कोई क्या करे जब पूरा आसमान ही निचे आजाये
मंज़िल कोई पहुंचे कैसे जब हर सिम्त से तूफान आजाये।
नही दुश्मनी कभी गैरों से लिया हमने
फासला दिलो में हो तो दुश्मनी खुद आजाये।
राज की बात बताते हुवे डर लगता है मुझे
मगर दुखे दिलसे ये खुद ही बाहर आजाये।
मायूसी ज़िन्दगी में सुना है एक कुफ्र है
कुछ नज़र नही आत तो मायूसी खुद ही आजाये।
कौन नही चाहता अपने आप में खुश रहना
शर्त ये है की सर पे कोई बोझ ना आजाये।
खुदा की दी हुई मुश्केलिन हैं ये ऐ सरफ़राज़
वही कम करेगा जब सही वक्त आजाये।
मंज़िल कोई पहुंचे कैसे जब हर सिम्त से तूफान आजाये।
नही दुश्मनी कभी गैरों से लिया हमने
फासला दिलो में हो तो दुश्मनी खुद आजाये।
राज की बात बताते हुवे डर लगता है मुझे
मगर दुखे दिलसे ये खुद ही बाहर आजाये।
मायूसी ज़िन्दगी में सुना है एक कुफ्र है
कुछ नज़र नही आत तो मायूसी खुद ही आजाये।
कौन नही चाहता अपने आप में खुश रहना
शर्त ये है की सर पे कोई बोझ ना आजाये।
खुदा की दी हुई मुश्केलिन हैं ये ऐ सरफ़राज़
वही कम करेगा जब सही वक्त आजाये।
badhiya
ReplyDeletemashallah