डर किस बात का होता है ये पता नहीं मगर अपने को खोने के बाद इंसान बहुत डर जाता है। एक सहमा हुवा इंसान, चेहरे की उदासी, मन का दुनिया से फिर जाना, बार २ उठती कलेजे में खनक मोनो जैसे जान ही लेलेती है।
जाने क्या बात है जो इंसान को जीवन में जीने केलिए इतना उत्तेजित रखती है। शायद अपना वजूद भूल जाना ही जीवन की सबसे बड़ी भूल है। मिटटी से पैदा हो कर मिटटी में मिल जाना ही हमारा वजूद है फिरभी हम उसी मिटटी के लिए क्या कुछ नहीं करते हत्ता के करते २ लड़ परते हैं और लरते २ मर जाते हैं।
कानो में गुंजती आवाज़, आँखों के सामने हँसता हुवा चेहरा, एक दूसरे पर छींटा कशी और अनन्तः बर्फ पर पर लेटा शारीर खामोश चेहरा बंद आँखें तथा दुनिया से बेखबर नींद की आगोश। मौत के आगे क्या होगा ये किसी ने देखा तो नहीं है मगर फरमान ऐ इलाही पर यकीन ही हमारे समझ को समझदार बना सकता है।
जाने क्या बात है जो इंसान को जीवन में जीने केलिए इतना उत्तेजित रखती है। शायद अपना वजूद भूल जाना ही जीवन की सबसे बड़ी भूल है। मिटटी से पैदा हो कर मिटटी में मिल जाना ही हमारा वजूद है फिरभी हम उसी मिटटी के लिए क्या कुछ नहीं करते हत्ता के करते २ लड़ परते हैं और लरते २ मर जाते हैं।
कानो में गुंजती आवाज़, आँखों के सामने हँसता हुवा चेहरा, एक दूसरे पर छींटा कशी और अनन्तः बर्फ पर पर लेटा शारीर खामोश चेहरा बंद आँखें तथा दुनिया से बेखबर नींद की आगोश। मौत के आगे क्या होगा ये किसी ने देखा तो नहीं है मगर फरमान ऐ इलाही पर यकीन ही हमारे समझ को समझदार बना सकता है।
No comments:
Post a Comment