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Tuesday, 27 March 2018

ज़िन्दगी

असलम चाचा अब हमारे दफ्तर में काम नहीं करते। कल उनका दफ्तर में आखिरी दिन था। आदतन मैंने पुछ लिया, कहाँ बिताओगे बाक़ी के दिन क्यूंकि अब तो शायद आप नौकरी नहीं करोगे। उन्होंने कहा वलायत जाऊंगा वहीँ रहूँगा अपने नवासी के साथ।  मैंने पूछा अपने पत्नी के साथ क्यों नहीं रहते ? पिछले पांच सालो से आप जब भी छुट्टी जाते हो तो अपने पत्नी के पास नहीं जाते।  असलम चाचा थोड़ा असहज हुवे और कहा की खुदा के वास्ते ये सब न पूछें !
थोड़ी देर तक कमरे में ख़ामोशी छाई रही। फिर असलम चाचा ने कहा शायद ये आपको जानना जरुरी है।  और कहने लगे और कहते ही रहे।
बात यही कोई  बीस साल पुरानी होगी मैं उस वक्त मिडिल ईस्ट और अफ्रीकन मुल्क  में काम करता था।  हर दो साल पे घर जाता था।  मेरे दो बच्चे थे एक बेटी और एक बेटा। एक बार मुझे अपने तै वक्त के अनुसार घर जाना था।  मैंने दो माह पहले ही घरपे खत लिख दिया था। हालांकि फ़ोन भी उस वक़्त बहोत आम हो गया था मगर में ज्यादा तर खत ही लिखा करता था।  घरसे पुरजोर खुशामदीद की जवाबी चिठ्ठी भी आगयी थी।  मगर अगली सुबह दफ्तर जाते हुवे मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।  और नामालूम जगह पर क़ैद करदिया गया। मेरी कार व दीगर चीज़ों का कुछ पता न चला और न ही मुझे बताया गया की मेरा जुर्म क्या है। शायद वो मुझे किस दूसरे दुश्मन मुल्क़ का जासूस समझ रहे थे।

जेल में एक दो माह तक तो मैं ये सोचता रहा की ये लोग मुझे छोडदेंगे या कोई मेरे घरसे मुझे खोजते हुवे यहाँ आजायेगा।  मगर ऐसा सोचते हुवे जब एक साल गुज़र गए तो मुझे अपने बीवी बच्चों की  फ़िक्र होने लगी की उनका क्या हो रहा होगा, कोई राब्ता क्यों नहीं कर रहा कहीं उनपे मुझसे बड़ी मुसीबत तो नहीं आगयी। इन हालतों में, मैं एकदम मर ही गया था। साल दर साल आज़ाद होने की सारी  उम्मीद खतम हो गयी और मैं सिर्फ अपने मौत का इंतज़ार करने लगा था।  वो दुःख शायद ज़िंदा चिता पे लिटा दिए जाने से भी ज्यादा बड़ा होता है। ज़िंदा भी अगर चिता पे लिटा दिए गए तो थोड़ी देर बाद जलकर आपकी जान निकल जाएगी। मगर वहां तो जिस्म में सिर्फ जान ही बाक़ी थी और सबकुछ मर चूका था।

चौदह  साल क़ैद में रखने के बाद बिना कुछ कहे छोर दिया गया। इन चौदह सालों में मैं कितना पीछे चला गया था और दुनिया कितना आगे आगयी थी इसका पता मुझे बाहर निकलते ही हो गया था।

जब बाहर आय तो वो पासपोर्ट जो उन्होंने लौटाया था उसकी मियाद ख़तम हो चुकी थी।  बहुत मुश्किल से मैं अपने मुल्क के सिफारत खाने तक पहुँच पाया। वहां पहुँच कर मैंने एक अधिकारी को सारा क़िस्सा सुनाया, वो मेरा पासपोर्ट लेकर मुझे वहीँ बैठने का इशारा करके ऊपर चले गए   और चंद लम्हे बाद जब वापिस आये
 तो साथ चलने का इशारा किया।  थोड़े देर बाद मैं अपने मुल्क के अम्बेस्डर के पास बैठा था और रो रो कर उसे अपने बारे में बता रहा था, गुहार लगा रहा था की मुझे जल्द से जल्द अपने बीवी बच्चों के पास भेज दिया जाये।  मगर मेरे अहवाल सुनकर अम्बेस्डर के चेहरे की हवाईयां उडी हुई थीं  जो मुझे थोड़ा असज कर रहीं थीं।  दरयाफ्त करने पर उन्होंने बतया की , जब पुलिस मुझे जेल ले गयी  थी उसी दिन मेरे  कंपनी के साइट  पे  बहुत बड़ी दुर्घटना घटी थी जिसमे कई लोग हलाक हो गए थे और कईयों की लाश समुद्र में बह गयी थी और उसका कुछ पता न चला । चूँकि मेरा भी कोई सुराग नहीं मिला तो मेरा घरवालों को भी बता दिया गया की मेरी  भी मौत हो गयी हैं। और इसलिए ऑफिशियली मैं  एक डेथ व्यक्ति था।

कंपनी द्वारा दी गयी हर्जाने की रक़म मेरे  पत्नी को भेज दी गयी थी। और इसके आगे अम्बेस्डर ने कुछ नहीं बताया। उन्होंने मेरा पासपोर्ट नवीकरण करदिया और सामाजिक कल्याण फण्ड से कुछ पैसे और टिकट का बंदोबस्त करदिया। और दूसरी कागजी करवायी करते हुवे मुझे ज़िंदा क़रार देदिया।

एयरपोर्ट पे कोई दिक्कत नहीं हुवी क्यूंकि जेल से छूटते वक़्त उन्होंने एक सर्टिफिकेट दिया था जिसमे इमिग्रेशन अधिकारों को कुछ निर्देश थे उन्होंने वो सर्टिफिकेट देखते ही मुझे जाने दिया। 

मैं हवाईजहाज़ में बहुत सारी बातें सोचता रहा।  अपने बीवी के बारे में अपने बच्चों के बारे और अपने दोस्त व अहबाब के बारे में।  मेरे दिलमे जो गिला था की कोई मुझे तलाशते हुवे जेल तक नहीं पहुंचा था सब ये जानकर दूर हो गए थे  और  मुझे मरा हुवा समझ रहे था। मैं बार बार अपने बीवी के बारे में सोचकर भावुक हो जाता और रोने लगता कभी बेटी के बारे में सोचता और रोने लगता।  मगर मुझे क्या पता था की मेर इन लम्हात में मेरे मुल्क़ में भी मेरे लिए जमीन  तंग हो गयी थी। जैसे तैसे भागते भगाते जब मैं अपने गाँव पहुंचा तो वहां का कुछ अलग नज़ारा था। मेरी बेटी जो मरे जेल जाते वक़्त १४ साल की थी।  बीस साल की उम्र में उसके खला ज़ाद भाई से शादी करदी गयी, मेरा बेटा जो उस वक़्त १० साल का था। दो साल बाद यानि बारह साल की उम्र में अचानक ही लापता हो गया और उसका कोई सुराग न मिला। मेरी पत्नी जो जेल जाते वक़्त ३२ साल की थी बेटी के शादी के बाद लोगों ने उसे वर्गाला के उसको दूसरी शादी करने पे मजबूर करदिया था। और जमीन जायदाद पर मेरे चाचा का क़ब्ज़ा था।

 मेरे दिलमे इच्छा थी के में अपने बीवी से मिलूं , पता करते हुवे उसके शौहर के पास गया मगर इससे पहले की कुछ ज्यादा बात होती घरके अंदर से रोने की आवाज़ आने लगी सब लोग दहाड़ मार मार के रो रहे थे।  तब पता चला  की ये मेरे बीवी के मौत का मातम था।  किसी ने उसे दो दिन पहले ही मेरे बारे में सबकुछ बता दिया था। ये शायद उसकी बहन और मेरे बेटी सास थी जिसने सारा कहानी उसे चुपके से कह  सुनाया था।  किसी ने बताया की उसने दो दिनों से  खाना पीना छोरदिया था उसकी तबियत ठीक नहीं थी और तीसरे दिन उसने खुदकशी कर्ली।
मैं वही रुक गया और जनाज़े में शिरकत की। दुनिया एक अँधेरे कुवें  जैसी लगने लगी थी।  कोई रास्ता  और न उम्मीद बची थी  जिसको ज़िंदा रहने की वजह क़रार दूँ।  सिवाए इसके की मेरी बेटी की फ़िक्र हो रही थी।  मैं उससे मिलना चाहता था। उससे बात करना चाहता था।  दरयाफ्त करने पर पता चला था की उसका शौहर शादी के बाद उसे लंदन ले गया था  और तबसे वो वहीँ रहती है।
ज़िन्दगी में एक और मोर आया और एक सुबह मुझे पुलिस ने गिरफ्तार करलिया पूछने पर बताया गया की मेरे बीवी के शौहर पर किसी ने क़ातिलाना हमला करके उसे उसे हलाक करदिया था।  पुलिस को मुझपे शक था।  मैंने एक ठंढी आह भरी और सोचने लगा की ऐसे बाहर रहकर भी क्या कर रहा हूँ। और पुलिस वालों के साथ चल दिया। मुझे हिरासत में पूछ ताछ के बाद जेल भेज दिया गया। पुलिस को मेरे जवाबात से ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुवा था और वो अभी भी छान बीन जारी रख्खे हुवी थी।  इधर मैं जेल पहुंच कर इसको आखिरी मंज़िल मानकर इत्मीनान की सांस ले रहा था क्यूंकि दिल में कोई ख्वाहिश बची न थी सिवाए इसके की  बेटी को एक झलक देखना चाहता था उससे अपने बारे में सफाई देना चाहता था बताना चाहता था की असल में मेरे साथ क्या हुवा था।

तभी मुझे एक दिन जेल से रिहा करदिया गया क्यूंकि असल क़ातिल पकड़ा गया था।  जेल से बहार निकल कर लोग अमूमन खुश होते हैं मगर मैं नाखुश था। इसलिए की पता नहीं अब कोनसी नयी मुसीबत आने वाली है। मैं जेल से छूटने के बाद बेटी के ससुराल वाले के पास गया। वहां से मुझे राहत की खबर मिली मुझे बताया गया की मेरे बेटी को मेरे  बारे  में  बता दिया गया है  और वो मुझसे मिलने के लिए आरही है मगर उसे या खबर न थी के मैं अब जेल से रिहा हो चूका हूँ। बहर हाल मैंने कल सुबह तक का इंतजार किया और अगली सुबह हवाई अड्डा चला गया , साथ उसकी सास व देवर भी थे।  शामके वक्त फ्लाइट आई और कुछ देर बाद वो लोग बाहर आये। बेटी मुझे देखते ही लिपट कर रोने लग गयी हम एक दूसरे को गले लगाए बहुत देर तक रोते रहे, शांत हुवे और फिर रोने लगे ऐसा कई घंटो तक चला मुझे नहीं मालूम ऐसा क्यों हो रहा था जब मुझे अपने आप पर कोई कंट्रोल नहीं था। दिमाग बंद हो गया था दिल पे कोई काबू न था और मैं बेसब्र हो चूका था।  आँखों से आंसुओं का सैलाब जारी रहा।  उस रात मैं अपने बेटी के साथ पूरी रात जगा रहा उसकी कहानी सुनता और रहा फिर अपनी बात बताई । जब दिमाग बंद हो जाये और सिर्फ दिल काम करने लगे तो शायद नींद का ग़लबा भी नहीं आता।

मेरी बेटी जो अब बर्तानवी नागरिक थी मेरे लिए ब्रिटैन का वीसा निकलवा कर मुझे साथ ले गयी।  मैं बहुत दिनों तक वही रहा तबियत में कुछ रवानी हुई तो मैंने उससे कहा की मैं नौकरी ढूंढने के लिए क़तर जाना चाहता हूँ। आजकल क़तर में बहुत कंट्रक्शन का काम चल रहा है। मुझे आसानी से नौकरी मिल जाएगी। उसके बाद मैं क़तर आगया और यहीं नौकरी करने लगा था, कभी अपने मुल्क न गया। मेरा दामाद बहुत अच्छा इंसान है।  मेरे पास बर्तिनिया का लॉन्ग टर्म वीसा है उसने वही कुछ काम करने का सुझाव  दिया है और मैं बाक़ी की ज़िन्दगी वही बिताऊंगा जब तक के मालिक ऐ हक़ीकी का बुलावा न आजाये।

फिर उन्होंने मुझे कहा की आपके के लिए मेरे ज़िन्दगी का निचोड़ ये है की। इंसान की ज़िन्दगी एक पल में ही उसे इतना बर्बाद कर सकती है की उसके बारे वो सोच भी नहीं सकता। और इसमें कोई शिकायत नहीं होना चाहिए। दौलत, शोहरत, इज़्ज़त जिसने दी है उसका पूरा अधिकार है वो जब चाहे वापस ले ले।  

Wednesday, 7 February 2018

प्राथमिकता

ताल्लुकात ! ये एक ऐसी चीज़ है जो शायद हर किसी से रखना चाहिए। ऐसा कहना है असलम चाचा का, और आगे सुनिए वो क्या कहते हैं इस्पे।
उनका कहना है की ये जरुरी नहीं की कोई आदमी आपके बात का हमेशा जवाब दे, या आप किसी के बात का हमेशा जवाब दें अब  ख्वाह वो बात अच्छी हो या बुरी, मगर इसका मतलब कतई नहीं है की आप किसी से नाराज़ हैं या आपसे कोई नाराज़ है। और असलम चाचा कहते हैं की अगर किसी बात का जवाब न देकर नाराजगी जाहिर करना है तब भी ये कमसे कम हर बात का जवाब देकर झगरने से कहीं अच्छा है।

किसी से  बात का जवाब न मिलने पर किसी से नाता नहीं तोरना चाहिए या उस इंसान को सिर्फ इस बिना पे गलत नहीं समझना चाहिए। इंसान की पूरी ज़िन्दगी प्राथमिकता पे टिकी है और जीवन के अलग अलग पराओ पे अलग अलग प्राथमिकता होती है वैसे ही हर घंटे की प्राथमिकता भी अलग अलग होती और कई बार इंसान अपनी प्राथमिकताओं में उलझ जाता है।   

Sunday, 29 October 2017

हवाई जहाज़ के वो पांच मिनट !

जैसे ही हवाई जहाज आसमान को छुवा एक सज्जन जो की ३८-३९ साल के रहे होंगे, एयरहोस्टेस से पूछने लगे ड्रिंक कब मिलेगा, उस वक्त रात के १० बज रहे थे।  मानो ऐसा लग रहा था की वो सज्जन फ्लाइट में सिर्फ ड्रिंक के लिए ही आये थे। एयरहोस्टेस ने गंभीरता से जवाब दिया,  थोड़ी देर इंतज़ार कीजिये। थोड़ी देर बाद मैंने देखा की वो सज्जन पायलट कॉकपिट की तरफ तेज़ी बढे और फिर वापिस आ गये। मुझे लगा शायद ड्रिंक के लिए पूछने गए रहे होंगे, मगर नहीं उनके हाथ में आधा खाया हुवा एक सैंडविच था जिसपे लिस्टिक के निशान थे। मैं कुछ समझ नहीं पाया और आंख बंद करके सोने की कोशिश करने लगा। थोड़ी देर बाद सर्विस ट्राली वाले के जगाने पे आँख खुली तो देखा की सज्जन बार बार एक्स्ट्रा ड्रिंक के लिए ज़िद कर रहे थे। फिर दोनों एयरहोस्टेस ने एक दूसरे की तरफ देखकर एक पैग बनाया और उन्हें दे दिया। मैंने फिरसे अपनी आँखें बंद करली और सोने की कोशिश करने लगा। इतने में ही देखा की सह यात्री ने एयरहोस्टेस को बुला कर उनकी शिकायत करदी  के ये जनाब अपना कपड़ा उतार कर सोना चाहते हैं। एयरहोस्टेस ने उन्हें मना किया तो वो उनसे बहस करने लगे कहने लगे मैं अपने घरमे ड्रिंक लेने के बाद कपड़े उतार कर ही सोता हूँ, तुम ड्रिंक देते हो तो मेरे निजता का भी ख्याल रख्खो मैं शर्ट उतार  कर सोना चाहता हूँ इसमें क्या बुराई है। सामने वाले सीट पर बैठी एक अंग्रेजी महिला की तरफ इशारा करते हुवे कहने लगे की ये महिला होकर जब बनयान और हाफ पैंट में पूरा एयरपोर्ट और सिक्योरिटी से गुज़रती हुई यहाँ आगयी और किसी ने नहीं टोका तो फिर मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं आपलोग, मैं शर्ट ही तो उतारना चाहता हूँ। बहस को तेज़ होता देख एक पुरुष क्रू मेंबर पायलट को बुला लाया। पायलट उन्हें समझाने लगा मगर वो पायलट की भी नहीं सुन रहे थे। फिर पायलट ने उसे और ज्यादा ड्रिंक देने की पेशकश की तो वो मान गया। फिर शांति बहाल हो गयी। थोड़ी देर बाद जब मैं शौचालय की तरफ गया तो दो एयरहोस्टेस आपस में बात कर रहीं थी की उनका सैंडविच जो की उन्होंने एयरपोर्ट से खरीदा था वो किसी ने चुरा लिया था। मैं मुस्कुराता हुवा आगे बढ़ गया और अपने सीट पे आकर  फिरसे सोने कोशिश करने लगा , मुझे उस व्यक्ति पे बहुत गुस्सा आरहा था।  मगर ये व्यर्थ ही था। मैं अपने दिलको समझा बुझा कर सोने के लिए राज़ी कर लिया। सोने के कुछ देर बाद मुझे पता लगा की ये प्लेन क्रैश कर गया है। नफ्सि नफ्सि का आलम है , हवाईजहाज़ के दो टुकड़े हो गए हैं और मैं सीट पे बैठा बैठा ईरान के पहाड़ियों पे गिर रहा हूँ। मैं ये सोच रहा था की मैं ज़िंदा कैसे हूँ, फिर मुझे साइंस के कुछ सिद्धांत याद आने लगे

 फिर मैंने देखा की वो बंदा भी मेरे साथ ही गिर रहा है। और कह रहा है।  कैसा महसूस कर रहे हो ? मुझे इतनी नफरत होगयी थी उससे की अपने प्राण जाने का गम भूल उसका मुँह नोचने की सोचने लगा। लेकिन तबतक वो मेरे और क़रीब आ गया और कहने लगा तुम जो सोच रहे हो वो नहीं कर पाओगे, देखो तो तुम्हारे हाथ हैं क्या ? तब मेरा ध्यान मेरी हाथ की तरफ़ा गया और मैंने देखा की मेरे पास हाथ नहीं थे। और वो ऐसे गायब थे जैसे ये जनम से ही न रहे हों   मैं भो चक्का रह गया ये क्या हो रहा था मेरे साथ। ये सब की परवा किये बिना मैंने उससे पूछने की कोशिश की के तुमने उसकी सैंडविच क्यों चुराई थी। .....मगर मेरे मुँह से आवाज़ नहीं निकल रहे थे , जबरदस्ती कोशिश करने पे थोड़ी सी आवाज़ निकली तभी सह यात्री ने जगाया की क्या हुवा क्या बोल रहे हो और तब मुझे लगा की मैं सपने में था। उसके तरफ देखा तो वो भी सो रहा था। जान में जान आई पानी पिया और फिर चुप चाप बैठ गया।

मैं सोचने लगा आखिर इस सपने का क्या मतलब था की, मैंने उसका मुँह नोचने का सोचा तो मेरे हाथ ही गायब हो गए ? उससे कुछ पूछना चाहा तो आवाज़ बंद हो गयी !!

क्या मुझे ये सिख दी जा रही रही थी के किसी के निजता पे उससे नफरत न करो ?

Saturday, 28 October 2017

अंतरिक्ष यात्री की डायरी !!

तैयारियां बहुत जोड़ों पे थीं। मैं भी बहुत खुश था बार बार घडी देख रहा था।  शाम हुई फिर रात हुई और फिर सुबह। जल्दी जल्दी तैयार हो कर गाड़ी से एयरपोर्ट की तरफ जा रहा था, मैं।  ये सब कुछ इतना जल्दी हुवा था की कुछ समझ नहीं आरहा था। अगले दिन दोपहर को मैं अमेरिका के नासा स्पेस सेंटर पे था जहाँ से मुझे मेडिकल टेस्ट के बाद अंतरिक्ष में जाना था।

अमिन अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहा था की  वो दिन भी आ गया जब मैं अंतरिक्ष की उड़ान भरने को तैयार हूँ । असल में ये कहानी तब शुरू हुई थी जब नासा को एक आदमी की तलाश थी, ऐसे गृह पे भेजने की जहाँ वैज्ञानिक या कोई भी  मनुष्ये को भेजने की अनुमति नहीं है अर्थात अभी तक वहां केवल जानवरों की ही भेजा गया है। तब नासा ऐसे इंसान को ढूंढ रहा था जो अंतरिक्ष की थोड़ी बहुत समझ रखते हों और अंतरिक्ष की सैर उनका शौक हो। ताकी वो इंसान अपने शौक़ के लिए वो सब करने को तैयार हो जाये जो नासा चाहता था। उन्होंने मुझे ऑनलाइन ढूंढा था, मेरे कुछ ब्लॉग जो की मैंने नासा के लिए और स्पेस के लिए लिखे थे वो उन्हें पसंद आये थे और उनको शायद लगा था की ये बन्दा मेरे काम का है। मुझसे उनलोगों ने इ-मेल से संपर्क किया था। और उसके बाद वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग तथा कई मुलाक़ात और उसके बाद नॉन डिस्क्लोज़र डॉक्यूमेंट हस्ताक्षर कराये गए। ये करार कराया गया था की मैं ये बात अपने घरवाले को भी नहीं बताऊंगा। उन्होंने मेर विसा भी किसी और काम के लिए दिलवाया था ताके किसी को कोई शक न हो। बहुत टेक्निकल ट्रेनिंग और कई दूसरी प्रक्रिया के गुजरने के बाद मुझे इसके लिए तैयार किया गया था।

स्पेस शिप के उरते ही एक सकून सा मिला और उत्साह ख़तम होकर  अनुभव शुरू होगया था। 40300 मील प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ता यान शायद जमीन से लोगों को कुछ अजीब दीखता रहा होगा मगर यकीन मानिये अंदर में ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी कमरे में बैठा हूँ। यान उड़ता ही गया और उड़ते उड़ते न जाने कहाँ पहुँच गया यहाँ तक के स्पेस सेंटर से मेरा संपर्क टूट गया और और चेतावनी संकेत अंकित हो गए। मैं बहुत परेशान हो गया। यात्रा में बिताये समय के अनुसार शायद मैं पृथ्वी से बहुत दूर पहुँच  चुका था जहाँ के बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।  कुछ समझ नहीं आरहा था की अचानक यान में जोर जोर से आवाज़ें होने लगीं थी। इससे पहले की मैं कुछ समझ पाता, यान दो टुकड़ों में बंट चूका था, इंजन बंद होने और
गुरुत्वाकर्षण न होने के कारण मैं टूटे हुवे यान के टुकड़े के साथ हवा में झूल रहा था। थोड़ी मेहनत करके मैं बहार की तरफ आया और हवा में पाओं हाथ चलाते हुवे इधर उधर जाने लगा। मेरे स्पेस सूट की वजह से ये सब मुमकिन हो पा रहा था। तभी मुझे निचे की ओर बहुत दूर  कुछ पृथ्वी जैसी चीज़ दिखी। मैं बिन सोचे समझे उस  ओर जाने लगा, कुछ घंटो बाद मुझे ऐसा एहसास हुवा की मैं किसी अनजान शक्ति की तरफ खींचा जा रहा हूँ तब मैंने अपना हाथ पाओं चलाना छोरदिया था। देखते ही देखते मुझे अंदर से कुछ शक्ति भी महसूस होने लगी ऐसा लगने लगा जैसे  मैंने कोई एनर्जी ड्रिंक ले लिया हो।
धीरे धीरे मैं एक सतह पे उतरा जो की बहुत खूबसूरत दिख रहा था।  मगर ये क्या ? वहां चीज़ों के रंग बिलकुल अलग थे ! यहाँ पृथ्वी की तरह लाल सफेद या हरा नहीं बल्कि कुछ अलग  रंग था। वैसे रंग  मैंने कभी नहीं देखे थे। और तब  मुझे समझते देर न लगी के मैं किसी और गृह पे आगया हूँ।  जहाँ ऊर्जा का श्रोत सूर्ये नहीं है और इस गृह के सूर्ये की रौशनी कुछ अलग है।  चूँकि अपने धरती पे हम सूर्ये की रौशनी के संयोजन की वजह से ये सब रंग देख पाते हैं और अगर संयोजन अलग हो तो शायद रंग अलग दिखेगा, इसलिए धरती के रंग वहां नहीं थे उनके सूर्ये के रौशनी का संयोजन शायद अलग था।

मैं चलता ही जा रहा था और कोई थकान भी नहीं हो रही थी, ये शायद वहां के वातावरण की वजह से हो पा रहा था।  तभी मुझे वहां एक मनुष्य जैसा प्राणी दिखा, जिनके शरीर पे कोई कपड़ा नहीं था। मैं उन्हें देख डर गया था। और एक पथ्तर के पीछे छुप गया, उन्हें गौर से देखने लगा मगर कुछ खास हरकत नहीं हो रही थी। शायद उन लोगों में चेतना की कमी थी या शायद चेतना थी ही नहीं। मैं काफी देर तक उन्हें देखता रहा मगर कुछ पता न चला, शायद उन लोगों को खाने पिने की जरुरत भी महसूस नहीं होती रही होगी क्यूंकि मैं खुद भी वहां भूख प्यास महसूस नहीं कर पा रहा था। मगर सब कुछ शांत शांत था। मुझे लगा मुझे सूट उतार देना चाहिए और मैं इसके लिए बहार का प्रेशर चेक किया जो की सामन्य था पृथ्वी से थोड़ा ज्यादा। फिर मैंने अपना सूट उतार दिया। सूट उतरने के बाद शरीर में बदलाव सा महसूस होने लगा और खुले हुवे तव्चा में एक चमक सी आगयी, तब मुझे समझते देर न लगी की यहाँ के लोग नगण्य क्यों थे। उन्हें किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं था। न कहने की फ़िक्र न सोने की फ़िक्र और शायद ना ही मरने चिंता। वहां सब लोग जवान से दीखते थे। सबका जिस्म एक जैसा ही था। कोई स्त्री या पुरुष जैसा अंतर नहीं दिख रहा था। शायद उनके यहाँ प्रजनन का कोई मामला नहीं बनता होगा और एक बार ज़िन्दगी दे कर उन्हें अमर करदिया गया होगा। क्यूंकि सूर्ये से सम्पर्क में आकर मेरे तव्चा में भी बदलाव आये थे और भूख प्यास भी ख़तम हो गयी थी तथा ताक़त बे बेहिसाब सा महसूस हो रहा था।

अभी मैं पथ्थर के पीछे छुप के ये सब सोच ही रहा था की मुझे लगा की किसीne मेरे सर पे डंडा मारा हो। और तब मेरी आँख खुल गयी थी और एहसास हुवा की मैं बिस्तर पे लेटा हूँ और रात के क़रीब डेढ़ बज रहे हैं।

Thursday, 14 September 2017

हिंदी दिवस

हिंदी दिवस की आप सभों को शुभकामनाएँ।  मगर अब शायद ये दिवस केवल एक दिवस ही रह गया है। क्यूंकि हिंदी बोलने तथा लिखने वाले को कमतर समझा जाता है। आज़ादी के बाद हिंदी भाषा में क्या कुछ विकास हुवा है इसका आंकलन कीजिये। किसी भी संस्कृति का मरजाना इतना ही काफी है कि लोग अपने भाषा से ही प्रेम खो बैठते है। जहाँ एक तरफ लोग देशभक्ति की गुन गान करते हैं वहीँ दूसरी तरफ हिंदी बोलने तथा लिखने में संकोच करते हैं। आज हमारी हालत ये हो गयी है की न हम इंग्लिश में बेहतर हैं और न हीं हिंदी में।

पिछले साल मेरी मुलाक़ात एक इंडियन मूल के मलेशियन नागरिक से हुई थी।  उन्होंने बताय की ये मिश्रण के चक्कर में मेरे बच्चे की ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी शुरू शुरू में हमने उसे इंग्लिश स्कूल में भेजा बाद में उसे चाइनीज स्कूल में भेजा मगर हालत ये है की आज न वो चाइनीज ठीक से जानते हैं और न ही इंग्लिश। ये सिर्फ इसलिए हुआ क्यूंकि हमने बच्चो से उनकी रूचि जानने के बजाए अपनी रूचि उनपे थोप दी।

हम बाजार में दूसरे लोगों के  हिंदी उच्चारण का मजाक उड़ाते फिरते हैं। मगर घरमे बच्चे को इंलिश माध्यम की किताब थमाए हुवे होते हैं। किसी भी भाषा के बिगड़ने या लुप्त होने में भाषा के जानकारों का बड़ा हाथ होता है। क्यूंकि वो ही सबसे पहले अपने आपको कम तर आंकने लगते हैं और इसके विकास जरुरत नहीं समझते। हम सब शिक्षा को सिर्फ पैसा कमाने का औज़ार समझते हैं।

आज जहाँ जयादार तर विद्यार्थी को अपना विषय चुनने का अधिकार नहीं है ऐसे में आप उन विद्यार्थी से क्या उम्मीद करना चाहते हैं।  दूसरी क्लास से ही उसे बताया जाता है की तुम विज्ञान पढ़ो तुम्हे इसमें बहुत संवृद्धि मिलेगी और तुम्हे तो अभियंता बनना है, हम यहीं चूक जाते हैं और अपने बच्चे को इंसान बनने से पहले उसे अभियंता बना देते हैं। अगर हम उसे  एक इंसान बनने की नसीहत देते तभी तो वो
साहित्य में इंसान की परिभाषा ढूंढता।

मैं भी बस इसी उधेर बुन में हूँ की कोई भाषा सीख जाऊं लेकिन हो नहीं पा रहा है ऐसा।

#हिंदीदिवस 

Thursday, 31 August 2017

दरिद्रता के दोषी

आज कल असलम चाचा ऑफिस नहीं आते हैं।  वो बर्तानिया गए हुवे  हैं २ हफ्ते की छुट्टी पे, अपने बेटी  और नवासे से मिलने के लिए । उनकी याद आयी तो मैंने उनको कॉल किया, हालाँकि टाइम डिफ्रेंस होने की वजह से बर्तानिया में अभी ठीक से सुबह भी नहीं हुई थी मगर इत्तेफ़ाक़ से असलम चाचा सुबह की नमाज पढ़ने को जगे हुवे थे इसलिए उनसे बात हो गयी। इधर उधर की बात के बाद उन्होंने दाना मांझी के बारे में मुझसे पूछा , कहा याद हैं दाना मांझी या भूल गए ? मैंने कहा ये वही शख्स तो नहीं है जो अपनी  पत्नी की लाश को कंधे पे लेकर १२ किलोमीटर तक पैदल चला था। उन्होंने कहा आपने बिलकुल सही पहचाना है।
क्या कुछ खबर है उनकी ? मैंने कहा नहीं, कहने लगे दाना मांझी के बारे में ताज़ा खबर ये है की अब उनके हालात बिलकुल बदल गए हैं। अकाउंट में 35~37 लाख बैलेंस, तीसरी शादी, पहले घर की तीनो बेटियों की अच्छे से परवरिश  वगैरह वगैरह .... मगर देखिये हमारे समाज की मुर्दागिरि कोई किसी अनजान की मदद नहीं करना चाहता, जब आप मशहूर हो जायेंगे, आपके पीछे कैमरा दौरने लगेगा  तब सब आपकी मदद खूब करने लगेंगे क्यूंकि आपको दुनिया देख रही होती है।
मगर यकीन मानिये इस तरह के केस में जो लोग दिखावे की मदद के लिए आगे आते हैं वहीँ लोग असलियत में इनके दरिद्रता के दोषी हैं।

Wednesday, 23 August 2017

क्या मैं वाक़ई डरपोक हूँ?

आज सुबह जब दफ्तर पहुंचा तो असलम चाचा को देख कर थोड़ा ठिठक सा गया, मुस्कुराते हुवे मजाहिये अंदाज में मैंने उनसे पूछा, क्या  हुवा उदास बैठे हैं, सब ख़ैरियत तो है या फिर आज कोई नया मज़मून मिलेगा मुझे अपने ब्लॉग के लिए।

अगर मेरे अहवाल से आपको ब्लॉग लिखने में मदद मिलती है या इसको आप एक सामग्री की तरह लेते हो तो ये ही सही। मगर मेरे एक कश मकश का उत्तर दीजिये और अपने ब्लॉग के पाठकों से भी उनकी राय पूछिए।  इंसानी ज़िन्दगी में अख़लाक़ का क्या क्या तकाज़ा होना चाहिए ये मैं अभी तक नहीं समझ पाया जबके मेरी आधी से जयादा उम्र गुज़र चुकी है। बार बार वसीम बरेलवी को याद करके दिल को बहलाते हुवे शांत बैठ जाता हूँ की शायर भी इसी असमंजस में हैं। वो कहते हैं की

नए उम्र की ख़ुदमुख़्तारियों को कैसे समझूँ। 
कहाँ बचके निकलना है कहाँ जाना जरुरी है।।

फिर ऐसा कोनसा तराज़ू मेरे पास हो जिससे मैं किसी की अच्छाई और बुराई की तुलना करके उससे अपने आपको दूर या नज़दीक करलूं या महज़ कुछ चीज़ें देखकर उससे नफरत करने करने लगूँ। लेकिन मैं किसी से नफरत क्यों करूँ । मैं किसी को पसंद नहीं करता ये एक अलग बात हो सकती है मगर किसी से नफरत करूँ ??
इंसानी ज़िन्दगी में अख़लाक़ का तकाज़ा मेरे लिए बचपन से ही एक अलग विषेय रहा है और ये हमेशा से अनसुलझा रहा है। मैं बचपन में अपने एक दोस्त के साथ रात में तहज्जुद की नमाज पढ़ने के लिए उठता था। ये सिलसिला ज्यादा दिन तक न चला मगर तब बहुत जोश आया था।  जब हमारे उस्ताद ने "सवाउत्तरीक़- मजमुआ ऐ  हदीस, उर्दू तर्ज़ुमा  " पढ़ाते हुवे बताया की अगर अल्लाह को खुश करना चाहते हो तो रात के अँधेरे में अपने पीठ को बिस्तर से अलग करलिया करो और ठीक उसी तरह उसकी दर पे पहुँचो जैसे उस्ताद को अकेला देख चुपके से उनके पास पहुंच कर अपनी जान पहचान बढ़ाने की कोशिश करने लगते हो या अपने मतलब की कुछ खास बात करते हो। और कहा
 "ये जहाँ क्या चीज़ है लुह औ क़लम तेरे हैं " 

उस वक्त में आवासीय विद्यालय में रहता था इसलिए हमारे ऊपर कोई खास रोक टोक नहीं था प्रभारी साहब भी उस वक्त गहरी नींद में ही होते थे।  हम दोनों बहुत ही गहरे दोस्त थे हर चीज़ एक दसूरे को बताते थे। जबकि उस बचपने में हमें ये मालूम नहीं था की दोस्ती क्या चीज़ है मगर दोस्ती  की घनिष्टता  शायद पूरी तरह से प्राकृतिक इसलिए थी क्यूंकि जब तक मिलावट समझने की समझ नहीं थी। एक रात हम दोनों नमाज के बाद एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा दिए फिर हम दोनो ने एक दूसरे से पूछा की तुमने दुआ में क्या माँगा। मैंने कहा पहले तू बता, उसने कहा यार सच बताऊं तो मुझे यहाँ मन नहीं लगता, मैं दुआ करता हूँ की कुछ ऐसा हो जाये की मैं अपने अम्मी के साथ रह सकूँ। फिर उसने पूछा तूने क्या माँगा। ......मैं थोड़ी देर चुप रहा, फिर ठंडी सी साँस लेते हुवे कहा की मैं यहाँ बहुत खुश हूँ मुझे बहुत मजा आता है। क्यूंकि यहाँ कोई किसी को नहीं जानता सब सिर्फ और सिर्फ अपनी प्रतिभा से जाने जाते हैं। हाँ, मगर दुआ में क्या मांगता है ये तो बता। ... मैं दुआ में सिर्फ, लोगों के दिलमे अपने लिए और अपने दिलमे लोगों के मुहब्बत मांगता हूँ। क्यूंकि तू देखता है न मेरी किसी लड़ाई होती है तो मुझे कितना टेंशन हो जाता है , इसलिए अल्लाह से कहता हूँ की न मैं किसी से नफरत करूँ और न कोई मुझसे। लड़ाई झगड़ा मुझे पसंद नहीं , क्यूंकि मैं गुस्से में कुछ ज्यादा ही तल्ख़ बोलदेता हूँ और उससे सिर्फ टेंशन बढ़ता है और बढ़ता ही जाता है। उसने जोरसे क़हक़हा लगाया और कहा, ये तो तेरे डरपोक होने की अलामत दिखती है मुझे।

तबसे लेकर आजतक मैं सिर्फ यही सोचता हूँ के क्या मैं वाक़ई डरपोक हूँ?

लोगों से नफरत व गुस्से का इज़हार कर इंसान को सकूँ का एहसास होता है मगर ये नफ़्स की कोनसी खूबियों में से है जो किसी का दिल तोड़कर किसी को जलील कर हमें सकूँ मिलता हैं।

Wednesday, 16 August 2017

A Pilot

You would have been attracted in your childhood with the glamorous look and confident face of the pilot, well dressed, and a rolling trolly behind. In today's world, people are easily hypnotized for shining things instead, they don’t know the fact behind that.

I met a pilot who has more than 10000-hours flying experience, his elaboration for the work was totally different from our predictions. Who knows our sacrifice? There is nothing called a royal job! The job is a job that’s it. You guys think we must be enjoying in the air, flying across the nation and around the world; romancing with the air hostess at 35000 feet, but you are wrong!

If you remember the childhood when we used to go to school, we were impressed with the job of the conductor. Some of my friend along with me were attracted with the commanding and sincerity of school bus conductor. We grew up joined the high school and then university, ours wishes changed as frequent as the change of surround environment.

There is no limit of working hours, we suffer some kind of special disease for improper sleep. We read in the books, nights are made for rest and sleep but a pilot can’t. You can enjoy one night two night and a week maximum but after that, you will hate it to be a pilot.  Zero error and full attention will make you tired in three hours than eight hours of normal work.

I have to go for evening return flight for Istanbul, in last one thing which I want you to listen is, don’t run behind the shine but you must bring it in. 

Tuesday, 15 August 2017

बीवी और मुशायरा

एक साहब से उनकी बीवी ने उन्हें मुशायरे में जाने से रोकते हुवे पूछा । कहाँ जा रहे हो ग़ज़ल सुनने ! क्या सुनोगे ? औरत की बड़ाई ! तुम मर्द जब ग़ज़ल कह रहे होते हो तो समझ नहीं आता है की बड़ाई कर रहे होते हो या मजाक। एक एक अंग की ऐसे बखान करते हो जैसे तुमने जमीन पे औरत को देखने के लिए ही जन्म लिया था। 
वहाँ बैठे ९० फीसदी लोग शादी शुदा होते है। ग़ज़ल सबको सुन्ना अच्छा लगता है। और उन्ही में से कोई एक आकर बीवी पे चुटकुला कहता है। जिससे ऐसा महसूस होने लगता है की तुम्हारी शादी शुदा ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं एक क़ैद है। फिर वो बड़ाई किस औरत के लिए सुनते हो पराई औरत के लिए ही ना ! अपनी बीवी तो अच्छी ही नहीं लगती है, उसमे भी कभी ग़ज़ल देखो !!
साहब थोड़ा झिंझला गए कहने लगे चुप करो। किसी भी विसय पे लेक्चर देने लगती हो। चुप होती हुई बीवी फिरसे तैश में आगयी बोली ये कोई भी विसय नहीं ये मेरा ही विसय है। और क्या समझते हो वो शायर जो तुम्हे औरतो की बखान सुनाता वो जरब उल मिशाल हैं क्या ? उनमे से एक आध ही ऐसे होते हैं जो अपने असल ज़िन्दगी में भी रोमांटिक होते हैं नहीं तो बाक़ी सब ऐसे ही हैं तुम सब ग़ज़ल सुनने वालो की तरह बस तफरीह करते हैं । अरे उन्होंने नब्ज़ पकड़ रख्खी है समाज के कुछ छुपे रुस्तमों का। ........ बस भी करो अब, नहीं जा रहा मैं कहीं  

Thursday, 10 August 2017

दुनिया चाहे कुछ भी समझे मैंने तो बिंदास लिखा है !!

अपने मन की बात किया है शब्द नहीं एहसास लिखा है
जिनको जाना है वो जाएं हमको तो बनवास लिखा है !!

क्या करने हैं कोठी महले क़िस्मत में सन्यास लिखा है
दुनिया चाहे कुछ भी समझे मैंने तो बिंदास लिखा है !!

Monday, 7 August 2017

हमारे पास भी है आईना दिखाएं क्या


बिछड़ के क्या है  गुजरी तुझे बताएं क्या
दिल की  तरह हमभी टूट जाएं क्या

तंज करते हो मेरे अहवाल ऐ ज़िन्दगी पे
हमारे पास भी है आईना दिखाएं क्या

करके चुगली हमेशा खुश हुवे तुम
हमभी रखते हैं  ये हुनर बताएं क्या

پرانی یادیں

کل بیٹھے بیٹھے جی مے آیا کی ایک پرانے دوست سے مل آؤں بس  جمہ کی  نماز کے بعد  سیدھا انکے گھر گیا مگر وہ گھر پہ موجود نہی تھے  دریافت کرنے پہ معلوم ہوا کے صاحب اگلے ہفتے وطن اے عزیز کو جا رہیں ہیں اسلیے کچھ خریداری کے  لئے بازار گئے ہیں میں وہیں بیٹھ کر انکا انتظار کرنے لگا  . تھوڑی  دیر باد صاحب بازار  سے واپس آگے  ہم دونو مے بات چیت ہونے لگی  تبھی میری نظر انکے داڑھی پرگئی جو بالکل چھوٹی ہو گی تھی اور نیا رنگ بھی چڑھا ہوا تھا . میں اپنی مسکراہٹ  روک نہ پایا . دوست تھودا شرمندہ سا محسوس کرنے لگا کہنے لگا ,مینے چھوٹا کرنے کو نہ کہا تھا بد بخت نے اسے کچھ  زیادہ ہی چھوٹا کردیا . مینے کہا کوئی بات نہی اکثر ایسا ہو جاتا ہے . پھر کہنے لگا اسپے نَیے رنگ کا کوئی مطلب نہ نکالنا  دوست یہ صرف کچھ ذاتی خیالات کا نتیجہ ہے کے مینے اپنے داڑھی کو رنگوا لیا ہے نہیں تو  مجھے کوئی  خاص شوق نہی ہے نوجوان بننے کا.   نوجوانی کیا ہے کیا ہے, خوبصورتی کیا ہے ,کون سی  ایسی آنکھ  ہے جو نہی بہہ جاییگی ایک دن وو کونسی یجوانی  ہے جو باقی رہیگی یا وہ کونسا انسان ہے جو مٹی  مے نہ ملیگا مگر دنیا بھی ایک الگ شہ ہے سب کچھ جانتے ہوےبھی دکھاوا کرنا پڑتا ہے اپنے لئے نہ سہی تو کمسے کم بچوں کے لئے یا اپنے شریک حیات کے  لئے .میں  اپنی ہنسی روک نہ پایا اور پھر ہم دونو چائے پینے باہر چلے گئے
                                                                                                                                                               
میں سوچنے لگا کے ایسی بھی کیا مجبوری ہے کی بیگم کے پاسس بن کالا کے نہی جا سکتے . پھر خیال آیا کے چلو اسے یہ پتا چلتا ہے کہ بندا شریف ہے تبھی بیوی کو اتنی  اہمیت دے رہا  ہے . یا پھر اکثر لوگ اپنی  کمزوری کو چھپانے کے لئے اوپر سہ کچھ الگ لبادہ اوڑھ لیتے ہے ، یا پھر وطن اے عزیز  مے اپنے پرانے عزیزوں کا خیال کچھ تبدیلیاں لانے کو مجبور کردیتا ہے. آپ چاہے عمر کے کسی بھی پراو پہ پہنچ جاییں لیکن جوانی کی یادیں بھی کوئی چیز  ہوتی ہے  اور ان یادوں مے کھو کر انسان جوان ہونے کی ناکام کوشش کرتا رہتا ہے 
 بھرحال صورت یہ تھی کی میرا دوست بہت ہی زیادہ خوش تھا . باربار اپنے چھوٹی بیٹی کا ذکر کر رہا تھا اور بتاے جا رہا تھا کہ وہ  کیسے کیسے شرارت کرتی ہے  اور اسکے لئے اسنے  کیا  کیا لیا ہے وغیرہ  وغیرہ.... تبھی انکے فون کی گھنٹی بجی انہونے  مارے خوشی کے فون اسپیکر پی رکھ کے بات کرنے کی کوشش  کی تبھی ادھر سے آواز آی "اسبار اس چڑیل کے گھر تو نہی جاؤگے " .......... دوست نے کہا بیگم آپ فکر نہ کریں میں کی سالوں سے مسلّط آپکا ہی ہوں ، نہی مجھے کوئی فکر نہی ہے بس اگر اس بار ایسی کچھ بھنک بھی  لگی تو اپنے بچچوں کو اپنے ساتھ لیجانا ........فون کاٹ کر ھم  دونو زور زور سے ہنسے لگے . یہ میرے  بچپن کا دوست ہے اور ہم  دودنو  ایک دوسرے کے سارے کہانیوں سے واقف ہیں .                                                                                     

Tuesday, 1 August 2017

अधेड़ उम्र के सपने -1

बन्दर बूढ़ा हो जाये मगर पेड़ पे चढ़ना नहीं भूलता।  ये वो कहावत है जिसको लोग अक्सर उपयोग करते हैं ये साबित करने के लिए की भले ही उनकी उम्र ढल गयी हो मगर जोश अब भी बाक़ी है। हालाँकि जो बात मैं कहने जा रहा हूँ उसमे जोश का नहीं मगर दिल का ज़िंदा होना ज्यादा मायने रखता है।  एक ४५ साल के युवक का अचानक से दिल फिर जाता है और अपने लड़कपन के दिनों में प्रवेश कर जाता है। वैसे तो आशिकी उसने कॉलेज के जमाने में ही छोड़ दी  थी। एक बेहद सूफियाना ज़िन्दगी में प्रवेश कर जाने के २ दशक बाद इनका दिल फिरसे धड़कने लगा था। ये दिल भी पता नहीं आदमी को कब कहा और कैसे जलील कर देता है। शायद दिल के ऊपर  समय का जोर नहीं चलता या वहां कोई घडी नहीं जो ये बता सके की शरीर कमजोर हो चूका है।
बात वदूद चाचा की है। बेचारे शरीर से चौरे कद में नाटे, मझोली साइज की दाढ़ी, आँखों पे चश्मा और सर पे छोटे छोटे बाल। जब अरबिक गाउन में होते हैं सिर्फ उनकी लम्बाई ही उनके आरे आती है नहीं तो शायद वो अरब ही दीखते। इन्हे कुछ दिनों से बहकी बहकी बात करते हुवे देखता हूँ। कहते हैं एक लड़की से मुझे इश्क़ सा होने लगा है।  वैसे इश्क़ हुवा है या नहीं ये उन्हें भी कन्फर्म नहीं है। उसकी बातें करते रहना आँख बंद होते ही उसका चेहरा दिखने लगना दिन भर मोबाइल का टी टी करना जैसे सब आम बात हो गयी है। ये इश्क़ भी अजीब शए हैं। चाहे जिस उम्र में इसकी धमक हो जोश एक सा ही होता है। कहते हैं की चाचा अपने जवानी के दिनों में बहुत आशिक़ मिजाज़ हुवा करते थे।  हर कोई को यही शक था की  ये किनी शादियां करेंगे इसका कोई पता नहीं। मगर जब चाचा अपने पहले शादी के बाद सादा ज़िन्दगी गुजरने लगे थे तो लोगों को इनके जवानी के दिनों की बातों को भूल जाना ही बेहतर समझा था। मगर कौन समझाए उनलोगों को की "बन्दर बूढ़ा हो जाये मगर पेड़ पे चढ़ने की कला कभी  नहीं भूलता"।

चाचा के महबूबा की उम्र यही कोई २२ साल होगी।  वो दफ्तर में इनकी सहायक है। अभी अभी वो  कॉलेज से पढ़के आयी है। उनका नाम गुरलीन कौर है।  वो एक पंजाबन लड़की है।  रंग गेहुआँ, शरबती आंखें, शहद से लबरेज़ जुबान, क़द यही कोई ५ फुट २ इंच।  लेडी फिंगर का नाम शायद इनकी अँगुलियों की वजह से ही पड़ा होगा। लम्बी लम्बी पतली पतली हाथ की उंगुलियों में जैसे कुदरत ने खास नक़्क़ाशी की हुई हो। वदूद चाचा कहते हैं की क़ुदरत जब किसी को हुस्न देता है तो इब्तदा और इन्तहा नहीं देखता।

तब मेरा दफ्तर में दूसरा दिन था। एक ५० साल का इंसान एक २२ साल के लड़की के साथ मेरे रूम में प्रवेश करता है और कहता है वदूद जी ये रहा आपका संसाधन अब आपने इनके साथ मिलकर प्रोजेक्ट को अंजाम तक पहुँचाना है। मैं तो मोहतरमा को देखते ही कैंप उठा था।  दिल ही दिल सोचने लगा  कहीं ये मोहतरमा ही न मेरे लिए एक प्रोजेक्ट बनजाये। क्यूंकि उन्हें देखते ही पता नहीं मुझे क्या होगया था। मानो कॉलेज के दिनों का लड़कपन एक दम से जाग उठा हो।  कह रहा हो अभी कहाँ जी तुमने  जिंदगी जो थके से थके से महसूस करने लगे हो। उठो और जी लो अपनी असल ज़िन्दगी, दिल से  निकलने वालो हर खून के कतरे ने जैसे पुरे जिस्म के जर्र्रे को दिल की चाहत बता दी हो। मैं एक दम भक्क सा हो गया था। और शेख चिल्ली के सपने की तरह भविष्य में अठखेलियां खाने लगा था।

तभी कानो में एक सुरीली आवाज़ गुंजी गुड आफ्टर नून सर।  मैं तो चौंक सा गया था तभी महाशय ने पूछा वदूद जी  आप ठीक तो हैं न ? क्या कहता, बोल्दिया थोड़ा परेशान सा हूँ।  हाज़मा का थोड़ा प्रॉब्लम चल रहा है बेवक्त गैस ने परेशान कर रख्खा है। फिर थोड़ी गुफ्तगू के बाद महाशय चले गए और कह गए की ये लड़की है नयी नयी आई है शहर में आपके घर के करीब ही रहती है हो सके तो फिलहाल के लिए इसे अपने साथ ले जाया करें।  मैंने कहा बिलकुल, मैं अपने कनिष्ठों का बहुत ख्याल रखता हूँ और इनका भी रखूँगा। आप फ़िक्र न करें।

मोहतरमा कौर को उनका सीट बता कर मैं अपने केबिन में वापिस आगया। मगर मुझसे मेरा चैन छीन गया था अपने केबिन के पारदर्शी परदे से उसे एक टक देखता ही रहा जब तक के मेरे फ़ोन पे एक हरकत न हुई। बात करने के बाद फ़ोन रख्खा और फिर वही टक टकी, मगर इसबार इससे पहले की  कुछ समझ पता की मेरा हाथ टेबल पे पड़े कॉल बेल पे चला गया और एक दम से मेरा चपरासी अंदर आया और पूछा, क्या लाऊँ सर?

मेरे मुँह से बेसाख्ता निकल गया वो नयी वाली लड़की ......... यानि उस नयी वाली लड़की को बुलाओ। उनके अंदर आते ही जैसे मेरे कमरे में रात रानी फूल की खुसबू फ़ैल गयी थी और जैसे आँखें कह रहीं थीं हैं हिम्मत तो डूब कर गहराई मालूम करलो। श्रीमती कौर से मैं बातें करने लगा बहुत साडी बातें होने लगी क्या क्या बात हुई ये मुझे भी याद नहीं क्युकी वो आवाज़ सिर्फ मेरे लबो से निकल रही थी मगर मेरा दिल मुझसे कुछ और ही बात कर रहा था। .............. यकीन मानिये ये वो बात नहीं है जो आप समझ रहें हैं मगर जो लोग सच्चा प्यार करते हैं वो जानते हैं की ऐसे मौके पे दिल क्या बात करता है।  शाम हो गयी और मैं घर जाने लगा था बैग उठाया ही था की वो सामने आगयी।  मैं भी चलूँ क्या सर ? ठीक है आजाओ। यकीन मानिये आज तक मैंने अपने गाड़ी के आगे वाले सीट पे  किसी लेडी को नहीं बैठाया था। सिवाए अपने मोहतरमा के जो के कभी कभी ही बैठती थी। मगर उनको बैठे भी अरसा होगया हैं।  अब हम दोनों साथ नहीं रहते उनकी सेहत ठीक नहीं है इसलिए वो पिछले तीन सालों से अपने मायके में रहतीं हैं।
उनके आकर बैठते ही गाड़ी के अंदर एक खुसबू सी फ़ैल गयी। "सेंट ऑफ़ वीमेन" नाम की एक चलचित्र की याद आगयी जिसमे चलचित्र का नायक अँधा होता है मगर वो औरतों के सेंट की महक उस सेंट का ब्रांड बता देता था।

 उसने अपना गोगल/ धुप चश्मा  निकला और अपने शरबती आँखों को पर्दा देदिया। मिस कौर क्या आपको रास्ता मालूम है। जी हाँ सर आप आगे से राइट लेकर सीधा चलें फिर बत्ती से लेफ्ट लेकर नेक्स्ट बत्ती से भी लेफ्ट और सीधा और फिर उलटे हाथ से  ......... बस बस अब थोड़ा धीरे बोलिये इस उम्र में समझने की सलाहियत थोड़ी कम हो जाती है।  क्या सर ? आपकी उम्र उतनी भी नहीं के आप उम्र दुहाई दे रहें हैं। क्या उम्र होगी आपकी अगर दाढ़ी न हो और थोड़ा पेट अंदर हो जाये तो आप अब भी स्टूडेंट लगेंगे। मैंने कहा कोनसे स्टूडेंट प्राइमरी स्कूल के या मिडिल स्कूल के ??..............   चुप्पी  छा गयी , मैंने बात को जारी रखने के लिए आगे मुँह खोला। अब ये मत कहना की हाफ पैंट पहन लूँ तो प्राइमरी का और फुल पेंट में मिडिल का !
हलकी हंसी के साथ जोरदार कहकहे फुट गए, तब मैंने पहली बार उसे हँसते हुवे देखा था। ठीक इंद्रधनुष की तरह चेहरा सतरंगी सा हो गया था। गालो का बाहर की तरफ उभर आना और ठुड्ढी पे एक तोदरता का निशान मानो मैंने दुनिया का सातवा अजूबा देख लिया था।  और कहकहे की आवाज़ जैसे मानो दो पहाड़ो से निकलने वाले झरने के कहकहे हों।
उसे छोड़ने के बाद गाना गाता हुवा मैं घर आगया।  ये गाना कोई फ़िल्मी गाना नहीं था मगर मेरे अपने अंदाज़ हैं जो सिर्फ कुछ लोगों को मालूम हैं।.........................................................आगे की कहानी दूसरे भाग में पढ़िए।




Saturday, 29 July 2017

मोह दुनिया की भुला पाओ तो कोई बात बने।।

खा के चोट जो सब्र कर पाओ तो कोई बात बने
रुस्वा हो के भी पैमाना न छलकाओ तो कोई बात बने।।

ये मुकद्दर था मेरा जो कभी मैं तुमने मिला था
मिलके सदा साथ रह पाओ तो कोई बात बने।

गैरों में उलझ के कितने बदल जाते हैं लोग
उलझ के फिर संभल पाओ तो कोई बात बने।।

मालिक ऐ हक़ से है मेरा इश्क़ मेरे दोस्त
गर मालिक से दिल लगा पाओ तो कोई बात बने।।

शर्फू मेरे दोस्त तू चल कहीं दूर वीराने में
मोह दुनिया की भुला पाओ तो कोई बात बने।। 

Tuesday, 25 July 2017

एन. आर. आई. डायरी -3

दफ्तर पहुँचते ही मेरी नज़र असलम चाचा पे पड़ी। उन्हें देख कर मैं थोड़ा ठिठक सा गया। असलम चाचा आज हर रोज़ की तरह ऊर्जा वान नहीं लग रहे थे। चेहरे पे एक उदासी थी। मैंने पूछ सब ठीक तो है न।  चाचा ने कहाँ हां सब ठीक है।  मगर मुझे इत्मीनान नहीं हुवा मैंने पुरे दिन उनसे पूछने की कोशिश की मगर कोई बात निकल कर सामने नहीं आयी और पूरा दिन निकल गया। उनका चेहरा  और उनकी उदासी मुझे बहुत खटकती रही फिर अगले दिन वही माजरा रहा।  मगर आज मैंने  ठान लिया था जो हो आज उनके मुँह से बात निकलवा के ही रहूँगा।  उनको लंच के लिए बाहर ले गया।  बहुत तरह की बात हुई फिर वो बातों बातों में भावुक हो गए और अपने उदासी की वजह बताने लगे।
असलम चाचा पिछले 24 वर्षो से विदेश में हैं। अपनी शादी के 2 साल बाद उन्होंने घर छोरदिया था। जब उनका लड़का केवल 3 महीने का था। आज वो क़रीब 23 साल का है।
इसने मुझे 9 साल के उम्र से ही परेशान करना शुरू करदिया था। जब ये स्कूल में पढता था तभी से इसकी ऐसी ही शरारत है।  इसने अपने क्लास को दो भागों में बाँट रख्खा था।  और हमेशा से ही गैंग वॉर जैसा माहोल में रहता था। एक दूसरे गैंग के लोग जहाँ  मिलते एक दूसरे की मार पिटाई शुरू करदेते। अगर आमने सामने हो गए तो आस पास वाले की भी खैर नहीं होती थी। ये बच्चों का गैंग वॉर वहीँ तक सिमित नहीं रहा धीरे धीरे ये दो मोहल्ले के झगड़ा जैसा होगया।  और इसमें मोहल्ले के  बेकसूर लोग पीटने लगे  क्यूंकि कमाने खाने वाले बेचारे गरीब लोग कहाँ इतना तैयार होकर निकलते हैं की वो किसी का सामना कर सकें।
 कल मेरे पत्नी  के साथ जब मेरा बेटा जा रहा था तो गैंग के कुछ लोग मिल गए और उन्होंने कुटाई शुरू करदी।  बचाने की कोशिश करती हुई मेरी पत्नी भी जख्मी हो  गयी। सर में काफी चोट है। इस्तिथि तो खतरे से बाहर है।  मगर ये कबतक चलता रहेगा।  इसका कोई अंत है या युहीं जो जहाँ मिलेगा एक दूसरे की इज़्ज़त उतरता रहेगा।  बहुत टूट सा गया हूँ मेहनत करके दो जून की रोटी जुटाता हूँ और बच्चे हैं की समझने को तैयार नहीं हैं।  क्या उन बच्चों को भी सम्झाने वाला नहीं है क्या वो बच्चे भी ऐसे ही बिना अभिभावक के हैं ।
  किसी न किसी को आगे आना होगा। ये सब बंद करना होगा। क्या ज़िन्दगी केवल इन्ही कामो के लिए मिला है। सिर्फ एक दूसरे की इज़्ज़त उतारते हुवे गँवा दे। अगर लड़ना ही है तो जिसकी जिससे दुश्मनी वो आमने सामने बैठके लड़ ले। बेचारे गरीब और निर्दोष को इसमें शामिल करके क्यों किसी की ज़िन्दगी खराब की जाये। एक निर्दोष को जब आप एक बार पिटोगे तो क्या समझते हो शरीफ बना बैठा रहेगा वो भी गैंग की उन्ही लोगों की तरह अपना बदला लेना चाहेगा तरह तरह की की शाजिश में शामिल होगा और इस तरह से एक शरीफ और निर्दोष भी एक क्रूर व्यक्ति  बन जायेगा। मगर कौन आगे आएगा इन सब में मध्यस्ता कराने को ?
शायद अभी और ज़िल्लत बाक़ी तभी अल्लाह किसी को अकाल देगा या कोई फरिश्ता आकर इनके लिए दुआ करेगा। 

Tuesday, 18 July 2017

एन. आर. आई डायरी -2 (18.07.2017)

नहीं नहीं भाई ऐसा न बोलो। ये सब बात बिलकुल गलत है।  क्या भला कोई अपने भाई को गली दे सकता है क्या। तू तो मेरे भाई जैसा है। इतनी सफाई देते देते ही हाथों में डंडा लिए कई लोग वहां आगये और मेरी धुलाई करदी। अब जरा बताओ मेरी क्या गलती थी।
बात इतनी सी थी के ३ सालो बाद जब मैं अपने गांव गया था तो कुछ लोगों  ने बताया की फ्ला आदमी मेरे ग़ायबाने में मेरे पिता  श्री को उल्टा सीधा बोलते तथा परेशान करते  है। बस इतने पे मेरा खून खोल उठा और मैंने भी चुनौती  भरे स्वर में दो तीन गालियां देदी। देता भी क्यों न एक गोस्त पोस्त का इंसान   हूँ मुझे भी गुस्सा आता है और करदिया था गुस्से का इज़हार मगर मुझे क्या पता की यहाँ बात कुछ और थी। मुझे जो बताया गया था वो बिलकुल भी सच नहीं था असल मक़सद तो ये था की किसी तरह लड़ाई झगड़े में उलझा दिया जाऊ।
कभी कभी आपका सीधापन भी आपके आरे आ जाता है।  ज्यादा अच्छा होना भी आपके खिलाफ जा सकता है। पिछली बार जब मैं घर आया था तब माँ  के लाख कहने पे भी अपने बड़े बाबा के घर चला गया था। सोचा था की दो दिन के लिए आया हूँ क्या लड़ाई झगड़ा करूँ।  उसी का खामयाजा था की इस बार दाँत तुड़वाना पड़ा है।  असल ये लड़ाई इस बात की थी के मैं दो वक्त की रोटी खाने लगा था।  मेरे बच्चे  ईद पे प्रेमचंद के हामिद जैसे नहीं रहे थे। उन्हें भी अपना बचपन जीने का हक़ मिल रहा था।
आखिर कोई किसी की तरक़्क़ी से क्यों जलने लगता है। क्या कोई किसी के हिस्से का लेकर अमीर बन जाता है या किसी के अमीर बनने से कोई गरीब हो जाता है।
मेरी उम्र  ६७ साल है और जब मैं अपना बचपना याद करता हूँ तो सिहम सा जाता जाता हूँ। आज भी कभी बारिश होती है तो उन यादों में खो जाता हूँ जो ५दसक पहले बीत चुके है।
बरसात की अँधेरी रात में बिजली की चमक और पानी की बूंदो से नींद खुल जाती थी तो ये एहसास होता था की  हमारा साया तो सिर्फ आसमान ही है। पिता श्री की कम तनख्वाह और माता श्री के इलाज के जद्दो जहद में इतने पैसे कहाँ बचते थे की घरके छप्पर की मरम्मत कराया जाये। रात भर अलग अलग जगहों पे  बर्तन लगा कर आसमान से गिरते पानी को घरमे फैलने से रोकते रहना परता था।

सरफ़राज़ जी मैं अपनी ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ।  मैं किसी से लड़ना नहीं चाहता।  न ही मैं किसी के बात का कोई मतलब निकलता हूँ।  किसी के तंज को अनसुना करना मेरी आदत सी हो गयी है।
मगर शायद अब और नहीं और और बर्दास्त नहीं हो पा रहा था और इसलिए मैंने गांव छोड़ने का फैसला किया। अब और न पूछिए की ये छोटी सी बात है। ये बात होगी छोटी आपके लिए मगर मेरे लिए मेरे बच्चे सबसे ऊपर हैं। मैं नहीं चाहता था की उनको कोई ताना दें या बे वजह परेशान करें। उन्हें अपना बचपन जीने का पूरा अधिकार है।

अजाईये अब खाना खा लेते हैं बहुत दिनों बाद मिले हैं और ऊपर से सारा वक्त फालतू की बातों में ही ख़तम हो गया।


  

एन. आर. आई डायरी -1 (17.07.2017)

लो भईया आ गए। अब भईया ही बताएंगे। क्या हुवा भाई ! भईया क्या बताएंगे। नहीं ये लोग ये बात कर रहा है  की हवाई जहाज़ पर बैठने के लिए वो ब्लू वाला किताब का होना जरुरी है। नहीं तो ढुक्ने ही नहीं देगा भीतर। उ खाकी वर्दी वाला पुलिस गेट पर रोक लेगा। क्या कहते हैं भैया सही है की नहीं।
हाँ भाई हाँ ई बात सही है। मगर तुम्हारे ई भईया को उ किताब का जरुरत नहीं परता।
मगर कैसे भैया ? उ का है की हमारी पहचान हो गयी है वर्दी वाला से। हर बार आते जाते १००, ५०० का नोट उसको फेंक देते थे अब साला पहचान गया है की हम दुबई रहता हूँ। कहता है हमको भी ले चलो दुबई साला यहाँ दरबानी करते करते बोर हो गया हूँ। अब बताओ न इसको कौन समझाए दुबई जाने के लिए कितना पापड़ बेलना परता है।  जाने में थोड़ा दिक्कत भी होता है भाई। वो साला नंगा करके चैक करता है।  पीछे ऐसे देखता है टोरच जला के जैसे किसी ने पक्की खबर दी हो की बीमारी यहीं है। भाई वो भी कोई जगह है चेक करने की।
तभी लड्डू भाई वहां आगये और कहा कब आये ? ऐसे कहानी से पेट नहीं भरता आये हो, कुछ खर्चा करो तब आएगा मजा कहानी सुनने में। नहीं भाई मैं तो चला बहुत दिनों बाद आया हूँ थोड़ा वक्त बच्चों के साथ बिताऊंगा आपलोगों को पार्टी फिर कभी देदूंगा।
घर पंहुचा तो माँ दरवाजे पे इंतजार कर रही थी , देखते ही बोल परी इतना दिन पर आया है थोड़ा तो घरमे पाऊँ जमा आज ही आया है आज ही गांव के सैर सपाटे शुरू हो गए ? शादी को दो साल हो गये अभी तक घरमे किलकारी नहीं गुजी है। ये सब दुनियादारी छोर तू कल ही जा कर डॉक्टर से मिल। मैं सीधा अंदर चला गया। सोचने लगा ये घरवालों को भी इतनी जल्दी होती है की कोई हद नहीं।
खाना खाया और सोने चला गया। इसी बीच माँ एक बार और आयी और याद दिला गयी की शादी के दो साल हो गए है।
वर्षो के बाद जब इंसान घर जाता है तो ये समझ नहीं आता है की वो क्या करे ? दुश्मनो से दुश्मनी निभाए या दोस्तों के बीच बैठा रहे या घरवाले के ही साथ रहे ? मगर ये उलझन सिर्फ पंद्रह दिन चलती है उसके बाद समझ आजाता है की क्या करना है।  क्यूंकि १५ दिन में ही आपके निकट रह रहे लोगों का असली चेहरा सामने आजाता है, आखिर बनावटी सवभाव कब तक चले। सबसे पहले अपने घरवाले ही वापस जाने का दिन गिनने लगते हैं।  क्यूंकि १५ दिन तो अच्छा लगता है उसके बाद उन्हें ऐसा महसूस होने लगता है  जैसे उनकी आज़ादी में कोई सेंध लगा रहा है। यकीन मानिये ये एक करवा सच है।

Thursday, 13 July 2017

दूसरी शादी / Second Marriage

६ जुलाई २०१७ की सुबह जब दिल्ली से जयपुर के लिए शताब्दी एक्सप्रेस चली तो उसमे में भी एक पैसेंजर की हैसियत से अपने बच्चों के साथ सवार था। टोटल ४ बुकिंग थी हमारी ३ एक साथ और एक अलग, सब लोगों को बैठा कर मैं अलग वाले सीट पे जा बैठा। सुबह जल्दी उठ गया था इसलिए थोड़ी देर बाद आँख लग गयीं। आँख खुली तो अलवर आ चूका था और एक  वृद्ध आदमी मेरे साथ आकर बैठे थे, उनकी उम्र यही कोई ६०-६५ की रही होगी। थोड़ी देर चुप रहने के बाद मैंने उनसे कुछ बात करने की सोची मगर वो शायद तैयार नहीं थे। थोड़ी और कोशिश के बाद उनसे कुछ बात चीत शुरू हुई और बातो का  सिलसिला शुरू होगया।
पता ये चला के वो अंदर से बहुत टूटे हुवे हैं। उनके दो बेटे  हैं  एवं उनकी दो शादियां  है।  दोनों बेटा अलग अलग देशो में रहते हैं।  एक ने ईसाई लड़की से शादी कर्ली है और दूसरे ने मुस्लिम से। उनका दुःख ये था की वो उनके बच्चे उनके साथ नहीं रहते थे और उनकी दूसरी पत्नी जो उनकी अस्सिटेंट हुवा करती थी वो अब उन्हें उतना भाव नहीं देती थी। दूसरी शादी उन्होंने ५५ साल की उम्र की थी अपने सेक्रेटरी के साथ और ये उनका प्रेम विवाह था। दूसरी पत्नी से शादी किये अभी केवल ८ साल हुवे थे । शादी के वक्त दूसरी पत्नी की उम्र केवल २६ साल थी। पूछने पे कहने लगे की दूसरी शादी पहली पत्नी के भाव न देने पे की थी। क्यूंकि इनके ५३ वे  साल में इनके पहले पत्नी की उम्र ४० से ज्यादा हो गयी थी और वो धार्मिक कार्यों में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगी थी। जो की इनको पसंद नहीं था। कह रहे थे की मेरी दूसरी शादी मेरे लिए एक भूल थी , इंसान अपने पल भर के  ख़्वाहिशात के चक्कर में अस्तित्वों तथा अंजाम को भूल जाता है। शायद मेरे बच्चे भी इसलिए मुझसे दूर चले गए। वो अपने मा यानि मेरी पहली पत्नी के साथ लंदन में रहते हैं। पहले कभी कभार बात होती थी मगर अब न तो वो मेरा फ़ोन उठाते और न ही कभी फ़ोन करते है। ज़िन्दगी के एक अजीब पराओ से गुज़र रहाँ हूँ। अपना अस्तित्व और अंजाम भूल के ये सब भूल करलिया। बेटे जब इंसान बूढ़ा और बेसहारा होने लगता है तो उसको अपने बच्चो की एक मुसकान उसके दिलों में खून  बनकर दौरता हैं। एक फ़ोन कॉल जैसे एक एनर्जी ड्रिंक का काम करता है। मगर अब इनसब बातों का क्या फायदा।

 मैंने पूछा आपका प्रेम विवाह वो भी ५५ की उम्र में कैसे हुवा ? कहने लगे ये सब बस हो जाता है। इसे किया नहीं जाता नहीं तो २५ साल की लड़की एक ५५ साल के बूढ़े को कैसे चाहने लगती? उन्होंने कहा की मैं दिल्ली में बिजली विभाग में डिपुटी जनरल मैनेजर था जब वो मेरे साथ एक सेक्रेटरी की हैसियत से आयी थी।  पत्नी से मिली निराशा के अँधेरे कुवें में उसकी आँखों मेरे लिए एक किरण की काम करगयी वो भी मेरा बहुत ख्याल रखने लगी फिर सिलसिला शुरू हुवा और हम एक दूसरे के क़रीब आने लगे।  उम्र में अंतर के कारण किसी को शक न करने पर बाध्ये कर रख्खा था। इसमें कोई शक नहीं है की एक आशिक दुनिया से बेगाना तथा  फितना से दूर होता है। दुनिया में मैं सबकुछ भूल कर सिर्फ अपने बुढ़ापे के प्यार के ख्वाबों ख्यालों में उलझा रहता था। जो छोटे मोठे मन मुटाऊ तथा झगड़े हुवा करते थे वो सब बंद हो गए पत्नी अपने सत्संग में खुश रहने लगी और मैं और मैं संग संग खुश रहने लगा। मेरी प्रेमिका मेरी दूसरी बीवी को भी अपने घरमे अपने शराबी पिता से कोई प्यार नहीं मिल रहा था बीमार माँ और पिता की रोज़ रोज़ की चिक चिक से परेशान मेरे इर्द गिर्द रहने में सहज महसूस करती थी।
फिर एक दिन मेरे प्रेमिका का बाप ऑफिस में आ धमका और और बहुत कहा सुनी हुई। मगर वहां वो अपनी बेटी के तेवर देखकर जाते जाते ये कह गया की ये मेरी बला जो अपने सर लेने की कोशिश कर रहे हो पछताओगे एक दिन। मगर कहाँ, जब दो दिल मिल रहे होते हैं तो वो अंजाम से बेफिक्र होते हैं। इस के बाद अपने प्रेमिका के दबाओ बनाने पे मैंने एक दिन सूर्य नारायण मंदिर में उससे शादी करली। उससे शादी करने की एक सबसे बड़ी वजह ये भी थी की वो पिछड़ी जाती से थी और ब्राह्मण का पिछड़ी जाती से शादी जैसे एक जुर्म माना जाता है। ये हमारे समाज के मान्सिक्ताओ को दिखाता है। एक चोर डाकू बलात्कारी से कहीं अधिक जलालत वाला काम माना जाता है दूसरी शादी और ऊपर से अगर पिछड़ी जाती से किया तो क्या कहने हैं। बहर हाल मैंने इसे तोड़ने की ठानी थी और तोड़ डाला।  शादी से पहले मैंने अपने जायदाद की आंकलन कर लिया था की अगर मैं दो चार साल में भी मर जाऊं तो मेरी दोनों पत्नियां अपने हिस्से का लेकर खुश रह सकती हैं की नहीं।  बेटो की परवाह पहले भी नहीं थी। दूसरी पत्नी को दूसरे घरमे शिफ्ट करदिया और उसके साथ रहने लगा। और पहली पत्नी को बता दिया की मेरा ट्रांसफर हो गया दूसरे शहर चूँकि मैं सेंट्रल गोवेर्मेंट का कर्मचारी था और डेपुटेशन पे दिल्ली  बिजली विभाग में आया था इसलिए किसी को शक भी नहीं हुवा की एक स्टेट कर्मचारी का ट्रांसफर दिल्ली से बाहर कैसे  हो गया। पकड़ा मैं तब गया जब एक दिन किसी ने मेरी पत्नी को बताया की साहब को मैंने राजीव चौक पे देखा है। वो शायद उस दिन बहुत खुश रही होगी,  उसे लगा शायद मैं ऑफिसियल काम से दिल्ली आया हूँगा और आज रात उसे सरप्राइज दूंगा। मगर जब देर रात तक मैं घर नहीं पहुंचा तो उसका कॉल आया मगर मैंने सरे कॉल मिस करदिये और साइलेंट करके सो गया। घबराई हुई मासूम पत्नी पुलिस स्टेशन जा पहुंची और मेर गुमशदगी की रिपोर्ट कर आयी और साथ में अपने मामा को कॉल लगा दिया जो की दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर थे।  पुलिस ने उनके मामा के पैरवी पे तुरंत करवाई की और फ़ोन का लोकेशन ट्रेस किया। फ़ोन का लोकेशन मिलने पे मेरी पत्नी थोड़ी शांत हुई बताया की वो हमारा दूसरा घर जो की खली ही रहता है। शायद दारू पिने की वजह से वो कल रात मेरे पास न आकर वहां चले गए होंगे। मैं उनसे मिल लुंगी आप केस क्लोज कर दीजिये।
दूसरी सुबह जब मैंने मलती आँखों दरवाजा खोला तो विस्वास नहीं हुवा मेरा भांडा फुट चूका है। उसके बाद क्या हुवा तुम सोच सकते हो। और उस दिन के बाद मैं अपनी बीवी से केवल अदालत में ही मिला हूँ। उसके बाद हमारी ज़िन्दगी बहुत खुश हाल होगयी हम दिल्ली में कहीं भी बेधड़क एक साथ घूमने लगे। फिर ६० साल के बाद मेरा रिटायरमेंट हो गया और मैं कम्प्लीटली फ्री हो चूका था। अच्छी खासी रिटायरमेंट बेनिफिट लेकर पूरा इंडिया तथा विदेश की शेर की मगर अब मेरी दूसरी पत्नी चिंतित रहने लगी थी क्यूंकि हमें कोई औलाद नहीं था और इसकी वजह डॉक्टर ने मुझे बताय था। फिर हमदोनो के बीच कहा सुनी होने लगी थी क्यूंकि बुढ़ापे की झंझलाहट मेरे अंदर प्रवेश कर चूका था और औलाद न होने की गम में वो भी चिरचिरी हो गयी थी। हालाँकि पिछले महीने हमें एक औलाद हुई हैं मगर अब उसी औलाद पे हमारा झगड़ा है। 

Tuesday, 11 July 2017

रिस्तेदारी-एक जरुरत या बोझ !

तुम कहते हो सोचो मत मगर क्यों न सोचूं न सोचा तभी तो ये हाल हुवा है। बुज़ुर्गों से सुना था रिस्तेदारी में दिमाग नहीं दिल लगाना चाहिए। मगर शायद अब वो वक्त नहीं रहा की दिल लगाया जाये कम्युनिकेशन के इस आधुनिक दौर में झूठ ने सच का मुँह काला कर दिया है।  लोग एक दूसरे से खुले आम झूठ बोलने लगे है। पहले लोग निस्वार्थ सेवा करने में विस्वास रखते थे अब निस्वार्थ झूठ बोलने में विश्वास रखने लगे हैं। यकीन मानिये ९० प्रतिशत लोग केवल मजा लेने के लिए झूठ बोलते हैं इससे  उनका कोई जाती फायदा नहीं होता। और इसमें सबसे बड़ा रोले है मोबाइल फ़ोन का , आजकल मोबाइल फ़ोन का घरेलु उपयोग में  ९० प्रतिशत इस्तेमाल झगड़ा लगाने और झगड़ा करने के लिए होता है।
आजकल वाक़ई रिस्तेदारी को दिमाग से खेलने की जरुरत आगयी है। वजह ये हैं की दिलसे सोचने पे आप भावनाओ में होते हैं और आज भावनाओ की कोई जगह नहीं बची है समाज में। आप जब दिलसे सोचते हो तब अपने भविष्ये की परवाह नहीं करते और नहीं किसी के सोचने की परवाह करते हैं की लोग क्या सोचेंगे। लोगों को कैसे मिलना है उसने क्या बात करना है अपनी सीमा कहाँ तक रखनी है ये बहुत ही जटिल मुद्दा है जो की हमें कहीं बताया ही नहीं जाता। तभी वसीम बरेलवी का एक शेर है।

नए उम्र की ख़ुदमुख़्तारियों को कैसे समझूँ। 
कहाँ बचके निकलना है कहाँ जाना जरुरी है।।

इंसान के ज़िन्दगी में आधे से ज्यादा परिशानी का कारन आपसी रिश्तों का जटिल होना है। इल्म इ गैब या पि.के फिल्म के उस दृश्ये के तरह जिसमे आमिर खान किसी का हाथ पकड़ कर उसके दिमाग में चलने वाली चीज़ जान जाता। ऐसी ताक़त इंसान को बक्श दी जाती तो शयेद इस परेशानी से इंसान बच जाता। किसी के बहकावे में न आता और अगले के दिमाग के सही बात को जान जाता।
कितना दुःख होता है जब आपके बारे में कोई गलत बात फैला दी जाये या कोई गलत बोल जाये और अगले को यकीन हो जाये। क्या ऐसा करने वाले के पास अपने बाल बच्चे नहीं होते, क्या उनके ज़िन्दगी में ऐसा कभी नहीं होता की उनकी कोई बात फैलाया हो और उन्हें दुःख हुवा हो। क्या ऐसे लोगों का दिल पथ्तर का बना होता है ? या फिर वो किसी खास तरह के रोग से पीड़ित होते हैं?

अल्लाह हम सबको हिदायत दे इस चार दिन की ज़िन्दगी में किसी इंसान का दिल दुःखा कर किसी को क्या मिलेगा।


Thursday, 22 June 2017

याद है अब भी बाक़ी आपके शहर की

कैसी ठंढी हवा आपके शहर की
है ये रास्ता ज्वा आपके शहर की

मिट्टियों की खसबू मौसमो का मिजाज़
खास है सारी बातें आपके शहर की

रक़ीब हैं जो यहाँ वो भी मेरे दोस्त हैं
ज़िन्दगी है अजीब आपके शहर की

जाता हूँ नहीं अब मैं कई साल से
याद है अब भी बाक़ी आपके शहर की

1 May - Labor Day (International Workers' Day)

Labor Day, observed on May 1st, holds significant importance worldwide as a tribute to the contributions of workers towards society and the ...