स्याह बादल ही तो है कोई खौफनाक रात नही
आंसुओ का सैलाब है ये कोई बरसात नही
कहीं दूर निकल गया कुछ तलाश की खातिर
अब पता चला मेरी तो कोई बिसात नही
बड़े खुशनुमा बनके हम अकड़ते थे
वक्त ने दिए जखम, अब कोई औकात नही
बेवक्त ही शायद किसी ने वक्त को चलाया होगा
वरना मेरे वक्त में इतनी भी खुराफात नही
दर्द ऐ इंसान भी क्या समझे ये नादाँ वक्त
जिसके हिस्से में कोई तल्ख़ियात नही
मैं इतना भी परेशान नही होता सरफ़राज़
शायद तेरे इबादात की कबूलियात नही
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