बिन कहे बात बिगड़ गयी ऐसा लगने लगा है
बात बात में बात खो गयी ऐसा लगने लगा है
ना कहें तो गुनहगार हो जाऊँ अनजाने जुर्म का
कोई जुर्म हमसे हुवा नही पर ऐसा क्यों लगने लगा है
ये जो दोस्त व हबीब हैं मेरे मुझसे दूर होने लगे हैं
जब मेरी कोई खता नही तो ऐसा क्यों लगने लगा है
वक्त ने कैसी बे लज़्ज़ती बख्शी है सरफ़राज़
खुद अपने आपसे ही मजबूर लगने लगा है
बात बात में बात खो गयी ऐसा लगने लगा है
ना कहें तो गुनहगार हो जाऊँ अनजाने जुर्म का
कोई जुर्म हमसे हुवा नही पर ऐसा क्यों लगने लगा है
ये जो दोस्त व हबीब हैं मेरे मुझसे दूर होने लगे हैं
जब मेरी कोई खता नही तो ऐसा क्यों लगने लगा है
वक्त ने कैसी बे लज़्ज़ती बख्शी है सरफ़राज़
खुद अपने आपसे ही मजबूर लगने लगा है
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