कहते हैं की किसी को गलत कहने से पहले उसके जूते में 10 क़दम चल के देख लो, उसके उचक उचक के चलने की वजह उसका गुरुर नही बल्कि शायद जूते में चुभते हुवे कील हो। मगर अफ़सोस के आज के वक़्त में ये थोड़ा मुश्किल है क्योंकि इंसान को हर कुछ की जल्दी होती है। लोग एक दूसरे के बारे इतना जल्दी जजमेंट दे देते हैं जैसे कहीं जाने की जल्दी है। अपना जजमेंट सुना के ट्रैन पकड़नी है।
लेकिन क्या वाक़ई हम सबको हर चीज़ पे विचार रखना चाहिए ?
इनसब के पीछे असल वजह कुछ और है। असल में हम सब एक तरह के मनोरोग से विकृत हैं जिसमे इंसान की कैफियत ये होती है की वो भीड़ में अपने आपको अकेला समझता है और वो अपने आपको ऐसा महसूस करता है के सब उसे ही देख रहें हैं इसलिए उसका हर मुद्दे पे अपना विचार रखना ऐसे ही जरुरी है जैसे की सांस लेना । अगर विचार नही रख्खा तो पिछड़ा हुवा समझा जायेगा या आउट ऑफ़ मार्किट हो जायेगा और लाइम लाइट से दूर हो जायेगा।
लेकिन क्या वाक़ई हम सबको हर चीज़ पे विचार रखना चाहिए ?
इनसब के पीछे असल वजह कुछ और है। असल में हम सब एक तरह के मनोरोग से विकृत हैं जिसमे इंसान की कैफियत ये होती है की वो भीड़ में अपने आपको अकेला समझता है और वो अपने आपको ऐसा महसूस करता है के सब उसे ही देख रहें हैं इसलिए उसका हर मुद्दे पे अपना विचार रखना ऐसे ही जरुरी है जैसे की सांस लेना । अगर विचार नही रख्खा तो पिछड़ा हुवा समझा जायेगा या आउट ऑफ़ मार्किट हो जायेगा और लाइम लाइट से दूर हो जायेगा।
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