नही कोई तुझ जैसा इस जमाने में
मगर तू है आज कहीं इस मैखाने में।
तेरे इंतज़ार में रात भर बैठा रहा
क्या पता था की तू कहीं छुपी हे तहखाने में।
कल की तरह आज फिर तूने मुझसे धोखा किया
क्या बुराई है मुझमे ऐसा मैंने क्या किया।
बस एक खता हुई जो तुमसे मुहब्बत की भूल कर बैठा
नाम, शोहरत, सादगी गयी साथ में इज़्ज़त भी खो बैठा।
आज लौटा हूँ मुद्दतों बाद पागल खाने से
तुझे ढूंढ़ रहा हूँ मैखाने की इस दीवारों से।
लोगों ने भिजवाया था जब मुझे पागल खाने में
आज भी पागल नही और न था उस जमाने में।
तुझसे बिछड़ के में पागल खाने में ही ज्यादा अच्छा था
इन बेवकूफों के साथ से पागलों का साथ ही अच्छा था।
चला आता हूँ अब तेरे पास अब कुदरत के कारखाने में
नही कोई मेरा हमदर्द अब इस लापरवाह जमाने में।
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