अशरफ भाई बहुत ग़मगीन लग रहे थे मैंने उनके पास जाकर उनसे उनका हाल जानने की कोशिश की तो पता चला की अशरफ भाई अपने मुस्तक़बिल के लिए परेशान है। उनका कहना है की इंसान की जरुरत एक समुन्दर है जो की अथाह गहराई लिए हुई है जिसकी कोई सीमा नहीं है बस एक पूरी हो जाये दूसरी चली आती है। अशरफ भाई ने अपने बचपन के वक़्त बहुत कश्मकश में गुज़ारे थे और आज से कोई बीस साल पहले रोज़ी रोटी की तलाश में गल्फ चले आये थे । शुरुआत में उनका टारगेट कुछ पूंजी जमा करके वापस अपने वतन जाकर वहीँ कुछ करने का था मगर साल दर साल उनकी जरूरतें बढ़ती रहीं और कभी इतना पैसा जमा ही न हो सका की वो अपने वतन वापस जाने का सोच सकें। उनका कहना है की लड़कपन के वक़्त से लेकर अब तक बस घर से बाहर ही हूँ। और गरीब का गरीब ही हूँ।
मैं चौंक गया कोई इंसान बीस साल गल्फ में रहने के बाद भी गरीब हो ! मैंने पूछा आप गरीब कैसे हो आपकी आमदनी तो माशा अल्लाह अच्छी खासी है। ठंढी आह भरते हुवे अशरफ भाई कहते है की "हर वो आदमी तब तक गरीब है जब तक के उसके ऊपर से ये प्रेशर न ख़त्म हो जाये की अगर वो काम न करेगा तो उसका घरका खर्च चलना मुश्किल हो जायेगा " फिर अशरफ भाई के बात से मैं भी सहमत हो गया।
मगर क्या वाक़ई ये बात इतनी सच्ची है जिनती तार्किक लगती है ? अगर इंसान कमाने में व्यस्त नहीं होगा तो क्या करेगा ? इबादत में व्यस्त होगा ? या शैतान के शैतानियत का शिकार हो जायेगा और बैठे बैठे फितना फैलाएगा।
लेकिन वाक़ई ये सोचने वाली बात है की मनुष्य के अमीर होने की क्या परिभाषा है ?
मैं चौंक गया कोई इंसान बीस साल गल्फ में रहने के बाद भी गरीब हो ! मैंने पूछा आप गरीब कैसे हो आपकी आमदनी तो माशा अल्लाह अच्छी खासी है। ठंढी आह भरते हुवे अशरफ भाई कहते है की "हर वो आदमी तब तक गरीब है जब तक के उसके ऊपर से ये प्रेशर न ख़त्म हो जाये की अगर वो काम न करेगा तो उसका घरका खर्च चलना मुश्किल हो जायेगा " फिर अशरफ भाई के बात से मैं भी सहमत हो गया।
मगर क्या वाक़ई ये बात इतनी सच्ची है जिनती तार्किक लगती है ? अगर इंसान कमाने में व्यस्त नहीं होगा तो क्या करेगा ? इबादत में व्यस्त होगा ? या शैतान के शैतानियत का शिकार हो जायेगा और बैठे बैठे फितना फैलाएगा।
लेकिन वाक़ई ये सोचने वाली बात है की मनुष्य के अमीर होने की क्या परिभाषा है ?