ये जो मेहबूब है मेरा dikhata nhi kabhi
वफ़ा तो है उसमे पर जताता नही कभी
मुख्लिस भी है और मसरूफ भी
गुज़रता इधर से रोज़ आता नही कभी
गुजरते हुवे राह में जो धोके से छू गया था
वही याद है जो अब जाता नही कभी
वफ़ा तो है उसमे पर जताता नही कभी
मुख्लिस भी है और मसरूफ भी
गुज़रता इधर से रोज़ आता नही कभी
गुजरते हुवे राह में जो धोके से छू गया था
वही याद है जो अब जाता नही कभी
No comments:
Post a Comment