असलम चाचा अब हमारे दफ्तर में काम नहीं करते। कल उनका दफ्तर में आखिरी दिन था। आदतन मैंने पुछ लिया, कहाँ बिताओगे बाक़ी के दिन क्यूंकि अब तो शायद आप नौकरी नहीं करोगे। उन्होंने कहा वलायत जाऊंगा वहीँ रहूँगा अपने नवासी के साथ। मैंने पूछा अपने पत्नी के साथ क्यों नहीं रहते ? पिछले पांच सालो से आप जब भी छुट्टी जाते हो तो अपने पत्नी के पास नहीं जाते। असलम चाचा थोड़ा असहज हुवे और कहा की खुदा के वास्ते ये सब न पूछें !
थोड़ी देर तक कमरे में ख़ामोशी छाई रही। फिर असलम चाचा ने कहा शायद ये आपको जानना जरुरी है। और कहने लगे और कहते ही रहे।
बात यही कोई बीस साल पुरानी होगी मैं उस वक्त मिडिल ईस्ट और अफ्रीकन मुल्क में काम करता था। हर दो साल पे घर जाता था। मेरे दो बच्चे थे एक बेटी और एक बेटा। एक बार मुझे अपने तै वक्त के अनुसार घर जाना था। मैंने दो माह पहले ही घरपे खत लिख दिया था। हालांकि फ़ोन भी उस वक़्त बहोत आम हो गया था मगर में ज्यादा तर खत ही लिखा करता था। घरसे पुरजोर खुशामदीद की जवाबी चिठ्ठी भी आगयी थी। मगर अगली सुबह दफ्तर जाते हुवे मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। और नामालूम जगह पर क़ैद करदिया गया। मेरी कार व दीगर चीज़ों का कुछ पता न चला और न ही मुझे बताया गया की मेरा जुर्म क्या है। शायद वो मुझे किस दूसरे दुश्मन मुल्क़ का जासूस समझ रहे थे।
जेल में एक दो माह तक तो मैं ये सोचता रहा की ये लोग मुझे छोडदेंगे या कोई मेरे घरसे मुझे खोजते हुवे यहाँ आजायेगा। मगर ऐसा सोचते हुवे जब एक साल गुज़र गए तो मुझे अपने बीवी बच्चों की फ़िक्र होने लगी की उनका क्या हो रहा होगा, कोई राब्ता क्यों नहीं कर रहा कहीं उनपे मुझसे बड़ी मुसीबत तो नहीं आगयी। इन हालतों में, मैं एकदम मर ही गया था। साल दर साल आज़ाद होने की सारी उम्मीद खतम हो गयी और मैं सिर्फ अपने मौत का इंतज़ार करने लगा था। वो दुःख शायद ज़िंदा चिता पे लिटा दिए जाने से भी ज्यादा बड़ा होता है। ज़िंदा भी अगर चिता पे लिटा दिए गए तो थोड़ी देर बाद जलकर आपकी जान निकल जाएगी। मगर वहां तो जिस्म में सिर्फ जान ही बाक़ी थी और सबकुछ मर चूका था।
चौदह साल क़ैद में रखने के बाद बिना कुछ कहे छोर दिया गया। इन चौदह सालों में मैं कितना पीछे चला गया था और दुनिया कितना आगे आगयी थी इसका पता मुझे बाहर निकलते ही हो गया था।
जब बाहर आय तो वो पासपोर्ट जो उन्होंने लौटाया था उसकी मियाद ख़तम हो चुकी थी। बहुत मुश्किल से मैं अपने मुल्क के सिफारत खाने तक पहुँच पाया। वहां पहुँच कर मैंने एक अधिकारी को सारा क़िस्सा सुनाया, वो मेरा पासपोर्ट लेकर मुझे वहीँ बैठने का इशारा करके ऊपर चले गए और चंद लम्हे बाद जब वापिस आये
तो साथ चलने का इशारा किया। थोड़े देर बाद मैं अपने मुल्क के अम्बेस्डर के पास बैठा था और रो रो कर उसे अपने बारे में बता रहा था, गुहार लगा रहा था की मुझे जल्द से जल्द अपने बीवी बच्चों के पास भेज दिया जाये। मगर मेरे अहवाल सुनकर अम्बेस्डर के चेहरे की हवाईयां उडी हुई थीं जो मुझे थोड़ा असज कर रहीं थीं। दरयाफ्त करने पर उन्होंने बतया की , जब पुलिस मुझे जेल ले गयी थी उसी दिन मेरे कंपनी के साइट पे बहुत बड़ी दुर्घटना घटी थी जिसमे कई लोग हलाक हो गए थे और कईयों की लाश समुद्र में बह गयी थी और उसका कुछ पता न चला । चूँकि मेरा भी कोई सुराग नहीं मिला तो मेरा घरवालों को भी बता दिया गया की मेरी भी मौत हो गयी हैं। और इसलिए ऑफिशियली मैं एक डेथ व्यक्ति था।
कंपनी द्वारा दी गयी हर्जाने की रक़म मेरे पत्नी को भेज दी गयी थी। और इसके आगे अम्बेस्डर ने कुछ नहीं बताया। उन्होंने मेरा पासपोर्ट नवीकरण करदिया और सामाजिक कल्याण फण्ड से कुछ पैसे और टिकट का बंदोबस्त करदिया। और दूसरी कागजी करवायी करते हुवे मुझे ज़िंदा क़रार देदिया।
एयरपोर्ट पे कोई दिक्कत नहीं हुवी क्यूंकि जेल से छूटते वक़्त उन्होंने एक सर्टिफिकेट दिया था जिसमे इमिग्रेशन अधिकारों को कुछ निर्देश थे उन्होंने वो सर्टिफिकेट देखते ही मुझे जाने दिया।
मैं हवाईजहाज़ में बहुत सारी बातें सोचता रहा। अपने बीवी के बारे में अपने बच्चों के बारे और अपने दोस्त व अहबाब के बारे में। मेरे दिलमे जो गिला था की कोई मुझे तलाशते हुवे जेल तक नहीं पहुंचा था सब ये जानकर दूर हो गए थे और मुझे मरा हुवा समझ रहे था। मैं बार बार अपने बीवी के बारे में सोचकर भावुक हो जाता और रोने लगता कभी बेटी के बारे में सोचता और रोने लगता। मगर मुझे क्या पता था की मेर इन लम्हात में मेरे मुल्क़ में भी मेरे लिए जमीन तंग हो गयी थी। जैसे तैसे भागते भगाते जब मैं अपने गाँव पहुंचा तो वहां का कुछ अलग नज़ारा था। मेरी बेटी जो मरे जेल जाते वक़्त १४ साल की थी। बीस साल की उम्र में उसके खला ज़ाद भाई से शादी करदी गयी, मेरा बेटा जो उस वक़्त १० साल का था। दो साल बाद यानि बारह साल की उम्र में अचानक ही लापता हो गया और उसका कोई सुराग न मिला। मेरी पत्नी जो जेल जाते वक़्त ३२ साल की थी बेटी के शादी के बाद लोगों ने उसे वर्गाला के उसको दूसरी शादी करने पे मजबूर करदिया था। और जमीन जायदाद पर मेरे चाचा का क़ब्ज़ा था।
मेरे दिलमे इच्छा थी के में अपने बीवी से मिलूं , पता करते हुवे उसके शौहर के पास गया मगर इससे पहले की कुछ ज्यादा बात होती घरके अंदर से रोने की आवाज़ आने लगी सब लोग दहाड़ मार मार के रो रहे थे। तब पता चला की ये मेरे बीवी के मौत का मातम था। किसी ने उसे दो दिन पहले ही मेरे बारे में सबकुछ बता दिया था। ये शायद उसकी बहन और मेरे बेटी सास थी जिसने सारा कहानी उसे चुपके से कह सुनाया था। किसी ने बताया की उसने दो दिनों से खाना पीना छोरदिया था उसकी तबियत ठीक नहीं थी और तीसरे दिन उसने खुदकशी कर्ली।
मैं वही रुक गया और जनाज़े में शिरकत की। दुनिया एक अँधेरे कुवें जैसी लगने लगी थी। कोई रास्ता और न उम्मीद बची थी जिसको ज़िंदा रहने की वजह क़रार दूँ। सिवाए इसके की मेरी बेटी की फ़िक्र हो रही थी। मैं उससे मिलना चाहता था। उससे बात करना चाहता था। दरयाफ्त करने पर पता चला था की उसका शौहर शादी के बाद उसे लंदन ले गया था और तबसे वो वहीँ रहती है।
ज़िन्दगी में एक और मोर आया और एक सुबह मुझे पुलिस ने गिरफ्तार करलिया पूछने पर बताया गया की मेरे बीवी के शौहर पर किसी ने क़ातिलाना हमला करके उसे उसे हलाक करदिया था। पुलिस को मुझपे शक था। मैंने एक ठंढी आह भरी और सोचने लगा की ऐसे बाहर रहकर भी क्या कर रहा हूँ। और पुलिस वालों के साथ चल दिया। मुझे हिरासत में पूछ ताछ के बाद जेल भेज दिया गया। पुलिस को मेरे जवाबात से ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुवा था और वो अभी भी छान बीन जारी रख्खे हुवी थी। इधर मैं जेल पहुंच कर इसको आखिरी मंज़िल मानकर इत्मीनान की सांस ले रहा था क्यूंकि दिल में कोई ख्वाहिश बची न थी सिवाए इसके की बेटी को एक झलक देखना चाहता था उससे अपने बारे में सफाई देना चाहता था बताना चाहता था की असल में मेरे साथ क्या हुवा था।
तभी मुझे एक दिन जेल से रिहा करदिया गया क्यूंकि असल क़ातिल पकड़ा गया था। जेल से बहार निकल कर लोग अमूमन खुश होते हैं मगर मैं नाखुश था। इसलिए की पता नहीं अब कोनसी नयी मुसीबत आने वाली है। मैं जेल से छूटने के बाद बेटी के ससुराल वाले के पास गया। वहां से मुझे राहत की खबर मिली मुझे बताया गया की मेरे बेटी को मेरे बारे में बता दिया गया है और वो मुझसे मिलने के लिए आरही है मगर उसे या खबर न थी के मैं अब जेल से रिहा हो चूका हूँ। बहर हाल मैंने कल सुबह तक का इंतजार किया और अगली सुबह हवाई अड्डा चला गया , साथ उसकी सास व देवर भी थे। शामके वक्त फ्लाइट आई और कुछ देर बाद वो लोग बाहर आये। बेटी मुझे देखते ही लिपट कर रोने लग गयी हम एक दूसरे को गले लगाए बहुत देर तक रोते रहे, शांत हुवे और फिर रोने लगे ऐसा कई घंटो तक चला मुझे नहीं मालूम ऐसा क्यों हो रहा था जब मुझे अपने आप पर कोई कंट्रोल नहीं था। दिमाग बंद हो गया था दिल पे कोई काबू न था और मैं बेसब्र हो चूका था। आँखों से आंसुओं का सैलाब जारी रहा। उस रात मैं अपने बेटी के साथ पूरी रात जगा रहा उसकी कहानी सुनता और रहा फिर अपनी बात बताई । जब दिमाग बंद हो जाये और सिर्फ दिल काम करने लगे तो शायद नींद का ग़लबा भी नहीं आता।
मेरी बेटी जो अब बर्तानवी नागरिक थी मेरे लिए ब्रिटैन का वीसा निकलवा कर मुझे साथ ले गयी। मैं बहुत दिनों तक वही रहा तबियत में कुछ रवानी हुई तो मैंने उससे कहा की मैं नौकरी ढूंढने के लिए क़तर जाना चाहता हूँ। आजकल क़तर में बहुत कंट्रक्शन का काम चल रहा है। मुझे आसानी से नौकरी मिल जाएगी। उसके बाद मैं क़तर आगया और यहीं नौकरी करने लगा था, कभी अपने मुल्क न गया। मेरा दामाद बहुत अच्छा इंसान है। मेरे पास बर्तिनिया का लॉन्ग टर्म वीसा है उसने वही कुछ काम करने का सुझाव दिया है और मैं बाक़ी की ज़िन्दगी वही बिताऊंगा जब तक के मालिक ऐ हक़ीकी का बुलावा न आजाये।
फिर उन्होंने मुझे कहा की आपके के लिए मेरे ज़िन्दगी का निचोड़ ये है की। इंसान की ज़िन्दगी एक पल में ही उसे इतना बर्बाद कर सकती है की उसके बारे वो सोच भी नहीं सकता। और इसमें कोई शिकायत नहीं होना चाहिए। दौलत, शोहरत, इज़्ज़त जिसने दी है उसका पूरा अधिकार है वो जब चाहे वापस ले ले।
थोड़ी देर तक कमरे में ख़ामोशी छाई रही। फिर असलम चाचा ने कहा शायद ये आपको जानना जरुरी है। और कहने लगे और कहते ही रहे।
बात यही कोई बीस साल पुरानी होगी मैं उस वक्त मिडिल ईस्ट और अफ्रीकन मुल्क में काम करता था। हर दो साल पे घर जाता था। मेरे दो बच्चे थे एक बेटी और एक बेटा। एक बार मुझे अपने तै वक्त के अनुसार घर जाना था। मैंने दो माह पहले ही घरपे खत लिख दिया था। हालांकि फ़ोन भी उस वक़्त बहोत आम हो गया था मगर में ज्यादा तर खत ही लिखा करता था। घरसे पुरजोर खुशामदीद की जवाबी चिठ्ठी भी आगयी थी। मगर अगली सुबह दफ्तर जाते हुवे मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। और नामालूम जगह पर क़ैद करदिया गया। मेरी कार व दीगर चीज़ों का कुछ पता न चला और न ही मुझे बताया गया की मेरा जुर्म क्या है। शायद वो मुझे किस दूसरे दुश्मन मुल्क़ का जासूस समझ रहे थे।
जेल में एक दो माह तक तो मैं ये सोचता रहा की ये लोग मुझे छोडदेंगे या कोई मेरे घरसे मुझे खोजते हुवे यहाँ आजायेगा। मगर ऐसा सोचते हुवे जब एक साल गुज़र गए तो मुझे अपने बीवी बच्चों की फ़िक्र होने लगी की उनका क्या हो रहा होगा, कोई राब्ता क्यों नहीं कर रहा कहीं उनपे मुझसे बड़ी मुसीबत तो नहीं आगयी। इन हालतों में, मैं एकदम मर ही गया था। साल दर साल आज़ाद होने की सारी उम्मीद खतम हो गयी और मैं सिर्फ अपने मौत का इंतज़ार करने लगा था। वो दुःख शायद ज़िंदा चिता पे लिटा दिए जाने से भी ज्यादा बड़ा होता है। ज़िंदा भी अगर चिता पे लिटा दिए गए तो थोड़ी देर बाद जलकर आपकी जान निकल जाएगी। मगर वहां तो जिस्म में सिर्फ जान ही बाक़ी थी और सबकुछ मर चूका था।
चौदह साल क़ैद में रखने के बाद बिना कुछ कहे छोर दिया गया। इन चौदह सालों में मैं कितना पीछे चला गया था और दुनिया कितना आगे आगयी थी इसका पता मुझे बाहर निकलते ही हो गया था।
जब बाहर आय तो वो पासपोर्ट जो उन्होंने लौटाया था उसकी मियाद ख़तम हो चुकी थी। बहुत मुश्किल से मैं अपने मुल्क के सिफारत खाने तक पहुँच पाया। वहां पहुँच कर मैंने एक अधिकारी को सारा क़िस्सा सुनाया, वो मेरा पासपोर्ट लेकर मुझे वहीँ बैठने का इशारा करके ऊपर चले गए और चंद लम्हे बाद जब वापिस आये
तो साथ चलने का इशारा किया। थोड़े देर बाद मैं अपने मुल्क के अम्बेस्डर के पास बैठा था और रो रो कर उसे अपने बारे में बता रहा था, गुहार लगा रहा था की मुझे जल्द से जल्द अपने बीवी बच्चों के पास भेज दिया जाये। मगर मेरे अहवाल सुनकर अम्बेस्डर के चेहरे की हवाईयां उडी हुई थीं जो मुझे थोड़ा असज कर रहीं थीं। दरयाफ्त करने पर उन्होंने बतया की , जब पुलिस मुझे जेल ले गयी थी उसी दिन मेरे कंपनी के साइट पे बहुत बड़ी दुर्घटना घटी थी जिसमे कई लोग हलाक हो गए थे और कईयों की लाश समुद्र में बह गयी थी और उसका कुछ पता न चला । चूँकि मेरा भी कोई सुराग नहीं मिला तो मेरा घरवालों को भी बता दिया गया की मेरी भी मौत हो गयी हैं। और इसलिए ऑफिशियली मैं एक डेथ व्यक्ति था।
कंपनी द्वारा दी गयी हर्जाने की रक़म मेरे पत्नी को भेज दी गयी थी। और इसके आगे अम्बेस्डर ने कुछ नहीं बताया। उन्होंने मेरा पासपोर्ट नवीकरण करदिया और सामाजिक कल्याण फण्ड से कुछ पैसे और टिकट का बंदोबस्त करदिया। और दूसरी कागजी करवायी करते हुवे मुझे ज़िंदा क़रार देदिया।
एयरपोर्ट पे कोई दिक्कत नहीं हुवी क्यूंकि जेल से छूटते वक़्त उन्होंने एक सर्टिफिकेट दिया था जिसमे इमिग्रेशन अधिकारों को कुछ निर्देश थे उन्होंने वो सर्टिफिकेट देखते ही मुझे जाने दिया।
मैं हवाईजहाज़ में बहुत सारी बातें सोचता रहा। अपने बीवी के बारे में अपने बच्चों के बारे और अपने दोस्त व अहबाब के बारे में। मेरे दिलमे जो गिला था की कोई मुझे तलाशते हुवे जेल तक नहीं पहुंचा था सब ये जानकर दूर हो गए थे और मुझे मरा हुवा समझ रहे था। मैं बार बार अपने बीवी के बारे में सोचकर भावुक हो जाता और रोने लगता कभी बेटी के बारे में सोचता और रोने लगता। मगर मुझे क्या पता था की मेर इन लम्हात में मेरे मुल्क़ में भी मेरे लिए जमीन तंग हो गयी थी। जैसे तैसे भागते भगाते जब मैं अपने गाँव पहुंचा तो वहां का कुछ अलग नज़ारा था। मेरी बेटी जो मरे जेल जाते वक़्त १४ साल की थी। बीस साल की उम्र में उसके खला ज़ाद भाई से शादी करदी गयी, मेरा बेटा जो उस वक़्त १० साल का था। दो साल बाद यानि बारह साल की उम्र में अचानक ही लापता हो गया और उसका कोई सुराग न मिला। मेरी पत्नी जो जेल जाते वक़्त ३२ साल की थी बेटी के शादी के बाद लोगों ने उसे वर्गाला के उसको दूसरी शादी करने पे मजबूर करदिया था। और जमीन जायदाद पर मेरे चाचा का क़ब्ज़ा था।
मेरे दिलमे इच्छा थी के में अपने बीवी से मिलूं , पता करते हुवे उसके शौहर के पास गया मगर इससे पहले की कुछ ज्यादा बात होती घरके अंदर से रोने की आवाज़ आने लगी सब लोग दहाड़ मार मार के रो रहे थे। तब पता चला की ये मेरे बीवी के मौत का मातम था। किसी ने उसे दो दिन पहले ही मेरे बारे में सबकुछ बता दिया था। ये शायद उसकी बहन और मेरे बेटी सास थी जिसने सारा कहानी उसे चुपके से कह सुनाया था। किसी ने बताया की उसने दो दिनों से खाना पीना छोरदिया था उसकी तबियत ठीक नहीं थी और तीसरे दिन उसने खुदकशी कर्ली।
मैं वही रुक गया और जनाज़े में शिरकत की। दुनिया एक अँधेरे कुवें जैसी लगने लगी थी। कोई रास्ता और न उम्मीद बची थी जिसको ज़िंदा रहने की वजह क़रार दूँ। सिवाए इसके की मेरी बेटी की फ़िक्र हो रही थी। मैं उससे मिलना चाहता था। उससे बात करना चाहता था। दरयाफ्त करने पर पता चला था की उसका शौहर शादी के बाद उसे लंदन ले गया था और तबसे वो वहीँ रहती है।
ज़िन्दगी में एक और मोर आया और एक सुबह मुझे पुलिस ने गिरफ्तार करलिया पूछने पर बताया गया की मेरे बीवी के शौहर पर किसी ने क़ातिलाना हमला करके उसे उसे हलाक करदिया था। पुलिस को मुझपे शक था। मैंने एक ठंढी आह भरी और सोचने लगा की ऐसे बाहर रहकर भी क्या कर रहा हूँ। और पुलिस वालों के साथ चल दिया। मुझे हिरासत में पूछ ताछ के बाद जेल भेज दिया गया। पुलिस को मेरे जवाबात से ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुवा था और वो अभी भी छान बीन जारी रख्खे हुवी थी। इधर मैं जेल पहुंच कर इसको आखिरी मंज़िल मानकर इत्मीनान की सांस ले रहा था क्यूंकि दिल में कोई ख्वाहिश बची न थी सिवाए इसके की बेटी को एक झलक देखना चाहता था उससे अपने बारे में सफाई देना चाहता था बताना चाहता था की असल में मेरे साथ क्या हुवा था।
तभी मुझे एक दिन जेल से रिहा करदिया गया क्यूंकि असल क़ातिल पकड़ा गया था। जेल से बहार निकल कर लोग अमूमन खुश होते हैं मगर मैं नाखुश था। इसलिए की पता नहीं अब कोनसी नयी मुसीबत आने वाली है। मैं जेल से छूटने के बाद बेटी के ससुराल वाले के पास गया। वहां से मुझे राहत की खबर मिली मुझे बताया गया की मेरे बेटी को मेरे बारे में बता दिया गया है और वो मुझसे मिलने के लिए आरही है मगर उसे या खबर न थी के मैं अब जेल से रिहा हो चूका हूँ। बहर हाल मैंने कल सुबह तक का इंतजार किया और अगली सुबह हवाई अड्डा चला गया , साथ उसकी सास व देवर भी थे। शामके वक्त फ्लाइट आई और कुछ देर बाद वो लोग बाहर आये। बेटी मुझे देखते ही लिपट कर रोने लग गयी हम एक दूसरे को गले लगाए बहुत देर तक रोते रहे, शांत हुवे और फिर रोने लगे ऐसा कई घंटो तक चला मुझे नहीं मालूम ऐसा क्यों हो रहा था जब मुझे अपने आप पर कोई कंट्रोल नहीं था। दिमाग बंद हो गया था दिल पे कोई काबू न था और मैं बेसब्र हो चूका था। आँखों से आंसुओं का सैलाब जारी रहा। उस रात मैं अपने बेटी के साथ पूरी रात जगा रहा उसकी कहानी सुनता और रहा फिर अपनी बात बताई । जब दिमाग बंद हो जाये और सिर्फ दिल काम करने लगे तो शायद नींद का ग़लबा भी नहीं आता।
मेरी बेटी जो अब बर्तानवी नागरिक थी मेरे लिए ब्रिटैन का वीसा निकलवा कर मुझे साथ ले गयी। मैं बहुत दिनों तक वही रहा तबियत में कुछ रवानी हुई तो मैंने उससे कहा की मैं नौकरी ढूंढने के लिए क़तर जाना चाहता हूँ। आजकल क़तर में बहुत कंट्रक्शन का काम चल रहा है। मुझे आसानी से नौकरी मिल जाएगी। उसके बाद मैं क़तर आगया और यहीं नौकरी करने लगा था, कभी अपने मुल्क न गया। मेरा दामाद बहुत अच्छा इंसान है। मेरे पास बर्तिनिया का लॉन्ग टर्म वीसा है उसने वही कुछ काम करने का सुझाव दिया है और मैं बाक़ी की ज़िन्दगी वही बिताऊंगा जब तक के मालिक ऐ हक़ीकी का बुलावा न आजाये।
फिर उन्होंने मुझे कहा की आपके के लिए मेरे ज़िन्दगी का निचोड़ ये है की। इंसान की ज़िन्दगी एक पल में ही उसे इतना बर्बाद कर सकती है की उसके बारे वो सोच भी नहीं सकता। और इसमें कोई शिकायत नहीं होना चाहिए। दौलत, शोहरत, इज़्ज़त जिसने दी है उसका पूरा अधिकार है वो जब चाहे वापस ले ले।