Thursday, 23 June 2022

उदारता: अभिशाप या वरदान

उदारता एक ऐसी चीज़ है की हर इंसान मे इसका  होना जरुरी है।  इसके होने से ही इंसान इंसान है।  इंसान में इसका न होना बहुत बड़ी कमी है।  हमें अपने परिवार, दोस्तों, समुदाय और समाज के विभिन्न हितों के लिए उदार होना चाहिए। यह किसी भी तरह से  हो सकता है जैसे के  अपने निकटतम लोगों और समुदायों के लिए अपने समय, धन, सहयोग और श्रद्धा के साथ समर्थन करना वगैरह वगैरह। 

हालांकि, उदारता कई बार अभिशाप बन जाती है। जब कोई व्यक्ति अपने उदारता की वजह से अपने सम्बन्धित व्यक्तियों के चपेट में आजाये, तब वे अभिशाप है।

 इसको एक उदहारण से समझिये !

ऐसे ही एक मामले का ज़िक्र त्रिभुवन चाचा करते हैं।  वो कहते हैं की उनको बड़ा शौक़ था हर कोई को खुश रखने का और सबसे दोस्ती बनाये रखने का वो जब भी किसी से मिलते कहते सब आपकी दुआ है।  सब आपके  आशीवार्द से है।  बस क्या था उनके एक चाचा जो की बाबा के जैसे थे उन्हें लगा शायद सही में त्रिभुवन को उनकी ही दुआ लगी है।फिर  उनके चाचा ने उनसे अपना हिस्सा मांगना शुरू करदिया की तू तो इतना कमा रहा है मेरी दुआ से इस कमाई का कुछ हिस्सा मुझे भी दे।  बड़ी लड़ाई हुई पंच परमेश्वर आये सबके सामने मामला लाया गया।  मामला सुनने के बाद पंच के चार में से तीन ने कहा के इसके कमाई में मेरा भी हिस्सा है। ये मुझे भी कहता रहा है की ये सब आपके आशीर्वाद से है।  मुझे नहीं पता था के ये मेरे आशीर्वाद से इतना कमा रहा है। 

फिर सबने मिलके फैसला किया के त्रिभुवन के कमाई का दो  हिस्सा होगा एक हिस्सा त्रिभुवन को और एक हिस्सा आशीर्वाद देने वाले को मिलेगा। 

अब बताओ  त्रिभुवन चाचा को उनके उदारता की क्या सजा मिली। 

इतिहास गवाह है उदार रहने वाले हमेशा काटे  गए हैं। चाहे वो  एकलव्य हो या कोई और ज्यादा झुक के अगर उदारता दिखाई तो अगला बेशरम होकर अपनी नाकामी को छुपाने के लिए या आपकी कामयाबी को अपनी बताने के लिए  आपका अंगूठा मांग लेता हैं।  

Monday, 28 March 2022

Man proposes God disposes 01


 Man proposes God disposes  


This is the third incident of my life when I tried to choose a job based on longevity but failed. Every time scrutinize it from every spect but it was failed again and again.


I remember when I accepted the Egis offer in 2016 for the IDRIS tunnel project from the perspective of longevity as it was a massive drainage project in QATAR. But it did not run as per the expectation and the project was shortened in the next six months instead of 4 years period. I was having am another good offer with high pay with less duration. But due to longevity, IDRIS was my preference. 


The same repeated in 2021, I was having a very nice offer from a good organization but I choose another one due to longevity but it failed again. I felt uncomfortable after joining. The job was not secure but the ball was gone from my hand. And finally, before completing a year the job was lost. The organization said, will not pay any leave or loyalty as it was 355 days only instead 365 days. This was the first job when I haven't taken any leave in whole years and the fruit of that loyalty was....


Now looking for a job without any duration with the belief in myself and my GOD, irrespective of duration. Because the things which are not in your hand do not worry about that.


Monday, 21 June 2021

एक कथन 'जोनाथन केस्टनबाम' के

 इस बार हफ्ते के दिन मैं  अपने एक गुरु जी  से मिलने गया।  उनको देखा वो एक किताब पढ़ रहे थे जिसमे  लेखक  'जोनाथन केस्टनबाम' के एक कथन को विस्तार से बता रहे थे।  


वे कह रहे थे के  "एक बार  एक युवा जोड़ा एक नए पड़ोस में रहने गया।

अगली सुबह जब वे नाश्ता कर रहे थे, तो युवती ने अपने पड़ोसी को बाहर कपड़े सुखाते हुए देखा। "वह कपड़े बहुत साफ नहीं धुले हैं।  शायद वह नहीं जानती कि सही तरीके से कैसे कपड़ा धोया जाता है। या फिर शायद उसे बेहतर कपड़े धोने का साबुन चाहिए।"

उसका पति चुप रहा, देखता रहा। हर बार उसके पड़ोसी वैसा ही धोया कपड़ा सुखाते  रहे और  युवती वही टिप्पणी करती रही।

एक महीने बाद, महिला बाहर तार  पर एक अच्छा साफ धोया हुवा कपड़ा देखकर हैरान रह गई और उसने अपने पति से कहा, "देखो, उसने आखिरकार सही तरीके से धोना सीख  लिया । मुझे आश्चर्य है कि उसे यह किसने सिखाया होगा ?"

पति ने उत्तर दिया, "मैं आज सुबह मैं जल्दी उठा था और अपनी खिड़कियां साफ की हैं "

और ऐसा ही जीवन के साथ है... दूसरों को देखते समय हम जो देखते हैं, वह उस खिड़की की स्पष्टता पर निर्भर करता है जिससे हम देखते हैं।

इसलिए दूसरों को आंकने में जल्दबाजी न करें, खासकर यदि आपके जीवन का दृष्टिकोण क्रोध, ईर्ष्या, नकारात्मकता या अधूरी इच्छाओं से घिरा हो।

"किसी व्यक्ति को आंकना यह परिभाषित नहीं करता कि वे कौन हैं। यह परिभाषित करता है कि आप कौन हैं।"


  ~~ जोनाथन केस्टनबाम

Saturday, 19 June 2021

گرو جی کا گیاں

 گرو جی کہتے ہیں۔ سب غلطی کرتے ہیں کوئی پاک نہی سواے اسکے جسکو الله پاک رکھے ۔ سب سے بڑی چیز ہے غلطی کا احساس کرنا اور دوبارہ ویسی ہی غلطی نہ کرنا ۔ شیطان آپکا کھلا دشمن ہے۔ وہ ہمیشہ آپ کو ایسی چیزوں میں دھکیلتا رہے گا لیکن آپ کو اس پر قابو پانا ہوگا۔ غصے کی حالت میں ، آپ کو کبھی بھی اپنی غلطی نظر نہیں آتی اور سامنے والے شخص میں سب کچھ غلط نظر آتا ہے۔ لیکن آپ کو وقت نکالنا چاہئے اور اپنے اندر دیکھنا چاہئے اور خواہ آپکی غلطی نہ ہو مگر آپ کو اس نیت کے ساتھ سامنے والے شخص سے معافی مانگنی چاہئے کہ میرا اللہ اس خوش اخلاق رویے سے مجھ سے راضی ہوجائے۔ مختصر یہ کے الله کی رضا کیلئے معافی مانگنے میں کبھی دیر نہ کریں - کی بار ایسا بھی ہوتا ہے کے الله کے نیک بندے آپکے معافی سے پہلے ہی آپکو معاف کردیتے ہیں - اور کی لوگ تو رات کو سوتے وقت سبکو معاف کرکے سوتے ہیں - آپ انمے سے بن جایئے -

مینے کہا گرو جی بس بس آج کے لئے اتنا کافی ہے - جزاک الله

خودکا محافظ

 قریب آج سے بیس سال پہلے استاد محترم کے ایک ڈانٹ نے  مجھے  زنگی  کی بہت   بڑی سیکھ دی تھی - ہوا یوں تھا کے میں نیا نیا  ہاسٹل گیا تھا - بچپن کا دور تھا - کسی کو بھی انگلی کرنا ایک پیدائشی حق جیسا معلوم ہوتا تھا - میرے والد اور والدہ محترمہ کو کبھی پسند نہ تھا کے میں انسے  دور جاؤں - مگرمیرے  ضد کے آگے مجھے روک نہ پاۓ  - خیر آخر مے میری والدہ نے کہا "بیٹا  ہاسٹل مے اپنا دھیان رکھنا اور یہ سوچنا کہ تمہاری ماں وہاں تمہاری حفاظت کیلئے  نہی ہے تم خدکے ہی محافظ ہو - ویسے تو سبکا محافظ الله ہے "

ماں کی بات آی اور گی-   ہاسٹل قریب ١٠٠ کلومیٹر دور تھا میرے گھر سے - راستے کی چکا چوندہ  دنیا اور بس کے تیز ہارن سے دماغ  کے سارے تار روشن تھے ایک دم مگن مے تھا - شام کو ہاسٹل پہچا اور داخلہ و دیگر کاغذی کاروائی کے بعد میرے بھائی اور والد لوٹ گئے - میں اکلیا تھا - رات مے  مجھے ما ں  کی بہت آئ - زندگی مے پہلی بار ماں سے ایسے الگ ہوا تھا -اس وقت میری عمر قریب  آٹھ سال تھی -  جیسے تیسے صبح  ہوئی اور میں اٹھکے کلاس جانے کو تیار ہونے لگا - من بہت بھاری سا تھاایک ہی رات مے  آنکھے سوج گئی تھی - پھر مجھے یاد آیا کے یہ ہاسٹل آنے کی  ضد میری ہی تو تھی تو اب ملال کیوں - کیونکی میری ماں نے کہ رکھا تھا کے "بیٹا  جا تو رہے ہو اپنے ضد  پہ  مگر کبھی ہاسٹل سے بھاگ  کر مت آنا نہی تو پچھتاؤگے - میں ایک بھگوڑے کو گھر مے گھسنے نہی دونگی " ماں کی بات اور  اپنی  ضد یاد آئی -اور میں نارمل ہو گیا - ہونا ہی تھا اور کوئی چارہ بھی نہی تھا - ہاسٹل مے زندگی اچّھے سے گزرنے لگی اور میں خوب مزے مے رہنے  لگا تھا -

مگر ماں کےاس  سیکھ  سے ایک دن واسطہ پر گیا جسمے انہونے اپنی حفاظت خود کرنے کو کہا تھا - میرے ایک استاد کے پاؤں مے درد تھا مینے  کہ دیا کہ شاید آپ بہت  تیز تیز بھاگتے ہیں  اسلئے آپکا پاؤں  اچک گیا ہوگا - استاد محترم بہت ناراض ہوے اور اکیلے مے بلا کر بہت ڈانٹا کھا کہ  کیا تمہے گھر سے آتے وقت کسی نے بتایا نہی کے استاد سےکیسے پیش آنا ہے - مینے  اسنے معافی مانگی اپنیغلطی پہ نادم ہوا  اور پھر کبھی دوبارہ  کسی استاد کی ناراضگی نہی جھیلی - یہ سب واقعہ  کے پیچھے ایک دوسری وجہ تھی - ہوا یہ تھا کے جب میں اپنے گائوں پڑھتا تھا تو کہیں سے سنا تھا -

ماسٹر صاحب ماسٹر صاحب پان کھائیگا 

کوٹھی پہ  ڈنڈا مار کھائیگا------

بس کیا تھا گھر سے سڑک  کے دوسرے جانب ایک ماسٹر صاحب رہتے  جنسے میں گاؤں کے سرکاری اسکول میں  پڑھنے جاتا تھا انکو جاکر یہ تکبندی  سنا  آیا - ماسٹر صاحب کے چہرے  پہ  غصّہ  کی لالی   کو میں تو نہی پڑھ پایا لیکن ایک شریف انسان نے یہ سب دیکھ لیا اور میری والدہ محترمہ کو سب بات بتا دیا - میری والدہ مجھپے بہت غصّہ ہوئیں اور کہا کہ  میں دور سے دیکھ رہیں ہوں تم جاکر ماسٹر صاحب سے معافی مانگو - مجھے اس وقت نہ تواس تکبندی  کے بارے مے زیادہ  معلوم تھا اورنہ  ہی اس معافی کے اس  رسم کے  بارے مے - بس اتنا پتا تھا کے ماں دورسے اسلئے دیکھ رہیں تھیں کہ کہیں ماسٹر صاحب میری پٹائی  نا  کردیں - 

مگر یہ معافی اور ہاسٹل کی معافی مے بہت فرق تھا  وہاں مجھے خودکا ہی محافظ بننا تھا اور دور سے ماں  بھی نظر نہی آرہی تھی  - 

Saturday, 5 December 2020

Outliers: The Story of Success: Gladwell, Malcolm

 Really a good book. 

The opportunity is not the only scale where your success depends, timing and situation play a big role. Those who only show you the right faces of the scene are biased about history. 

Britishers teach their kids that they are the ones who civilized the world during their colonization, they were not like now. Hence, their ancestor was born with great vision and aim.

They are not taught that they are the ones whose oppression was so cruel that it shamed humanity on large scale. 

Chris Langan has more IQ than Albert Einstein but you know it is the same as the basketball player, up to some extent the height is good but after some extend it became a liability instead of an opportunity.

Farmers in Asian countries are more hard worker than a farmer working in the USA. Some Farmer from Japan, China, and some other Asian countries were spending 3000 hours a year in the field for rice crop in early 1900. The students from these countries are the same as their ancestor who spends maximum time in the crop field,  they spent more time in the library than others.

Saturday, 29 June 2019

मुखौटा

पूरे हफ्ते काम करने के बाद जुमा के दिन खाली वक़्त में असर के नमाज के बाद युही कहीं जाने का मन हुवा तो मैं मारया ऑन्टी से मिलने को सोचने लगा।  उन्होंने कई बार बुलाया था, मगर मैं हर बार उनको आऊंगा आऊंगा कहकर टाल देता था।

फिर मैं सोचने लगा इतना कम वक़्त देकर जाना सही होगा क्या? फिर दिमाग में बात आयी के ये सब सोचते सोचते कई जगह नहीं जा पाता हूँ और लोग बुरा मान  जाते हैं।  इसलिए मुझे अभी इसी वक़्त मारया ऑन्टी से मिलने जाना चाहिए।

ये मारया ऑन्टी श्रीलंका से हैं और हमारे पिछले दफ्तर की सहकर्मी थीं। इनके पति भी वहीँ कार्यरत थे। ये लोग अभी किसी दूसरे दफ्तर में काम करते हैं।

मैंने उनको मैसेज किया के "मैं आरहा हूँ ", उधर से जवाब आया "जल्दी आईये हम आपका इंतज़ार कर रहे हैं ".

ज्यादा वक़्त नहीं लगा गूगल मैप ऑन करके व्हाट्सप्प के लोकेशन के सहारे यही २५-३० मिनट में, मैं उनके घर पहुँच गया। उनके घरका जब दरवाज़ा खुला तो वहां कुछ और ही नज़ारा था। चीज़ें इधर उधर बिखरी हुई थीं। खाना टेबल पे अभी लगा हुवा था जैसे खाने वाले का इंतज़ार कर रहा हो। अंकल ऑन्टी की भवें तानी हुई थी। थोड़ी देर झूठी मुस्कान के साथ बात करने के बाद अंकल वहां से उठ गए और ऑन्टी अकेली हो गयीं या कहले की अंकल उनके नज़रों से ओझल हो गए। मौक़ा देखकर मैंने ऑन्टी से पूछा के ये सब क्या है ? फिर ऑन्टी ने धीरे धीरे अंकल की प्रेम कहानी सुनानी शुरी की और अगले आधे घंटे तक बिन रुके बोलतीं रहीं। सारी कहानी सुनने के बाद मैंने कहा के लेकिन अंकल के साथ तो मैंने क़रीब दो साल काम किया है और इनके संस्कार के तो लोग कस्मे कहते थे, ये सब जो आप कह रहीं हैं इस्पे मुझे यक़ीन नहीं हो रहा है। ऑन्टी ने कहा तुम सही हो कोई भी यक़ीन नहीं करेगा मगर शायद तुम दिमाग पे  जोर डालो तो तुम्हे कई वाक़ेयात याद आएंगे जिसमे कई बार लोग झूठी बनावटी शरीफाना ज़िन्दगी बिताते हैं। फिर उन्होंने एक कहानी सुनाई।

एक दफा एक गाओं में दो मिया बीवी रहते थे दोनों में बहुत मोहब्बत थी। दोनों एक दूसरे के पूरक से मालूम परते थे। एक दिन की बात है जब मिया घर आया तो देखा की उसकी बीवी जारो क़तार रो रही है। उसने कारण मालूम करना चाहा तो पता चला के वो इसलिए रो रही थी क्यूंकि उसके आँगन में एक अमरुद का पेड़ था।  और उनका कहना था की मुझे खौफ हो रहा है के इस्पे बैठने वाले परिंदे कई बार मुझे नंगे सर बे पर्दा देखते हैं कहीं इसके लिए अल्लाह मुझे जहन्नम में न डाल दे। मर्द बहुत खुश हुवा उसने आओ देखा न ताओ कुल्हाड़ी उठाई और पेड़ को काट दिया। फिर दिन गुज़रते गए चीज़ें चलती रहीं। एक दिन ऐसा हुवा के वो काम से जल्दी घर आगया और तब उस जमाने में फ़ोन तो होते नहीं थे के पल पल की खबर से आगाह किया जाये। इसलिए बिना खबर के वो घर आगया। अभी दरवाज़े के क़रीब जाने ही वाला था के घर के अनादर से किसी के  फुसफुसाने कीआवाज़ आयी। कान लगा कर कुछ देर तक वहां  रुका रहा तो उसे अंदाज़ा हुवा के ये वही इंसान उसके बीवी साथ था जिससे  किसी भी रिश्ते से उसकी बीवी इंकार करती आयी थी।
वो बहुत मायूस हुवा और पिछले क़दम ही वापस हो गया और दो दिन चलने के बाद एक न मालूम जगह पहुंचा तो वहां बहुत भीड़ लगी हुई थी पूछने पे पता चला के ये दारुल हुकूमत है और भीड़ इसलिए इकठ्ठा है क्यूंकि बादशाह के ख़ज़ाने से माल चोरी हुवा है। तभी वहां से एक इंसान का गुज़र हुवा जो अपने हाथ के दोनों अँगुलियों के बल चल रहा था।  दरयाफ्त करने पे मालूम हुवा के ये एक बहुत ही परहेज़गार इंसान है और अपने पैरों के बल इसलिए नहीं चलते क्यूंकि पैरों का रकबा बड़ा होता है और उसे डर है के कहीं कोई चींटी या कोई दूसरी मख्लूक़ उससे दबके न मर जाये या  कोई नुक्सान हो जाये।

ऐसा सुनकर उसके मुँह से बेसाख्ता निकला, मुझे अभी लेचलो बादशाह के पास मुझे ख़ज़ाने चोर का पता चल गया है। बहुत कह सुन होने के बाद उसे बादशाह के सामने पेश किया गया। उसके जवाब से बादशाह कुछ लम्हा खामोश सर झुकाये सोचता रहा फिर कहा के तुझे पता है के तुमने  किसकी गिरेबान में हाथ डाला है? फिर बादशाह ने हुक्म दिया के उस शख्श को गिरफ्तार करके पूछ ताछ की जाये। पूछ ताछ में उसने अपना जुर्म क़बूल लिया। बादशाह को बहुत हैरत हुई और पूछा के तुमने कैसे पहचाना के यही चोर है इसके हुलिए या रिकॉर्ड से तो ऐसी कोई बात मालूम नहीं परती। उसने कहाँ ये मेरा जाती तज़र्बा है , जब कोई इंसान ज्यादा दिखावा करने लगे तो समझो वो कोई बड़ी गलती को छुपा रहा है। तुम्हारे  अंकल भी ऐसे ही थे समझो। फिर ऑन्टी चाय बनाने चलीं गयीं और दूसरी तरफ से मुस्कुराते अंकल बाजु में आकर
बैठ गए। मैंने अंकल से कहा  ये सब क्या सुना मैंने। ........उन्होंने मुस्कुराते हुवे जवाब दिया अगला एपिसोड कअगले जुमा को कटारा विलेज में ५ बजे शाम में मिलिए, मेरा पक्ष्च आप वहीँ सुनेंगे।

कहने का मतलब ये हैं वाक़ई लोग कई बार ऊपर से संस्कारो से भरे होते हैं मगर अंदर से मुकम्मल। .......






Friday, 19 April 2019

मनुष्य के अमीर होने की क्या परिभाषा है ?

अशरफ भाई बहुत ग़मगीन लग रहे थे मैंने उनके पास जाकर उनसे उनका हाल जानने की कोशिश की तो पता चला की अशरफ भाई अपने मुस्तक़बिल के लिए परेशान है। उनका कहना है की इंसान की जरुरत एक समुन्दर है जो की  अथाह  गहराई लिए हुई  है जिसकी कोई सीमा नहीं है बस एक पूरी हो जाये दूसरी चली आती है। अशरफ भाई ने अपने बचपन के वक़्त बहुत कश्मकश में गुज़ारे थे और आज से कोई बीस साल पहले रोज़ी रोटी की तलाश में गल्फ चले आये थे । शुरुआत में उनका टारगेट कुछ पूंजी जमा करके वापस अपने वतन जाकर वहीँ कुछ करने का था मगर साल दर साल उनकी जरूरतें बढ़ती रहीं और कभी इतना पैसा जमा ही न हो सका की वो अपने वतन वापस जाने का सोच सकें।  उनका कहना है की लड़कपन के वक़्त से लेकर अब तक बस घर से बाहर ही हूँ। और गरीब का गरीब ही हूँ।
मैं चौंक गया कोई इंसान बीस साल गल्फ में रहने के बाद भी गरीब हो ! मैंने पूछा आप गरीब कैसे हो आपकी आमदनी तो माशा अल्लाह अच्छी खासी है। ठंढी आह भरते हुवे अशरफ भाई कहते है की  "हर वो आदमी तब तक गरीब है जब तक के उसके ऊपर से ये प्रेशर न ख़त्म हो जाये की अगर वो काम न करेगा तो उसका घरका खर्च चलना मुश्किल हो जायेगा " फिर अशरफ भाई के बात से मैं भी सहमत हो गया।
मगर क्या वाक़ई ये बात इतनी सच्ची है जिनती तार्किक लगती है ? अगर इंसान कमाने में व्यस्त नहीं होगा तो क्या करेगा ? इबादत में व्यस्त होगा ? या शैतान के शैतानियत का शिकार हो जायेगा और बैठे बैठे फितना फैलाएगा।

लेकिन वाक़ई ये सोचने वाली बात है की मनुष्य के अमीर होने की क्या परिभाषा है ?

Monday, 1 April 2019

लुसाता हुवा दुपट्टे का पल्लू

कहते हैं की जमीन में लुसाता हुवा दुपट्टे का पल्लू का चलन ओमान से शुरू था। सामरी  जादूगर जो की आज भी जादूगरों का उस्ताद माना जाता है और बड़े बड़े जादूगरों की जादूगरी तबतक पूरी नहीं मानी  जाती जबतक के जादूगर सामरी को उसके क़ब्र पर जाकर सलाम न करदे।

होता ये था की सामरी औरतों के पैरो के निशान की मिटटी को लेकर ऐसा जादू करता था की वो नारी उसके या जिसके नाम से मिटटी पढ़ा गया हो उसके वस  में हो जाती थी। और ये मामला ऐसा तूल पकड़ा के बदअमनी सी फ़ैल गयी। तभी एक बुज़ुर्ग को ख्याल आया के क्यों न  ऐसा कोई इंतेज़ाम किया जाये जिससे औरतों के चलने के बाद उनके  पैरों के निशान ही न रहें और तभी चलन में आया लुसाता हुवा दुपट्टे का पल्लू। ........ 

सोलह आने का सोलकन!

सोलह आने का सोलकन!
बात उन दिनों की है जब यातायात के इतने साधन नहीं होते थे। हम सब एक छोटे से गांव में रहते थे और बाजार हमारे घरसे लगभग ७ किलोमीटर दूर था। छोटे मोठे घरेलु  सामान के लिए भी वहीँ जाना होता था।  चूँकि मैं सबसे बड़ा मेंबर था अपने घरका इसलिए मेरी माँ मुझे सब जरुरी  बातें  बता कर किसी के साथ बाजार भेज देतीं थीं और इनाम में १६ आने  देतीं थी । उसपे मेरा अधिकार होता था मैं चाहे जो करूँ। और तब मैं अपने गांव के सरकारी विद्यालय के दूसरी  कक्षा में पढता था। ज्यादा कुछ याद नहीं मगर बस ये याद रह गया की जब  जब बाजार जाना होता था मैं आधे दिनके लिए सोलह आने का सोलकन बन जाता था। फिर कुछ दिन बाद मेरी माँ ने मेरी इनाम की राशि बढ़ा कर ३२ आने देनी लगी और इस तरह से मैं आधे दिनमे दो बार सोलह आने का सोलकन बनने लगा।

आज ढूंढता हूँ उस  सोलह आने को नहीं मिल रहा, कहीं खो सा गया है।

Friday, 29 June 2018

धोखा! धोखा! धोखा! : Amazon का धोखा

मैंने ऐमज़ॉन से दो जूता आर्डर किया। एक का दाम ५९९(Emosis Men's Stylish 0154 Tan Brown Black Color Office Formal Casual Sneaker Lace-up Derby Boot शू-आर्डर नंबर ORDER # 406-0018290-6991546) था और दूसरे का १७५८ (Red Tape Men's Cocoa Formal Shoes - 7 UK/India (41 EU)(RTE0042A-7-आर्डर नंबर # 406-9868159-8969934)। दोनों ही जूते ७ नंबर साइज के थे। जब मेरा १७५८ वाला जूता आया तो मैंने पाया की ये तो साइज में बड़ा है। मैंने १७५८ वाले जुटे पे एक्सेचेंगे करने का और ५९९ वाले जुटे को वापिस करने का आदेश ऑनलाइन डाल दिया। मगर जब ५९९ वाले जूते आये तो उसका साइज सही था। इसलिए मैंने उसको वापिस करने का ख्याल छोरदिया।

अगली सुबह अमेज़न का एक लड़का आया और उसने ५९९ वाले जूते मांगे। मैंने उससे कहा की ये जूता मैं वापिस नहीं करूँगा इसका साइज ठीक है। और १७५८ वाले जुटे को वापिस करने की बात कही तो वो बोला की वो दे दीजिये। मैंने कहा वो एक्सचेंज में है तो उसने कहा कोई बात नहीं है। मैं इसको ले जाकर सिस्टम में एंट्री करदूंगा और हो जायेगा। मैंने भी कस्टमर केयर को बात किया तो उन्होंने भी कहा की ये नार्मल है , दे दीजिये। मैंने देदिया।

दूसरे दिन मेरा १७५८ वाला जूता आया तब उस लड़के ने मुझसे उस जूते का बड़ा साइज वापिस करने को कहा।  और तब मैंने उसे साडी बात बताई। मगर वो लड़का बिना डिलीवरी किये चला गया और बोला की वो जूता दोगे तभी ये वाला जूता दूंगा।

मेरे तो होश उर गए मैंने कस्टमर केयर को फ़ोन किया उन्होंने कहा की ५९९ वाले जूता का तस्वीर भेजो और एक ईमेल आईडी भी दी।  मगर वो आईडी फेक थी।  तब मैंने फिर फ़ोन किया तब किसी दसरे कस्टमर  केयर ने कहा की वो पहले वाला बंदा अपना पीछा छुड़ाने के लिए ऐसा मज़ाक़ में बोला था।  ऐसा कोई बात नहीं होता की आप फोटो और हम आपका क्लेम प्रोसेस करदेंगे।

मैंने उन सज्जन से कहा की ऐ सज्जन मेरी परेशानी दूर करो और मेरा पैसा वापिस दिलवा दो।  तो उन्होंने कहा की आपको डिलीवरी बॉय ने चीट किया है।  उसने ऐसा कोई प्रोडक्ट जमा ही नहीं करवाया है। मैंने डिलीवरी बॉय को कॉल लगाया तो उसने बताया की कस्टमर केयर अधिकारी झूठ बोल रहा है।

अब इन सबमे कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच और किसने मुझसे किस दर्ज़े का मजाक किया ये मुझे नहीं मालूम मगर श्रीमान आपसे आग्रह है की आप मेरी मदद करें। 

कस्टमर केयर वाले को कॉल कर कर के मैं थक गया हूँ। आपसे आग्रह है की इसको अच्छा से जाँच पड़ताल करके मेरे पैसे वापिस दिलाएं।

धन्यवाद !!
सरफ़राज़ 

Thursday, 28 June 2018

फ्रेशर को नौकरी।

मैं अभी घरसे निकला ही था ट्रैफिक जाम सा लग गया। गाड़िया ऐसे रेंग रहीं थीं मानो जमीं ने उन्हें जकड रख्खा है। गुरुत्वाकर्षण १० गुना बढ़ गया हो।  लम्बे जाम के बाद आगे निकला तो पता चला की वहां एक एक्सीडेंट हो गया था। लोगों की भीड़ जमा थी। मृत व्यक्ति का शरीर वहा पड़ा था कोई छू तक नहीं रहा था और सब पुलिस के आने का इंतज़ार कर रहे थे।  मैंने उसकी पुतली हिलती देखि तो अपना बैग फेंक कर उसकी तरफ लपका।  उसके मूह पे पानी की कुछ बुँदे डालीं, बदन में थोड़ी हरकत हुई और फिर गर्दन लुढ़क गयी।  मैं पीछे हटा और अपना हैंड बैग उठाये गाड़ी की तरफ चल दिया।  फिर मुझे डर लगने लगा की कहीं पुलिस का चक्कर न हो जाये।  खौफज़दा आँखों से में तेज़ तेज़ चलने लगा।  गाड़ी में बैठ कर कैब वाले को तेज़ चलाने को कहा।  जब थोड़ा आगे निकला तो मेरा ध्यान मेरे हैंड बैग की तरफ गया जो शायद मेरा नहीं था और वो शायद एक्सीडेंट वाले व्यक्ति का था।  मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी की वापस जा कर बैग बदल आऊं। थोड़ा हिचकिचाते हुवे जब बैग खोला तो उसमे उस व्यक्ति का पासपोर्ट टिकट और दूसरे कागजात मिले। मैंने देखा टिकट आज का ही था।  और शायद वो व्यक्ति हवाई अड्डा ही जा रहा था।  उस व्यक्ति का नाम संतोष कुमार चौरसिया था तथा उसकी उम्र मुझसे मिलती जुलती थी। पासपोर्ट में लगे फोटो से कोई ये नहीं कह सकता था की मेरे और उनके फेस में कोई ज्यादा अंतर था।  मेरे मन में एक बात सूझी और मैं उसके बैग को और अच्छा से खंगालने लगा।  उसमे उसका ऑफर लेटर और दूसरे कागजात से ये साबित हुवा की वो शायद क़तर जा रहा था वहां उसको एक नौकरी ज्वाइन करनी थी।  मैंने सोचा ये एक संयोग नहीं हो सकता की ये सब मेरे साथ धोखे से आगया है। शायद प्रभु की यही मर्जी है।  और तब मैंने कैब ड्राइवर से कहा की गाड़ी एयरपोर्ट की तरफ मोड़ लो।

क़तर के दोहा एयरपोर्ट पे संतोष कुमार चौरसिया का नेम प्लेट लिए एक आदमी स्वागत में खड़ा था।  मैं उसके साथ चल लिया।  होटल पहुंच के आराम किया और दूसरे सुबह कंपनी ड्राइवर के साथ ऑफिस जा पहुंचा।

कुछ खास दिक्कत का सामना किये बगैर मैं पिछले छह सालों से उसी कंपनी में काम कर रहा हूँ। मेरा असल नाम सज्जाद अहमद है  लेकिन दोहा में मेरी पहचान संतोष कुमार चौरसिया से ही है।

यह कहानी कहने का मतलब सिर्फ ये था की।  यहाँ नौकरी स्टार्ट करने से पहले मैं बहुत हतोत्साहित था।  क्यूंकि मुझे ११ कंपनी वालों ने सिर्फ  ये कहके रिजेक्ट करदिया था की मैं फ्रेशर हूँ और वो मुझे इस हालत में नहीं पाते हैं की अपने यहाँ नौकरी दे सकें। हर फ्रेशेर, फ्रेशर होने तक फ्रेशर को नौकरी न मिलने का कम्प्लेन करता है।  जैसे ही वो नौकरी पा लेता है।  उसकी भी चाहत बदल जाती है।  और वो भी इंडस्ट्री में एक्सपेरिएंस्ड लोगों को रखने की बात करने लगता है।

जादूगरनी का अंत !

उन दिनों मैं हिमाचल में था। वहां की पहाड़ियों का सीना चीरकर एक सुरंग बनाने का ठेका लेने वाली एक विदेशी कंपनी में काम करता था   कुछ दिनों तक काम करने के बाद वहां के लोकल से मेरी जान पहचान हो गयी थी।  मैं अपने हफ्ते के आखिरी दिन  उन्ही के साथ बिताता था। एक दिन यही बातो बातो में एक ख़ुफ़िया मिशन पे, पहाड़ी के उस पार जाने की सोचने लगा। पहाड़ी की ऊंचाई लग भाग १५००० फुट थी इसलिए किसी लोकल गाइड के बगैर जाना मुमकिन न था। कहा जाता था की पहाड़ी के उस पार एक तालाब है। जहाँ चिरयां हर वक़्त चहचहाती, नाचती तथा तालाब में डुबकियां लगती रहतीं हैं। रास्ते में कई ऐसे फूल हैं जो बहुत ही नशीले हैं।  जिको दूर से सूंघ लेने से भी आप बेहोश हो सकते हैं। अजीब व गरीब जिव तथा लुढ़कते हुवे चट्टानों से भी सामना होने की आशंका थी। कहा जाता था की ये सब किसी भूतिया साये की वजह से उसी खास पहाड़ी पे होता था। मैंने अपने दोस्त से बात किया की कोई लोकल गाइड दिलवा दे, मगर दोस्त ने कहा की वहां के लिए शायद कोई तैयार न हो मगर मैं कोशिश करता हूँ।

दूसरी सुबह जब मेरा दोस्त मेरे पास आया तो उसके साथ एक अधेड़ उम्र का इंसान भी उसके साथ था। बात चित के बाद उसने बताया की वो अपने लड़का को उसके साथ जाने को कह सकता है मगर पहाड़ी के पहले पराओ तक ही।  उससे आगे जाने के लिए रक़म दुगुनी लगेगी और जाने के लिए कन्फर्म  तभी करेगा जब वो भविष्य बताने वाली जादूगरनी से ये बात की तहक़ीक़ करलेगा की वहां कोई खतरा नहीं है।

मैं भविष्य बताने वाली जादूगरनी का नाम सुनकर सबकुछ छोरके उस बात की तरफ केंद्रित हो गया, ये कौन है ?

उन लोगों ने बताया के ये इस इलाक़े की सबसे बड़ी जादूगरनी है। उससे मिलना कोई आसान काम नहीं है। उससे मिलने के लिए खतरे भरे रास्तों से मिलो चलना पड़ता है। और आप उससे सिर्फ अमावस्या की रात में ही मिल सकते हैं। जब चारो और घनघोर अँधेरा होता है। उनलोगों ने बताया की वो जादूगरनी कई जुबान बोल लेती, और तुम्हारे आने वाले कल और बीते हुवे कल के बारे में हर बात बता देने की ताक़त रखती है। मैं थोड़ा असहज हुवा और उनसे लड़ने लगा की ऐसा कैसे हो सकता है , तब उनमे से एक ने कहा चलो चलके देख लेते हैं। और तब हम सब चुप होगये , तब वो व्यक्ति   दिन गिनने लगा और बताया की अमावस्या को सिर्फ दो दिन बचे हैं।  हम सब तैयारियों में लग गए।  एक जीप किराये पे लिया और अमावस्या की शाम को निकल पड़े हमसब कुल चार लोग थे लोकल दोस्त एक गाइड, एक मैं और एक मेरा दूसरा दोस्त जो वहीँ मेरे साथ काम करता था।

मेरा लोकल दोस्त जो की एक्सप्लोसिव/विस्फोटक  का डीलर था तथा पहाड़ियों में सुरंग बनाने के लिए एक्सप्लोसिव/ विस्फोटक को साइट  पे लाने ले जाने काम वही करता था। कई बार इलाके के बदमाश  गाड़ियों का पीछा कर विस्फोटक लूटने की कोशिश किया करते थे।   इसलिए उसने पिस्तौल की लाइसेंस ले रख्खी थी।

मैंने उसे पहले ही कह दिया था की चलते वक़्त अपनी पिस्तौल साथ रखले। वीरान रस्ते से गुज़रते हुवे जाते हुवे वो गाइड हमें बताने लगा की ये जादूगरनी यहाँ कई सालो से है।  कई पीढ़ी इसकी यही गुज़री है। इसके नानी को एक बेटी थी इसके मान को एक बेटी थी और इसको भी एक बेटी ही है।  ये सब शादी नहीं करती मगर यहाँ आने वाले किसी पे दिल आजाये तो ये उसे अपने वस में करलेती है और तब वो रात उस इंसान के ज़िन्दगी की आखिरी रात होती है।
आधी रात को हम एक सुनसान जगह पे गाड़ी रोक के एक रौशनी के तरफ बढ़ने लगे।  नज़दीक पहुंच कर देखा की जादूगरनी ने अलाव जला रख्खा था और उसमे थोड़ी थोड़ी देर पे कुछ छिड़कती थी जिससे उसके आग में और इज़ाफ़ा हो जाता था। उसकी बेटी वहीँ नज़दीक में बैठी थी। उन दोनों मान बेटी के गले खोपड़ियों की माला थी काला सा अजीब व गरीब लिबास ज़ेरे तन था।  हम सब वहीँ खड़े हो गए, थोड़ी देर बाद जादूगरनी ने अपना मन्त्र जाप रोका और पूछा की क्यों आये हो। मैंने कहा अपना अगला पिछङा जानने आय हूँ।  उसने कहाँ , अच्छा!! कोनसे भाषा में जानना चाहोगे। आप जिसमे बतादो।
तुमको घरसे आये ६ महीने हो गे हैं तू अपनी पत्नी से लड़ कर आया है।  उससे तेरी बात चित बंद है।
क्या ये सच नहीं है की तेरी माँ और बीवी में नहीं बनती ? ये देख सामने पानी में में बनी तस्वीर क्या कहती है, तेरी बीवी ने कल तेरी बीमार बूढी माँ की झाड़ुओं से पीटा है। और क्या जानना चाहता है ??

मैं हक्का बक्का रह गया। मगर ये सब शायद हमजाद के जेरे असर था।  नहीं तो इस दुनिया में  गैब की खबर किसको है? बेसाख्ता मेरा हाथ मेरे दोस्त के कमर पे बंधे पिस्तौल पे गया और पिस्तौल से मेरे ताबर तोर दो फायर फायर किये और जादूगरनी और उसकी बेटी वही तड़पने लगी।  और फिर मैंने छे की छे गोलियां वहीँ ख़तम करदी। सब लोग शांत थे और सबके चेहरे की हवाईयां उडी हुई थी।  मुझे भी समझ नहीं आय की पिछले पांच मिनट में मुझे क्या होगया था। शायद इस अंधविस्वास का अंत मेरे हाथों लिखा था। नहीं तो यकीन मानिये मैं इतना हिम्मतवर इंसान नहीं हूँ। 

Wednesday, 4 April 2018

बेबस

शुक्रवार की शाम मैं अपने एक दोस्त के साथ दोहा  इस्थित एक लेबर कैंप गया था। मैं वहां अक्सर जाया करता हूँ। वहां लोगों से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। वहां रहने वाले लोगों के आँखों में बहुत बड़ा सपना नहीं होता।  वो केवल ज़िन्दगी की जिद्दो जिहद के लिए काम करते हैं। उनका दिल साफ़ होता है और हर बात पे खुलकर बात करना पसंद करते हैं। उन्ही में से दो लोग हैं रहमत और पंकज।
   रहमत  और पंकज एक साथ एक ही रूम में रहते हैं तथा पिछले १५ सालो से अलग अलग कंपनी में एक ही साथ काम कर रहे हैं। । । ये दोनों क्रेन ऑपरेटर हैं। ये दोनों के गुरु भी एक ही हैं और ये दोनों पछिम बंगाल के एक छोटे से गांव के निवासी हैं। इनकी उम्र ६० के क़रीब होने को आयी हैं। पिछली बार उनसे इत्तेफ़ाक़न मुलाक़ात हो गयी थी एक चाय की दूकान पे और तब इनकी बातें मुझे इतनी अच्छी लगी थी की मैं इनके रूम तक गया था। बहुत सारी बातें हुई थीं।  बहुत मजा आया था।  मगर इसबार जब उनसे  मिलने गया तो वहां कुछ अजीब मामला था।  एक मातम सा था दोनों रूम पार्टनर ने पिछले शाम से ही  खाना पीना छोरा हुवा था और लगातार रोये जा रहे थे। उनसे कई बार पूछने पर जब कोई जवाब न मिला।  वो बस अफ़सोस किये जा रहे थे और रो रहे थे। तभी बाजु वाले रूम से एक सज्जन वहां आजाते यही और बताते हैं की "ऐ बाबू , सब नसीब का खेल है। जो तुम्हारे नसीब में था वो हुवा अब क्यों अपनी सेहत बर्बाद कर रहे हो ?"
मैंने उन सज्जन को बहार चलने का इशारा किया और बहार आकर उनसे दरयाफ्त करने की कोशिश करने लगा की आखिर हुवा क्या है ? जो व्यक्ति पिछने हफ्ते तक दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति लग रहा था अचकनक उसे ऐसी कोनसे दुःख ने आ पकड़ा है की अब वो दुनिया का सबसे दुखी व्यक्ति दिखने लगा है।

अपनी टोपी ठीक करते हुवे डाब दबी आँखों से उन्होंने कहना शुरू किया।  ये बचपन से ही दोस्त है।  एक साथ पले बढे और जवान होकर नौकरी भी एक ही साथ कर रहे हैं।  ऐसा संयोग शायद  ही किसी को मिलता है। दोनों ने काम छोड़कर घर जाने का मन बना लिया था। पिछले बार जब दोनों छुट्टी गए थे तब अपने गांव के नज़दीक एक मारकेट में अपने लिए एक एक दूकान देखि थी अपनी जमा पूंजी से उसका बयाना करदिया था। दोनों ने अपने धन अर्जित करने की पर्तिस्पर्धा तथा घरेलु ज़िम्मेदारी की वजह से शादी भी लेट की थी।  इनकी उम्र ६० हो होने की आयी है और दोनों के बच्चे अभी २० वर्ष से भी कम आयु के हैं। इनके ज़िन्दगी की कमाई सिर्फ यही है की इन्होने अपने परिवार को शहर में किराये के एक मकान में रखकर बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहें हैं। खान पान का स्तर बढ़ा है। तथा अपनी थोड़ी  जमा पूंजी से एक दुकान खरीदा है, जिसकी कीमत लग भाग २० लाख है।  वो दूकान भी पहले के खरीदे हुवे जमीन को बेच कर लिया था।  मगर वो दूकान अब नहीं रहा दो पहले  रात राम नवमी के जुलुस के बाद हुवे दंगे में वो दंगाईयों के भेट चढ़ गया। इन सब वजहों से इनके पत्नियों की तबियत बिगड़ गयीं है और वो अस्पताल में भर्ती हैं। ये लोग घर जान चाहते हैं मगर कंपनी कह रही है की अपना पूरा हिसाब लेकर जाना है तो जाओ क्यूंकि अभी छुट्टी नहीं मिलेगी।



Tuesday, 27 March 2018

ज़िन्दगी

असलम चाचा अब हमारे दफ्तर में काम नहीं करते। कल उनका दफ्तर में आखिरी दिन था। आदतन मैंने पुछ लिया, कहाँ बिताओगे बाक़ी के दिन क्यूंकि अब तो शायद आप नौकरी नहीं करोगे। उन्होंने कहा वलायत जाऊंगा वहीँ रहूँगा अपने नवासी के साथ।  मैंने पूछा अपने पत्नी के साथ क्यों नहीं रहते ? पिछले पांच सालो से आप जब भी छुट्टी जाते हो तो अपने पत्नी के पास नहीं जाते।  असलम चाचा थोड़ा असहज हुवे और कहा की खुदा के वास्ते ये सब न पूछें !
थोड़ी देर तक कमरे में ख़ामोशी छाई रही। फिर असलम चाचा ने कहा शायद ये आपको जानना जरुरी है।  और कहने लगे और कहते ही रहे।
बात यही कोई  बीस साल पुरानी होगी मैं उस वक्त मिडिल ईस्ट और अफ्रीकन मुल्क  में काम करता था।  हर दो साल पे घर जाता था।  मेरे दो बच्चे थे एक बेटी और एक बेटा। एक बार मुझे अपने तै वक्त के अनुसार घर जाना था।  मैंने दो माह पहले ही घरपे खत लिख दिया था। हालांकि फ़ोन भी उस वक़्त बहोत आम हो गया था मगर में ज्यादा तर खत ही लिखा करता था।  घरसे पुरजोर खुशामदीद की जवाबी चिठ्ठी भी आगयी थी।  मगर अगली सुबह दफ्तर जाते हुवे मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।  और नामालूम जगह पर क़ैद करदिया गया। मेरी कार व दीगर चीज़ों का कुछ पता न चला और न ही मुझे बताया गया की मेरा जुर्म क्या है। शायद वो मुझे किस दूसरे दुश्मन मुल्क़ का जासूस समझ रहे थे।

जेल में एक दो माह तक तो मैं ये सोचता रहा की ये लोग मुझे छोडदेंगे या कोई मेरे घरसे मुझे खोजते हुवे यहाँ आजायेगा।  मगर ऐसा सोचते हुवे जब एक साल गुज़र गए तो मुझे अपने बीवी बच्चों की  फ़िक्र होने लगी की उनका क्या हो रहा होगा, कोई राब्ता क्यों नहीं कर रहा कहीं उनपे मुझसे बड़ी मुसीबत तो नहीं आगयी। इन हालतों में, मैं एकदम मर ही गया था। साल दर साल आज़ाद होने की सारी  उम्मीद खतम हो गयी और मैं सिर्फ अपने मौत का इंतज़ार करने लगा था।  वो दुःख शायद ज़िंदा चिता पे लिटा दिए जाने से भी ज्यादा बड़ा होता है। ज़िंदा भी अगर चिता पे लिटा दिए गए तो थोड़ी देर बाद जलकर आपकी जान निकल जाएगी। मगर वहां तो जिस्म में सिर्फ जान ही बाक़ी थी और सबकुछ मर चूका था।

चौदह  साल क़ैद में रखने के बाद बिना कुछ कहे छोर दिया गया। इन चौदह सालों में मैं कितना पीछे चला गया था और दुनिया कितना आगे आगयी थी इसका पता मुझे बाहर निकलते ही हो गया था।

जब बाहर आय तो वो पासपोर्ट जो उन्होंने लौटाया था उसकी मियाद ख़तम हो चुकी थी।  बहुत मुश्किल से मैं अपने मुल्क के सिफारत खाने तक पहुँच पाया। वहां पहुँच कर मैंने एक अधिकारी को सारा क़िस्सा सुनाया, वो मेरा पासपोर्ट लेकर मुझे वहीँ बैठने का इशारा करके ऊपर चले गए   और चंद लम्हे बाद जब वापिस आये
 तो साथ चलने का इशारा किया।  थोड़े देर बाद मैं अपने मुल्क के अम्बेस्डर के पास बैठा था और रो रो कर उसे अपने बारे में बता रहा था, गुहार लगा रहा था की मुझे जल्द से जल्द अपने बीवी बच्चों के पास भेज दिया जाये।  मगर मेरे अहवाल सुनकर अम्बेस्डर के चेहरे की हवाईयां उडी हुई थीं  जो मुझे थोड़ा असज कर रहीं थीं।  दरयाफ्त करने पर उन्होंने बतया की , जब पुलिस मुझे जेल ले गयी  थी उसी दिन मेरे  कंपनी के साइट  पे  बहुत बड़ी दुर्घटना घटी थी जिसमे कई लोग हलाक हो गए थे और कईयों की लाश समुद्र में बह गयी थी और उसका कुछ पता न चला । चूँकि मेरा भी कोई सुराग नहीं मिला तो मेरा घरवालों को भी बता दिया गया की मेरी  भी मौत हो गयी हैं। और इसलिए ऑफिशियली मैं  एक डेथ व्यक्ति था।

कंपनी द्वारा दी गयी हर्जाने की रक़म मेरे  पत्नी को भेज दी गयी थी। और इसके आगे अम्बेस्डर ने कुछ नहीं बताया। उन्होंने मेरा पासपोर्ट नवीकरण करदिया और सामाजिक कल्याण फण्ड से कुछ पैसे और टिकट का बंदोबस्त करदिया। और दूसरी कागजी करवायी करते हुवे मुझे ज़िंदा क़रार देदिया।

एयरपोर्ट पे कोई दिक्कत नहीं हुवी क्यूंकि जेल से छूटते वक़्त उन्होंने एक सर्टिफिकेट दिया था जिसमे इमिग्रेशन अधिकारों को कुछ निर्देश थे उन्होंने वो सर्टिफिकेट देखते ही मुझे जाने दिया। 

मैं हवाईजहाज़ में बहुत सारी बातें सोचता रहा।  अपने बीवी के बारे में अपने बच्चों के बारे और अपने दोस्त व अहबाब के बारे में।  मेरे दिलमे जो गिला था की कोई मुझे तलाशते हुवे जेल तक नहीं पहुंचा था सब ये जानकर दूर हो गए थे  और  मुझे मरा हुवा समझ रहे था। मैं बार बार अपने बीवी के बारे में सोचकर भावुक हो जाता और रोने लगता कभी बेटी के बारे में सोचता और रोने लगता।  मगर मुझे क्या पता था की मेर इन लम्हात में मेरे मुल्क़ में भी मेरे लिए जमीन  तंग हो गयी थी। जैसे तैसे भागते भगाते जब मैं अपने गाँव पहुंचा तो वहां का कुछ अलग नज़ारा था। मेरी बेटी जो मरे जेल जाते वक़्त १४ साल की थी।  बीस साल की उम्र में उसके खला ज़ाद भाई से शादी करदी गयी, मेरा बेटा जो उस वक़्त १० साल का था। दो साल बाद यानि बारह साल की उम्र में अचानक ही लापता हो गया और उसका कोई सुराग न मिला। मेरी पत्नी जो जेल जाते वक़्त ३२ साल की थी बेटी के शादी के बाद लोगों ने उसे वर्गाला के उसको दूसरी शादी करने पे मजबूर करदिया था। और जमीन जायदाद पर मेरे चाचा का क़ब्ज़ा था।

 मेरे दिलमे इच्छा थी के में अपने बीवी से मिलूं , पता करते हुवे उसके शौहर के पास गया मगर इससे पहले की कुछ ज्यादा बात होती घरके अंदर से रोने की आवाज़ आने लगी सब लोग दहाड़ मार मार के रो रहे थे।  तब पता चला  की ये मेरे बीवी के मौत का मातम था।  किसी ने उसे दो दिन पहले ही मेरे बारे में सबकुछ बता दिया था। ये शायद उसकी बहन और मेरे बेटी सास थी जिसने सारा कहानी उसे चुपके से कह  सुनाया था।  किसी ने बताया की उसने दो दिनों से  खाना पीना छोरदिया था उसकी तबियत ठीक नहीं थी और तीसरे दिन उसने खुदकशी कर्ली।
मैं वही रुक गया और जनाज़े में शिरकत की। दुनिया एक अँधेरे कुवें  जैसी लगने लगी थी।  कोई रास्ता  और न उम्मीद बची थी  जिसको ज़िंदा रहने की वजह क़रार दूँ।  सिवाए इसके की मेरी बेटी की फ़िक्र हो रही थी।  मैं उससे मिलना चाहता था। उससे बात करना चाहता था।  दरयाफ्त करने पर पता चला था की उसका शौहर शादी के बाद उसे लंदन ले गया था  और तबसे वो वहीँ रहती है।
ज़िन्दगी में एक और मोर आया और एक सुबह मुझे पुलिस ने गिरफ्तार करलिया पूछने पर बताया गया की मेरे बीवी के शौहर पर किसी ने क़ातिलाना हमला करके उसे उसे हलाक करदिया था।  पुलिस को मुझपे शक था।  मैंने एक ठंढी आह भरी और सोचने लगा की ऐसे बाहर रहकर भी क्या कर रहा हूँ। और पुलिस वालों के साथ चल दिया। मुझे हिरासत में पूछ ताछ के बाद जेल भेज दिया गया। पुलिस को मेरे जवाबात से ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुवा था और वो अभी भी छान बीन जारी रख्खे हुवी थी।  इधर मैं जेल पहुंच कर इसको आखिरी मंज़िल मानकर इत्मीनान की सांस ले रहा था क्यूंकि दिल में कोई ख्वाहिश बची न थी सिवाए इसके की  बेटी को एक झलक देखना चाहता था उससे अपने बारे में सफाई देना चाहता था बताना चाहता था की असल में मेरे साथ क्या हुवा था।

तभी मुझे एक दिन जेल से रिहा करदिया गया क्यूंकि असल क़ातिल पकड़ा गया था।  जेल से बहार निकल कर लोग अमूमन खुश होते हैं मगर मैं नाखुश था। इसलिए की पता नहीं अब कोनसी नयी मुसीबत आने वाली है। मैं जेल से छूटने के बाद बेटी के ससुराल वाले के पास गया। वहां से मुझे राहत की खबर मिली मुझे बताया गया की मेरे बेटी को मेरे  बारे  में  बता दिया गया है  और वो मुझसे मिलने के लिए आरही है मगर उसे या खबर न थी के मैं अब जेल से रिहा हो चूका हूँ। बहर हाल मैंने कल सुबह तक का इंतजार किया और अगली सुबह हवाई अड्डा चला गया , साथ उसकी सास व देवर भी थे।  शामके वक्त फ्लाइट आई और कुछ देर बाद वो लोग बाहर आये। बेटी मुझे देखते ही लिपट कर रोने लग गयी हम एक दूसरे को गले लगाए बहुत देर तक रोते रहे, शांत हुवे और फिर रोने लगे ऐसा कई घंटो तक चला मुझे नहीं मालूम ऐसा क्यों हो रहा था जब मुझे अपने आप पर कोई कंट्रोल नहीं था। दिमाग बंद हो गया था दिल पे कोई काबू न था और मैं बेसब्र हो चूका था।  आँखों से आंसुओं का सैलाब जारी रहा।  उस रात मैं अपने बेटी के साथ पूरी रात जगा रहा उसकी कहानी सुनता और रहा फिर अपनी बात बताई । जब दिमाग बंद हो जाये और सिर्फ दिल काम करने लगे तो शायद नींद का ग़लबा भी नहीं आता।

मेरी बेटी जो अब बर्तानवी नागरिक थी मेरे लिए ब्रिटैन का वीसा निकलवा कर मुझे साथ ले गयी।  मैं बहुत दिनों तक वही रहा तबियत में कुछ रवानी हुई तो मैंने उससे कहा की मैं नौकरी ढूंढने के लिए क़तर जाना चाहता हूँ। आजकल क़तर में बहुत कंट्रक्शन का काम चल रहा है। मुझे आसानी से नौकरी मिल जाएगी। उसके बाद मैं क़तर आगया और यहीं नौकरी करने लगा था, कभी अपने मुल्क न गया। मेरा दामाद बहुत अच्छा इंसान है।  मेरे पास बर्तिनिया का लॉन्ग टर्म वीसा है उसने वही कुछ काम करने का सुझाव  दिया है और मैं बाक़ी की ज़िन्दगी वही बिताऊंगा जब तक के मालिक ऐ हक़ीकी का बुलावा न आजाये।

फिर उन्होंने मुझे कहा की आपके के लिए मेरे ज़िन्दगी का निचोड़ ये है की। इंसान की ज़िन्दगी एक पल में ही उसे इतना बर्बाद कर सकती है की उसके बारे वो सोच भी नहीं सकता। और इसमें कोई शिकायत नहीं होना चाहिए। दौलत, शोहरत, इज़्ज़त जिसने दी है उसका पूरा अधिकार है वो जब चाहे वापस ले ले।  

Wednesday, 7 February 2018

प्राथमिकता

ताल्लुकात ! ये एक ऐसी चीज़ है जो शायद हर किसी से रखना चाहिए। ऐसा कहना है असलम चाचा का, और आगे सुनिए वो क्या कहते हैं इस्पे।
उनका कहना है की ये जरुरी नहीं की कोई आदमी आपके बात का हमेशा जवाब दे, या आप किसी के बात का हमेशा जवाब दें अब  ख्वाह वो बात अच्छी हो या बुरी, मगर इसका मतलब कतई नहीं है की आप किसी से नाराज़ हैं या आपसे कोई नाराज़ है। और असलम चाचा कहते हैं की अगर किसी बात का जवाब न देकर नाराजगी जाहिर करना है तब भी ये कमसे कम हर बात का जवाब देकर झगरने से कहीं अच्छा है।

किसी से  बात का जवाब न मिलने पर किसी से नाता नहीं तोरना चाहिए या उस इंसान को सिर्फ इस बिना पे गलत नहीं समझना चाहिए। इंसान की पूरी ज़िन्दगी प्राथमिकता पे टिकी है और जीवन के अलग अलग पराओ पे अलग अलग प्राथमिकता होती है वैसे ही हर घंटे की प्राथमिकता भी अलग अलग होती और कई बार इंसान अपनी प्राथमिकताओं में उलझ जाता है।   

Sunday, 29 October 2017

हवाई जहाज़ के वो पांच मिनट !

जैसे ही हवाई जहाज आसमान को छुवा एक सज्जन जो की ३८-३९ साल के रहे होंगे, एयरहोस्टेस से पूछने लगे ड्रिंक कब मिलेगा, उस वक्त रात के १० बज रहे थे।  मानो ऐसा लग रहा था की वो सज्जन फ्लाइट में सिर्फ ड्रिंक के लिए ही आये थे। एयरहोस्टेस ने गंभीरता से जवाब दिया,  थोड़ी देर इंतज़ार कीजिये। थोड़ी देर बाद मैंने देखा की वो सज्जन पायलट कॉकपिट की तरफ तेज़ी बढे और फिर वापिस आ गये। मुझे लगा शायद ड्रिंक के लिए पूछने गए रहे होंगे, मगर नहीं उनके हाथ में आधा खाया हुवा एक सैंडविच था जिसपे लिस्टिक के निशान थे। मैं कुछ समझ नहीं पाया और आंख बंद करके सोने की कोशिश करने लगा। थोड़ी देर बाद सर्विस ट्राली वाले के जगाने पे आँख खुली तो देखा की सज्जन बार बार एक्स्ट्रा ड्रिंक के लिए ज़िद कर रहे थे। फिर दोनों एयरहोस्टेस ने एक दूसरे की तरफ देखकर एक पैग बनाया और उन्हें दे दिया। मैंने फिरसे अपनी आँखें बंद करली और सोने की कोशिश करने लगा। इतने में ही देखा की सह यात्री ने एयरहोस्टेस को बुला कर उनकी शिकायत करदी  के ये जनाब अपना कपड़ा उतार कर सोना चाहते हैं। एयरहोस्टेस ने उन्हें मना किया तो वो उनसे बहस करने लगे कहने लगे मैं अपने घरमे ड्रिंक लेने के बाद कपड़े उतार कर ही सोता हूँ, तुम ड्रिंक देते हो तो मेरे निजता का भी ख्याल रख्खो मैं शर्ट उतार  कर सोना चाहता हूँ इसमें क्या बुराई है। सामने वाले सीट पर बैठी एक अंग्रेजी महिला की तरफ इशारा करते हुवे कहने लगे की ये महिला होकर जब बनयान और हाफ पैंट में पूरा एयरपोर्ट और सिक्योरिटी से गुज़रती हुई यहाँ आगयी और किसी ने नहीं टोका तो फिर मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं आपलोग, मैं शर्ट ही तो उतारना चाहता हूँ। बहस को तेज़ होता देख एक पुरुष क्रू मेंबर पायलट को बुला लाया। पायलट उन्हें समझाने लगा मगर वो पायलट की भी नहीं सुन रहे थे। फिर पायलट ने उसे और ज्यादा ड्रिंक देने की पेशकश की तो वो मान गया। फिर शांति बहाल हो गयी। थोड़ी देर बाद जब मैं शौचालय की तरफ गया तो दो एयरहोस्टेस आपस में बात कर रहीं थी की उनका सैंडविच जो की उन्होंने एयरपोर्ट से खरीदा था वो किसी ने चुरा लिया था। मैं मुस्कुराता हुवा आगे बढ़ गया और अपने सीट पे आकर  फिरसे सोने कोशिश करने लगा , मुझे उस व्यक्ति पे बहुत गुस्सा आरहा था।  मगर ये व्यर्थ ही था। मैं अपने दिलको समझा बुझा कर सोने के लिए राज़ी कर लिया। सोने के कुछ देर बाद मुझे पता लगा की ये प्लेन क्रैश कर गया है। नफ्सि नफ्सि का आलम है , हवाईजहाज़ के दो टुकड़े हो गए हैं और मैं सीट पे बैठा बैठा ईरान के पहाड़ियों पे गिर रहा हूँ। मैं ये सोच रहा था की मैं ज़िंदा कैसे हूँ, फिर मुझे साइंस के कुछ सिद्धांत याद आने लगे

 फिर मैंने देखा की वो बंदा भी मेरे साथ ही गिर रहा है। और कह रहा है।  कैसा महसूस कर रहे हो ? मुझे इतनी नफरत होगयी थी उससे की अपने प्राण जाने का गम भूल उसका मुँह नोचने की सोचने लगा। लेकिन तबतक वो मेरे और क़रीब आ गया और कहने लगा तुम जो सोच रहे हो वो नहीं कर पाओगे, देखो तो तुम्हारे हाथ हैं क्या ? तब मेरा ध्यान मेरी हाथ की तरफ़ा गया और मैंने देखा की मेरे पास हाथ नहीं थे। और वो ऐसे गायब थे जैसे ये जनम से ही न रहे हों   मैं भो चक्का रह गया ये क्या हो रहा था मेरे साथ। ये सब की परवा किये बिना मैंने उससे पूछने की कोशिश की के तुमने उसकी सैंडविच क्यों चुराई थी। .....मगर मेरे मुँह से आवाज़ नहीं निकल रहे थे , जबरदस्ती कोशिश करने पे थोड़ी सी आवाज़ निकली तभी सह यात्री ने जगाया की क्या हुवा क्या बोल रहे हो और तब मुझे लगा की मैं सपने में था। उसके तरफ देखा तो वो भी सो रहा था। जान में जान आई पानी पिया और फिर चुप चाप बैठ गया।

मैं सोचने लगा आखिर इस सपने का क्या मतलब था की, मैंने उसका मुँह नोचने का सोचा तो मेरे हाथ ही गायब हो गए ? उससे कुछ पूछना चाहा तो आवाज़ बंद हो गयी !!

क्या मुझे ये सिख दी जा रही रही थी के किसी के निजता पे उससे नफरत न करो ?

Saturday, 28 October 2017

अंतरिक्ष यात्री की डायरी !!

तैयारियां बहुत जोड़ों पे थीं। मैं भी बहुत खुश था बार बार घडी देख रहा था।  शाम हुई फिर रात हुई और फिर सुबह। जल्दी जल्दी तैयार हो कर गाड़ी से एयरपोर्ट की तरफ जा रहा था, मैं।  ये सब कुछ इतना जल्दी हुवा था की कुछ समझ नहीं आरहा था। अगले दिन दोपहर को मैं अमेरिका के नासा स्पेस सेंटर पे था जहाँ से मुझे मेडिकल टेस्ट के बाद अंतरिक्ष में जाना था।

अमिन अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहा था की  वो दिन भी आ गया जब मैं अंतरिक्ष की उड़ान भरने को तैयार हूँ । असल में ये कहानी तब शुरू हुई थी जब नासा को एक आदमी की तलाश थी, ऐसे गृह पे भेजने की जहाँ वैज्ञानिक या कोई भी  मनुष्ये को भेजने की अनुमति नहीं है अर्थात अभी तक वहां केवल जानवरों की ही भेजा गया है। तब नासा ऐसे इंसान को ढूंढ रहा था जो अंतरिक्ष की थोड़ी बहुत समझ रखते हों और अंतरिक्ष की सैर उनका शौक हो। ताकी वो इंसान अपने शौक़ के लिए वो सब करने को तैयार हो जाये जो नासा चाहता था। उन्होंने मुझे ऑनलाइन ढूंढा था, मेरे कुछ ब्लॉग जो की मैंने नासा के लिए और स्पेस के लिए लिखे थे वो उन्हें पसंद आये थे और उनको शायद लगा था की ये बन्दा मेरे काम का है। मुझसे उनलोगों ने इ-मेल से संपर्क किया था। और उसके बाद वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग तथा कई मुलाक़ात और उसके बाद नॉन डिस्क्लोज़र डॉक्यूमेंट हस्ताक्षर कराये गए। ये करार कराया गया था की मैं ये बात अपने घरवाले को भी नहीं बताऊंगा। उन्होंने मेर विसा भी किसी और काम के लिए दिलवाया था ताके किसी को कोई शक न हो। बहुत टेक्निकल ट्रेनिंग और कई दूसरी प्रक्रिया के गुजरने के बाद मुझे इसके लिए तैयार किया गया था।

स्पेस शिप के उरते ही एक सकून सा मिला और उत्साह ख़तम होकर  अनुभव शुरू होगया था। 40300 मील प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ता यान शायद जमीन से लोगों को कुछ अजीब दीखता रहा होगा मगर यकीन मानिये अंदर में ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी कमरे में बैठा हूँ। यान उड़ता ही गया और उड़ते उड़ते न जाने कहाँ पहुँच गया यहाँ तक के स्पेस सेंटर से मेरा संपर्क टूट गया और और चेतावनी संकेत अंकित हो गए। मैं बहुत परेशान हो गया। यात्रा में बिताये समय के अनुसार शायद मैं पृथ्वी से बहुत दूर पहुँच  चुका था जहाँ के बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।  कुछ समझ नहीं आरहा था की अचानक यान में जोर जोर से आवाज़ें होने लगीं थी। इससे पहले की मैं कुछ समझ पाता, यान दो टुकड़ों में बंट चूका था, इंजन बंद होने और
गुरुत्वाकर्षण न होने के कारण मैं टूटे हुवे यान के टुकड़े के साथ हवा में झूल रहा था। थोड़ी मेहनत करके मैं बहार की तरफ आया और हवा में पाओं हाथ चलाते हुवे इधर उधर जाने लगा। मेरे स्पेस सूट की वजह से ये सब मुमकिन हो पा रहा था। तभी मुझे निचे की ओर बहुत दूर  कुछ पृथ्वी जैसी चीज़ दिखी। मैं बिन सोचे समझे उस  ओर जाने लगा, कुछ घंटो बाद मुझे ऐसा एहसास हुवा की मैं किसी अनजान शक्ति की तरफ खींचा जा रहा हूँ तब मैंने अपना हाथ पाओं चलाना छोरदिया था। देखते ही देखते मुझे अंदर से कुछ शक्ति भी महसूस होने लगी ऐसा लगने लगा जैसे  मैंने कोई एनर्जी ड्रिंक ले लिया हो।
धीरे धीरे मैं एक सतह पे उतरा जो की बहुत खूबसूरत दिख रहा था।  मगर ये क्या ? वहां चीज़ों के रंग बिलकुल अलग थे ! यहाँ पृथ्वी की तरह लाल सफेद या हरा नहीं बल्कि कुछ अलग  रंग था। वैसे रंग  मैंने कभी नहीं देखे थे। और तब  मुझे समझते देर न लगी के मैं किसी और गृह पे आगया हूँ।  जहाँ ऊर्जा का श्रोत सूर्ये नहीं है और इस गृह के सूर्ये की रौशनी कुछ अलग है।  चूँकि अपने धरती पे हम सूर्ये की रौशनी के संयोजन की वजह से ये सब रंग देख पाते हैं और अगर संयोजन अलग हो तो शायद रंग अलग दिखेगा, इसलिए धरती के रंग वहां नहीं थे उनके सूर्ये के रौशनी का संयोजन शायद अलग था।

मैं चलता ही जा रहा था और कोई थकान भी नहीं हो रही थी, ये शायद वहां के वातावरण की वजह से हो पा रहा था।  तभी मुझे वहां एक मनुष्य जैसा प्राणी दिखा, जिनके शरीर पे कोई कपड़ा नहीं था। मैं उन्हें देख डर गया था। और एक पथ्तर के पीछे छुप गया, उन्हें गौर से देखने लगा मगर कुछ खास हरकत नहीं हो रही थी। शायद उन लोगों में चेतना की कमी थी या शायद चेतना थी ही नहीं। मैं काफी देर तक उन्हें देखता रहा मगर कुछ पता न चला, शायद उन लोगों को खाने पिने की जरुरत भी महसूस नहीं होती रही होगी क्यूंकि मैं खुद भी वहां भूख प्यास महसूस नहीं कर पा रहा था। मगर सब कुछ शांत शांत था। मुझे लगा मुझे सूट उतार देना चाहिए और मैं इसके लिए बहार का प्रेशर चेक किया जो की सामन्य था पृथ्वी से थोड़ा ज्यादा। फिर मैंने अपना सूट उतार दिया। सूट उतरने के बाद शरीर में बदलाव सा महसूस होने लगा और खुले हुवे तव्चा में एक चमक सी आगयी, तब मुझे समझते देर न लगी की यहाँ के लोग नगण्य क्यों थे। उन्हें किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं था। न कहने की फ़िक्र न सोने की फ़िक्र और शायद ना ही मरने चिंता। वहां सब लोग जवान से दीखते थे। सबका जिस्म एक जैसा ही था। कोई स्त्री या पुरुष जैसा अंतर नहीं दिख रहा था। शायद उनके यहाँ प्रजनन का कोई मामला नहीं बनता होगा और एक बार ज़िन्दगी दे कर उन्हें अमर करदिया गया होगा। क्यूंकि सूर्ये से सम्पर्क में आकर मेरे तव्चा में भी बदलाव आये थे और भूख प्यास भी ख़तम हो गयी थी तथा ताक़त बे बेहिसाब सा महसूस हो रहा था।

अभी मैं पथ्थर के पीछे छुप के ये सब सोच ही रहा था की मुझे लगा की किसीne मेरे सर पे डंडा मारा हो। और तब मेरी आँख खुल गयी थी और एहसास हुवा की मैं बिस्तर पे लेटा हूँ और रात के क़रीब डेढ़ बज रहे हैं।

Thursday, 14 September 2017

हिंदी दिवस

हिंदी दिवस की आप सभों को शुभकामनाएँ।  मगर अब शायद ये दिवस केवल एक दिवस ही रह गया है। क्यूंकि हिंदी बोलने तथा लिखने वाले को कमतर समझा जाता है। आज़ादी के बाद हिंदी भाषा में क्या कुछ विकास हुवा है इसका आंकलन कीजिये। किसी भी संस्कृति का मरजाना इतना ही काफी है कि लोग अपने भाषा से ही प्रेम खो बैठते है। जहाँ एक तरफ लोग देशभक्ति की गुन गान करते हैं वहीँ दूसरी तरफ हिंदी बोलने तथा लिखने में संकोच करते हैं। आज हमारी हालत ये हो गयी है की न हम इंग्लिश में बेहतर हैं और न हीं हिंदी में।

पिछले साल मेरी मुलाक़ात एक इंडियन मूल के मलेशियन नागरिक से हुई थी।  उन्होंने बताय की ये मिश्रण के चक्कर में मेरे बच्चे की ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी शुरू शुरू में हमने उसे इंग्लिश स्कूल में भेजा बाद में उसे चाइनीज स्कूल में भेजा मगर हालत ये है की आज न वो चाइनीज ठीक से जानते हैं और न ही इंग्लिश। ये सिर्फ इसलिए हुआ क्यूंकि हमने बच्चो से उनकी रूचि जानने के बजाए अपनी रूचि उनपे थोप दी।

हम बाजार में दूसरे लोगों के  हिंदी उच्चारण का मजाक उड़ाते फिरते हैं। मगर घरमे बच्चे को इंलिश माध्यम की किताब थमाए हुवे होते हैं। किसी भी भाषा के बिगड़ने या लुप्त होने में भाषा के जानकारों का बड़ा हाथ होता है। क्यूंकि वो ही सबसे पहले अपने आपको कम तर आंकने लगते हैं और इसके विकास जरुरत नहीं समझते। हम सब शिक्षा को सिर्फ पैसा कमाने का औज़ार समझते हैं।

आज जहाँ जयादार तर विद्यार्थी को अपना विषय चुनने का अधिकार नहीं है ऐसे में आप उन विद्यार्थी से क्या उम्मीद करना चाहते हैं।  दूसरी क्लास से ही उसे बताया जाता है की तुम विज्ञान पढ़ो तुम्हे इसमें बहुत संवृद्धि मिलेगी और तुम्हे तो अभियंता बनना है, हम यहीं चूक जाते हैं और अपने बच्चे को इंसान बनने से पहले उसे अभियंता बना देते हैं। अगर हम उसे  एक इंसान बनने की नसीहत देते तभी तो वो
साहित्य में इंसान की परिभाषा ढूंढता।

मैं भी बस इसी उधेर बुन में हूँ की कोई भाषा सीख जाऊं लेकिन हो नहीं पा रहा है ऐसा।

#हिंदीदिवस 

1 May - Labor Day (International Workers' Day)

Labor Day, observed on May 1st, holds significant importance worldwide as a tribute to the contributions of workers towards society and the ...