जबसे वतन छूटा है चेहरा उदास रहता है
नयी फ़िज़ाओं में कहाँ वो बात रहता है
वक्त कट जातें हैं युहीं दफ्तर की नौकरी में
अब वो लगन न वो होश ओ हवास रहता है
अपना तो हाल है बुरा सुखी रोटी भी नसीब नही
दोस्त अहबाबों का मेरे लिए कुछ अलग ही कयास रहता है
ये जमीन या वो जमीन , जमीन तो बस खुदा की है
फिर इसमें इतना क्यों इत्तेफ़ाक़ रहता है
थक गया हूँ या रब इस इस दुनिया की आपा धापी से
कोई ऐसी जगह बता जहाँ इंसान को इत्मीनान रहता है
नयी फ़िज़ाओं में कहाँ वो बात रहता है
वक्त कट जातें हैं युहीं दफ्तर की नौकरी में
अब वो लगन न वो होश ओ हवास रहता है
अपना तो हाल है बुरा सुखी रोटी भी नसीब नही
दोस्त अहबाबों का मेरे लिए कुछ अलग ही कयास रहता है
ये जमीन या वो जमीन , जमीन तो बस खुदा की है
फिर इसमें इतना क्यों इत्तेफ़ाक़ रहता है
थक गया हूँ या रब इस इस दुनिया की आपा धापी से
कोई ऐसी जगह बता जहाँ इंसान को इत्मीनान रहता है
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