ज़िन्दगी कहीं चैन से गुजरी है जो गुजरेगी
ये तो मौत है जो एक दिन वफ़ा लेके उतरेगी।
हसीन सपनो सा मुकद्दर था कभी जमाने में
किसी का वक्त निकला है सिर्फ दो रोटी कमाने में।
स्याही मेरे कलम के कुछ यु बिखर गए
दफ्तर व घर में जैसे मेरे ज़िन्दगी उजर गए।
हुक्मरानी देखि तो अपने हाकिम में ही देखि
बेगुमानी देखि तो एक आलिम में ही देखि।
शरीफ इंसान कहाँ दीखते हैं यहाँ तो सब बेवक़ूफ़ है
दो पैरों के जानवर देखे जो एक अलग ही मख्लूक़ है।
ये तो मौत है जो एक दिन वफ़ा लेके उतरेगी।
हसीन सपनो सा मुकद्दर था कभी जमाने में
किसी का वक्त निकला है सिर्फ दो रोटी कमाने में।
स्याही मेरे कलम के कुछ यु बिखर गए
दफ्तर व घर में जैसे मेरे ज़िन्दगी उजर गए।
हुक्मरानी देखि तो अपने हाकिम में ही देखि
बेगुमानी देखि तो एक आलिम में ही देखि।
शरीफ इंसान कहाँ दीखते हैं यहाँ तो सब बेवक़ूफ़ है
दो पैरों के जानवर देखे जो एक अलग ही मख्लूक़ है।
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