समुंद्र किनारे बैठे हुवे मुझे हवाओं के झोंके ने ये एहसास कराया के ये मेरी प्यारी बिटिया अमाना से भी ज्यादा चंचल है । कभी खुद एक दम सर्द होकर पास से गुजर जाती तो कभी कुछ धूल लेकर आती और चेहरे पे एक परत जमा जाती तो कभी हल्की हल्की शोर के साथ भिनभिनाहट वाली मधुर संगीत के साथ ताल मिलाते हुवे कानो के पास से निकल जाती।
मगर क्या हवाओं को आका ने ऐसा ही बनाया है। चंचल मदमस्त अपने चाल से चलने वाली या ये भी इंसान की तरह अपने उम्र के हिसाब से बदल जाती होंगी।
मतलब थोड़ा व्यस्क होने पे ज्यादा सीरियस टाइप चार लोग देख रहे इसकी परवाह करने वाले। ;)
मगर हवाओं की क्या उमर होती होगी ये कब व्यस्क होते होंगे क्या ये हजारों साल के होते होंगे या ये अनंत हीन सोलर सिस्टम में सदेव ही घूमते रहते होंगे, इनका कोई इख्तेताम नही है । इसलिए मदमस्त होते हैं जिन्हें अपने फना होने की कोई परवाह नहीं है।
माशाअल्लाह। बहोत ख़ूब।
ReplyDeleteThanks
Deleteמעולה. טוב מאוד.
ReplyDeleteHebrew
ReplyDeleteThanks bhai
Nice one, kabhi itna dhyaan nahi diya hawa pe mene, aapne apni kalam se bohot khoob likha.
ReplyDeleteThanks bhai
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