शुक्रवार की शाम मैं अपने एक दोस्त के साथ दोहा इस्थित एक लेबर कैंप गया था। मैं वहां अक्सर जाया करता हूँ। वहां लोगों से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। वहां रहने वाले लोगों के आँखों में बहुत बड़ा सपना नहीं होता। वो केवल ज़िन्दगी की जिद्दो जिहद के लिए काम करते हैं। उनका दिल साफ़ होता है और हर बात पे खुलकर बात करना पसंद करते हैं। उन्ही में से दो लोग हैं रहमत और पंकज।
रहमत और पंकज एक साथ एक ही रूम में रहते हैं तथा पिछले १५ सालो से अलग अलग कंपनी में एक ही साथ काम कर रहे हैं। । । ये दोनों क्रेन ऑपरेटर हैं। ये दोनों के गुरु भी एक ही हैं और ये दोनों पछिम बंगाल के एक छोटे से गांव के निवासी हैं। इनकी उम्र ६० के क़रीब होने को आयी हैं। पिछली बार उनसे इत्तेफ़ाक़न मुलाक़ात हो गयी थी एक चाय की दूकान पे और तब इनकी बातें मुझे इतनी अच्छी लगी थी की मैं इनके रूम तक गया था। बहुत सारी बातें हुई थीं। बहुत मजा आया था। मगर इसबार जब उनसे मिलने गया तो वहां कुछ अजीब मामला था। एक मातम सा था दोनों रूम पार्टनर ने पिछले शाम से ही खाना पीना छोरा हुवा था और लगातार रोये जा रहे थे। उनसे कई बार पूछने पर जब कोई जवाब न मिला। वो बस अफ़सोस किये जा रहे थे और रो रहे थे। तभी बाजु वाले रूम से एक सज्जन वहां आजाते यही और बताते हैं की "ऐ बाबू , सब नसीब का खेल है। जो तुम्हारे नसीब में था वो हुवा अब क्यों अपनी सेहत बर्बाद कर रहे हो ?"
मैंने उन सज्जन को बहार चलने का इशारा किया और बहार आकर उनसे दरयाफ्त करने की कोशिश करने लगा की आखिर हुवा क्या है ? जो व्यक्ति पिछने हफ्ते तक दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति लग रहा था अचकनक उसे ऐसी कोनसे दुःख ने आ पकड़ा है की अब वो दुनिया का सबसे दुखी व्यक्ति दिखने लगा है।
अपनी टोपी ठीक करते हुवे डाब दबी आँखों से उन्होंने कहना शुरू किया। ये बचपन से ही दोस्त है। एक साथ पले बढे और जवान होकर नौकरी भी एक ही साथ कर रहे हैं। ऐसा संयोग शायद ही किसी को मिलता है। दोनों ने काम छोड़कर घर जाने का मन बना लिया था। पिछले बार जब दोनों छुट्टी गए थे तब अपने गांव के नज़दीक एक मारकेट में अपने लिए एक एक दूकान देखि थी अपनी जमा पूंजी से उसका बयाना करदिया था। दोनों ने अपने धन अर्जित करने की पर्तिस्पर्धा तथा घरेलु ज़िम्मेदारी की वजह से शादी भी लेट की थी। इनकी उम्र ६० हो होने की आयी है और दोनों के बच्चे अभी २० वर्ष से भी कम आयु के हैं। इनके ज़िन्दगी की कमाई सिर्फ यही है की इन्होने अपने परिवार को शहर में किराये के एक मकान में रखकर बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहें हैं। खान पान का स्तर बढ़ा है। तथा अपनी थोड़ी जमा पूंजी से एक दुकान खरीदा है, जिसकी कीमत लग भाग २० लाख है। वो दूकान भी पहले के खरीदे हुवे जमीन को बेच कर लिया था। मगर वो दूकान अब नहीं रहा दो पहले रात राम नवमी के जुलुस के बाद हुवे दंगे में वो दंगाईयों के भेट चढ़ गया। इन सब वजहों से इनके पत्नियों की तबियत बिगड़ गयीं है और वो अस्पताल में भर्ती हैं। ये लोग घर जान चाहते हैं मगर कंपनी कह रही है की अपना पूरा हिसाब लेकर जाना है तो जाओ क्यूंकि अभी छुट्टी नहीं मिलेगी।
रहमत और पंकज एक साथ एक ही रूम में रहते हैं तथा पिछले १५ सालो से अलग अलग कंपनी में एक ही साथ काम कर रहे हैं। । । ये दोनों क्रेन ऑपरेटर हैं। ये दोनों के गुरु भी एक ही हैं और ये दोनों पछिम बंगाल के एक छोटे से गांव के निवासी हैं। इनकी उम्र ६० के क़रीब होने को आयी हैं। पिछली बार उनसे इत्तेफ़ाक़न मुलाक़ात हो गयी थी एक चाय की दूकान पे और तब इनकी बातें मुझे इतनी अच्छी लगी थी की मैं इनके रूम तक गया था। बहुत सारी बातें हुई थीं। बहुत मजा आया था। मगर इसबार जब उनसे मिलने गया तो वहां कुछ अजीब मामला था। एक मातम सा था दोनों रूम पार्टनर ने पिछले शाम से ही खाना पीना छोरा हुवा था और लगातार रोये जा रहे थे। उनसे कई बार पूछने पर जब कोई जवाब न मिला। वो बस अफ़सोस किये जा रहे थे और रो रहे थे। तभी बाजु वाले रूम से एक सज्जन वहां आजाते यही और बताते हैं की "ऐ बाबू , सब नसीब का खेल है। जो तुम्हारे नसीब में था वो हुवा अब क्यों अपनी सेहत बर्बाद कर रहे हो ?"
मैंने उन सज्जन को बहार चलने का इशारा किया और बहार आकर उनसे दरयाफ्त करने की कोशिश करने लगा की आखिर हुवा क्या है ? जो व्यक्ति पिछने हफ्ते तक दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति लग रहा था अचकनक उसे ऐसी कोनसे दुःख ने आ पकड़ा है की अब वो दुनिया का सबसे दुखी व्यक्ति दिखने लगा है।
अपनी टोपी ठीक करते हुवे डाब दबी आँखों से उन्होंने कहना शुरू किया। ये बचपन से ही दोस्त है। एक साथ पले बढे और जवान होकर नौकरी भी एक ही साथ कर रहे हैं। ऐसा संयोग शायद ही किसी को मिलता है। दोनों ने काम छोड़कर घर जाने का मन बना लिया था। पिछले बार जब दोनों छुट्टी गए थे तब अपने गांव के नज़दीक एक मारकेट में अपने लिए एक एक दूकान देखि थी अपनी जमा पूंजी से उसका बयाना करदिया था। दोनों ने अपने धन अर्जित करने की पर्तिस्पर्धा तथा घरेलु ज़िम्मेदारी की वजह से शादी भी लेट की थी। इनकी उम्र ६० हो होने की आयी है और दोनों के बच्चे अभी २० वर्ष से भी कम आयु के हैं। इनके ज़िन्दगी की कमाई सिर्फ यही है की इन्होने अपने परिवार को शहर में किराये के एक मकान में रखकर बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहें हैं। खान पान का स्तर बढ़ा है। तथा अपनी थोड़ी जमा पूंजी से एक दुकान खरीदा है, जिसकी कीमत लग भाग २० लाख है। वो दूकान भी पहले के खरीदे हुवे जमीन को बेच कर लिया था। मगर वो दूकान अब नहीं रहा दो पहले रात राम नवमी के जुलुस के बाद हुवे दंगे में वो दंगाईयों के भेट चढ़ गया। इन सब वजहों से इनके पत्नियों की तबियत बिगड़ गयीं है और वो अस्पताल में भर्ती हैं। ये लोग घर जान चाहते हैं मगर कंपनी कह रही है की अपना पूरा हिसाब लेकर जाना है तो जाओ क्यूंकि अभी छुट्टी नहीं मिलेगी।